-व‌र्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक के तहत ग्रेजुएट कॉलेज में ऑर्गनाइज हुआ प्रोग्राम

-ब्रेस्टफीडिंग के इंपॉर्टेस के बारे मे मिली जानकारी

द्भड्डद्वह्यद्धद्गस्त्रश्चह्वह्म@द्बठ्ठद्ग3ह्ल सिर्फ फिजिकल और मेंटल डेवलपमेंट ही नहीं ब्रेस्टफीडिंग मां और बच्चे के बीच एक मजबूत इमोशनल बांडिग बनाता है। मां के दूध में हर वो पोषक तत्व होते हैं ही जिनके जरूरत एक शिशु को होती है। साथ ही बच्चों के फीडिंग का ये एक नेचुरल और कॉस्ट इफेक्टिव तरीका है। ये बातें कहीं डॉ प्रीति श्रीवास्तव ने। टाटा मेन हॉस्पिटल के डिपार्टमेंट ऑफ पेडिएट्रिक्स की रजिस्ट्रार डॉ प्रीति व‌र्ल्ड ब्रेस्ट फीडिंग वीक के अंतर्गत ग्रेजुएट कॉलेज में आयोजित प्रोग्राम के दौरान बतौर चीफ गेस्ट बोल रही थीं। इस दौरान कॉलेज की प्रोफेसर्स के साथ-साथ बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स भी मौजूद थीं।

मौजूद रहे प्रोफेसर्स और स्टूडेंट्स

ग्रेजुएट स्कूल-कॉलेज फॉर वीमेन के होम साइंस डिपार्टमेंट द्वारा व‌र्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक के मौके पर बुधवार को प्रोग्राम ऑर्गनाइज किया गया। प्रोग्राम की शुरुआत एनएसएस वालंटियर्स द्वारा वेलकम सांग के साथ हुई। होम साइंस डिपार्टमेंट की असिस्टेंट प्रोफेसर ने गेस्ट्स का वेलकम करते हुए ब्रेस्ट मिल्क बढ़ाने के न्यूट्रिशनल टिप्स भी दिए। इस मौके पर कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ उषा शुक्ला भी मौजूद थीं। इस दौरान पोस्टर कॉम्पटीशन की विनर्स को प्राइज भी दिया गया।

हैं कई फायदे

वक्ताओं ने कहा कि व‌र्ल्ड में हर साल जन्म लेने वाले 13.5 करोड़ बच्चों में से 60 परसेंट को पर्याप्त ब्रेस्टफीडिंग नहीं मिल पाता है। इसका असर बच्चों के डेवलपमेंट के साथ-साथ आर्थिक रूप से भी पड़ता है। डॉ प्रीति श्रीवास्तव ने कहा कि जन्म से छह महीने तक बच्चों को सिर्फ मां का दूध पिलाना चाहिए, इससे सही डेवलपमेंट के साथ-साथ डायबिटीज और हाइपरटेंशन जैसी बीमारियों का खतरा भी कम होता है। ब्रेस्टफीडिंग से बच्चों के आर्टिफिशियल फीडिंग के लिए खर्च नहीं करना पड़ता, जिससे घर के बजट पर भी असर नहीं पड़ता। उन्होंने कहा कि नॉर्मल डिलीवरी के आधे घंटे के अंदर ब्रेस्टफीडिंग शुरू की जा सकती है।