Traditional informers कहां हैं?
गवर्नमेंट द्वारा अप्रूव्ड एसपीओ (स्पेशल पुलिस ऑफिसर) के आने के बाद से ट्रेडिशनल इन्फॉर्मर्स पुलिस से दूर होते जा रहे हैैं। ट्रेडिशनल इन्फॉर्मर्स ऐसे लोग होते हैं जिनका कभी क्राइम वल्र्ड में पैठ था। अब उसे छोड़ चुके होते हैं, लेकिन लेकिन उसपर नजर जरूर होती है। पहले इनसे ही पुलिस का काम चलता था। इंफॉर्मेशन मिलने के बाद पुलिस द्वारा इन्हें अपनी जेब से कुछ पैसे दिए जाते थे। अब पुलिस भी इनसे कन्नी काटने लगी है।

समय पर नहीं मिलती information
रूरल एरिया में तो एसपीओ का कॉन्सेप्ट अर्बन एरिया की तुलना में थोड़ी बेहतर है, लेकिन अर्बन एरिया में इसमें काफी सुधार की गुंजाइश है। अर्बन एरिया के एसपीओ अपने काम पर ज्यादा और पुलिस इन्फॉर्मेशन पर कम ध्यान देते हैैं। इस कारण पुलिस को समय पर सही इंफॉर्मेशन नहीं मिल पाती और केसेज सॉल्व होने में देर होती है।

Traditional informer अब बन गए हैं SPO
अब ट्रेडिशनल इन्फॉर्मर्स के बदले अप्रूव्ड इन्फॉर्मर यानि एसपीओ (स्पेशल पुलिस ऑफिसर) का रोल बढ़ गया है। ईस्ट सिंहभूम डिस्ट्रिक्ट में एसपीओ के 293 पोस्ट हैं। इनमें से 50 परसेंट यानी लगभग 147 पोस्ट डिस्ट्रिक्ट पुलिस के पास है। इसके अलावा 25-25 परसेंट पोस्ट सीआरपीएफ व स्पेशल ब्रांच के पास है। यानी ये लोग अपने हिसाब से इन एसपीओ का यूज कर सकते हैैं। इनका रिक्रूटमेंट पुलिस डिपार्टमेंट द्वारा किया जाता है। हर थाना एरिया में 3 से 4 एसपीओ होते हैं। यह सब थाना एरिया के रेंज पर डिपेंड करता है और इसी हिसाब से यह तय किया जाता है कि किस थाना एरिया में कितने एसपीओ रखे जाएंगे। इन्हें गवर्नमेंट द्वारा हर महीने 3000 रुपए की सैलरी भी दी जाती है।

For your information

Techno- savvy हो गए हैं criminals
आज के जमाने में लोग काफी टेक्नो सेवी हो गए हैं। क्रिमिनल्स भी इस मामले में पीछे नहीं हैं। इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के मामले में पुलिस की चेंजेज प्रक्रिया काफी धीमी है। ऐसे में टेक्नोलॉजी के मामले में क्रिमिनल्स ज्यादा एडवांस हो गए हैं। ऐसे में क्रिमिनल्स आगे-आगे चलते हैं और पुलिस उनके पीछे-पीछे। इतना ही नहीं सिटी में सिमकार्ड वेरिफिकेशन के दौरान प्रॉपर चेक नहीं किया जाता है। ऐसे में केस सॉल्व करने के लिहाज से पुलिस के लिए पुराने टेक्निक्स ही ज्यादा कारगर हो सकते हैं।
-कई ऐसे मामले हैैं, जिसमें पुलिस मुखबिर तंत्र की नाकामी सामने आयी है।
-लास्ट इयर भोपाल एटीएस ने सिमी व इंडियन मुजाहिदीन से जुड़े एक आतंकी को मानगो से अरेस्ट किया था। वह 6 महीने से यहां रह रहा था, लेकिन न तो पुलिस और न ही स्पेशल ब्रांच को इसकी भनक लगी।
-सिमी से जुड़े टेररिस्ट ने राशन कार्ड बनाने के लिए भी अप्लाई कर दिया था। इसकी भी जानकारी नहीं मिली और जब भोपाल में हुई  पूछताछ में मामला सामने आया तो भोपाल एटीएस ने डिस्ट्रिक्ट पुलिस से जानकारी मांगी तो मामला सामने आया।
-17-18 दिनों बाद भी पुलिस ट्रिपल मर्डर केस में किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है।
-ट्रिपल मर्डर व ट्रेवेल एजेंसी संचालक की हत्या के मामले में किसी अपने का ही हाथ होने की बात सामने आ रही है। पुलिस का मानना है कि इस कारण केस के सॉल्व होने में विलंब हो रहा है।
-ट्रेवेल एजेंसी संचालक की हत्या में उसकी वाइफ का ही हाथ होने की बात सामने आ रही है। उसके विरोधाभासी बयानों से पुलिस को उसपर शक हो रहा है। इस कारण उससे लगातार पूछताछ भी की जा रही है।