जमशेदपुर (ब्यूरो): इसकी शुरुआत नदी के उदगम स्थल, नगड़ी स्थित &रानीचुंआ&य से की गई। यात्रा के क्रम में श्री राय ने बताया कि स्वर्णरेखा यात्रा पहली बार वर्ष 2005 में आरंभ की गई थी। तब पानी के दो स्रोतों से पानी रिसता था। एक से क्षारीय और दूसरे से अम्लीय जल प्रवाह होता था, जो बाद में कुछ दूरी पर जाकर आपस में मिल जाती है। उन्होंने कहा कि उदगम स्थल से मात्र कुछ दूरी पर कई राइस मील हैं, जिसका दूषित जल पास के ही छोटे-छोटे कच्चे गडढ़ों में जमा किया जाता है, जो रिस-रिस कर भूगर्भ जल को दूषित कर रहा है, जो मानवजाति के लिए काफी हानिकारक है। उन्होंने सरकार से रानीचुंआ को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मांग की। उन्होंने कहा कि मामले में उन्होंने पिछले दिनों पर्यटन सचिव से बात भी की है। पर्यटन सचिव ने इस पर सकारात्मक रूख अपनाया है। उन्होंने कहा कि इस स्थान का सौंदर्यीकरण करने की आवश्यकता है। श्री राय ने कहा कि इस उद्गम स्थल से धुर्वा डैम में पानी जाता है, जिससे रांची की प्यास बुझती है।

समस्या काफी गंभीर

उन्होंने बताया कि रांची सहित जमशेदपुर में औद्योगिक एवं नगरीय प्रदूषण की समस्या काफी गंभीर हो गई है। प्रतिष्ठान अपने अपशिष्ट का समुचित निस्तारण किये बगैर सीधे नदी में बहा देते है वहीं शहरी घरों का सिवरेज पानी बिना परिशोधन के नालों के माध्यम से नदी में प्रवाहित हो रहा है, जिससे नदी का जल अत्यधिक प्रदूषित हो गया है। राईस मिलों की इसमें सबसे अधिक भूमिका प्रत्यक्ष तौर पर देखने को मिली। अभियान दल के सदस्यों ने उद्गम स्थल से लगे स्वर्णरेखा नदी के किनारे-किनारे लगभग 3 किलोमीटर पैदल चलकर नदी का निरीक्षण किया जिसमें पाया गया कि नदी का जल राइस मिल के प्रदूषण के प्रभाव से अत्यधिक काला हो गया है। यह भी पाया गया कि किसानों के खेतों में ट्रैक्टर के माध्यम से भूसा एवं अपशिष्ट गिराया जा रहा है, जिससे खेतों में काली परत जम गयी है। श्री राय ने कहा कि नदी के प्रदूषित होने से जैव विविधता समाप्त हो रही है और जलीय जीव-जन्तुओं के अस्तित्व पर खतरा पैदा हो गया है। श्री राय ने कहा कि नदी तो हर साल बरसात में स्वयं को साफ कर लेती है, हमें केवल इसमें किसी प्रकार की गंदगी नहीं डालनी है। इसे साफ रखने में जनता का सहयोग चाहिए। उन्होंने कहा कि नदी को साफ रखना केवल सरकार का काम नहीं है, हमारा भी नैतिक कर्तव्य बनता है कि हम नदी को साफ रखें। जन सहयोग से ही इस भागीरथी प्रयास को सार्थक किया जा सकता है।

समस्या भयावह

स्वर्णरेखा नदी प्रदूषण समीक्षा अभियान के संयोजक डॉ। एम.के। जमुआर ने कहा कि रानीचुंआ के पास स्थित पांडु गांव के ग्रामीणों से सम्पर्क करने पर पता चला कि नदी के किनारे अवस्थित चावल मिलों के कारण प्रदूषण की समस्या भयावह हो गयी है। धान की भूसे की वजह से आंख में 4-5 दिनों तक जलन का अनुभव होता है। कपड़ों पर भी राख जमा होने के कारण शरीर में खुजली होती है। ग्रामीणों ने बताया कि चावल मिलों की स्थापना के पहले गांवों में मच्छर नहीं पाए जाते थे, लेकिन अब मच्छर बहुतायात में है। सारी वस्तुस्थिति से अवगत होकर अभियान दल के सभी सदस्य स्थानीय ग्रामीणों को साथ लेकर वास्तविक स्थिति को जानने के लिए &सारवी राईस मिल&य गये, जो गांव से 500 मीटर की दूरी पर है। मिल में पर्यावरण प्रदूषण को रोकने की व्यवस्थाओं का पूर्णत: अभाव देखा गया। धान के प्रसंस्करण के बाद निकली हुई पानी को छोटे-छोटे कच्चे गडढ़ों में जमा किया जा रहा है, जिससे भूमिगत जल प्रदूषित हो रहा है। धान की भूसे को हवा में फैलने से रोकने का कोई उपाय नहीं है। फलस्वरूप आसपास के पूरे स्थान पर भूसे तथा भूसे का राख बिखरा हुआ देखा गया। अभियान ने डोकाटोली में भी दो चावल मिलों को देखा, वहां भी स्थिति दयनीय थी। पूरे क्षेत्र में धान की भूसी तथा राख फैली हुई थी।

जल एवं गाद का नमूना लिया

अभियान के अगले पड़ाव में लोग कुदलौंग पहुंचे, जहां नदी पर एक चेक डैम बना हुआ है, जिसका निरीक्षण करने पर राईस मिल से निकले प्रदूषित जल एवं भूसा भरा हुआ पाया गया। दल में शामिल वैज्ञानिकों द्वारा जल एवं गाद का नमूना लिया गया। धुर्वा डैम का निरीक्षण करने के क्रम में आसपास में लोगों से सम्पर्क करने पर पता चला कि पानी का रंग पहले की अपेक्षा काला हो गया है। मछलियां मर रही हैं तथा पानी के कारण शरीर में खुजली की समस्या भी रहती है। अभियान के साथ चल रहे युगांतर भारती के वैज्ञानिकों के द्वारा धुर्वा डैम, सिठियो, तुपुदाना से पानी एवं गाद का नमूना संग्रह भी किया गया, जिसका विश्लेषण प्रयोगशाला में किया जायेगा और उसका विश्लेषण प्रतिवेदन सरकार के संबंधित विभागों के सचिवों को भेजी जायेगी।