-डॉक्टर्स ने 7 घंटे के सफल ऑपरेशन के बाद एक ब्रेन निकाला

-10 हजार बच्चों में एक होता है ऐसा, कोई एडमिट करने को नहीं था तैयार

JAMSHEDPUR: सात महीने के बच्चे बजरंग में दो ब्रेन विकसित हो रहे थे। यह देखकर डॉक्टर्स भी हैरान थे। यह जानलेवा था। अगर दो से तीन महीने की देरी हो जाती तो शायद बजरंग नहीं बच पाता। हम बात कर रहे हैं ओल्ड बारीडीह स्थित प्रेमचंद पथ निवासी विष्णु लोहार के सात महीने के बेटे बजरंग की। विष्णु लोहार की शादी सात साल पहले जाइना लोहार हुई थी। क्फ् दिसंबर, ख्0क्ब् को बजरंग का जन्म हुआ। इस दौरान बजरंग के सिर के बगल में एक और गोला था। यह गोला धीरे-धीरे बढ़ता ही जा रहा था और अबतक दो किलो का हो चुका था। जिसे देखकर परिजन काफी चिंतत थे। परिजन बजरंग का इलाज कराने के लिए प्रदेश के कई बड़े हॉस्पिटल्स में गए, लेकिन कोई करने को तैयार नहीं हुआ। अंत में वह बिष्टुपुर स्थित कांति लाल मेमोरियल अस्पताल सह मेडिका में पहुंचा। जहां पर डॉक्टर्स ने एडमिट किया और बजरंग का सफल ऑपरेशन हो सका। ऑपरेशन के बाद बच्चा अभी स्वस्थ है। लगभग सात घंटे के कठिन ऑपरेशन के बाद डाक्टरों ने बजरंग को नई जिंदगी देने में कामयाबी हासिल की है। इसमें डॉ एच रावल व डॉ पीएल रथ की अहम भूमिका थी। डा। रावल ने बताया कि सात महीने के बजरंग के सिर में सेकेंड ब्रेन (ट्यूमर) विकसित हो गया था। इससे बच्चे की परेशानी बढ़ गई थी और धीरे-धीरे यह मौत की ओर बढ़ रहा था। इस बीमारी को एनसीफेलो मैनिंगो माइलो सिम करते हैं। यह दस हजार बच्चों में किसी एक बच्चे को होता है। हालांकि अधिकांश बच्चों की मौत हो जाती है। लेकिन बजरंग पूरी तरह से स्वस्थ्य है।

सात घंटे तक बेहोश रखना चुनौती

डॉक्टर्स ने बताया कि ऑपरेशन में सबसे बड़ी चुनौती बच्चे को सात घंटे तक बेहोश रखना और वापस होस में लाना था। यह काफी कठिन था, इसे देखते हुए चिकित्सकों ने सबसे पहले बच्चे के परिजन को स्थिति से अवगत कराया। इसके बाद परिजनों की ओर से इजाजत मिलते ही एनेस्थिसिया डॉ पीएल रथ ने अपने अनुभव का इस्तेमाल कर बच्चों को सात घंटे तक बेहोश रखा और वापस उसे होश भी आ गया। डॉ। रथ ने बताया कि ऑपरेशन के लिए एक विशेष तरह का बेड बनाया गया था। जिसमें बच्चे को रखने पर उसका सेकेंड ब्रेन अलग रहे।

दो किलो का था सेकेंड ब्रेन

सेकेंड ब्रेन का वजन करीब दो किलो था और उसमें ब्रेन के करीब सभी ऑर्गेन विकसित हो गए थे। इसलिए इसे सेकेंड ब्रेन या फिर ट्यूमर भी कहा जा सकता है। डॉ। रावल ने कहा कि ऑपरेशन के बाद बच्चा अभी ठीक हो गया है। लेकिन सामान्य बच्चों की तुलना में ऐसे बच्चों की इंटेलीजेंसी थोड़ी कम होती है। इसलिए बच्चे को ख् से ढाई साल तक नियमित दवा दी जाती है।

हॉस्पिटल में फ्री इलाज हुआ

कांतिलाल अस्पताल के डायरेक्टर डॉ। एनके दास ने कहा कि बच्चे के परिजन आर्थिक रूप से काफी कमजोर थे और बच्चे की स्थिति गंभीर। ऐसे में अस्पताल प्रबंधन ने अपना दायित्व निभाते हुए बजरंग का ऑपरेशन करने का निर्णय लिया। बच्चे के माता-पिता को सिर्फ दवा के पैसा इंतजाम करने को कहा गया। बाकि अस्पताल में ऑपरेशन, चिकित्सक, बेड सहित सभी सुविधा नि:शुल्क दी गई।