रांची(ब्यूरो)। आज रामनवमी है। पूरा शहर महावीर पताकाओं से पटा पड़ा है। रांची की सड़कों पर 15 से 20 लाख श्रद्धालुओं की भीड़ शोभायात्रा में उमड़ेगी। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जानेवाली इस रामनवमी की रांची में गौरवशाली परंपरा रही है। नौ दशक से भी पहले शुरू हुई रामनवमी शोभायात्रा का स्वरूप समय के साथ बदलता गया। 1929 में रांची में पहली बार निकाली गई रामनवमी शोभायात्रा, इसके बाद लोगों की भागीदारी और आयोजन लगातार वृहद् रूप लेता रहा। आइए जानते हैं रांची में रामनवमी का गौरवशाली इतिहास।

ऐसे हुई शुरुआत

रांची में रामनवमी का इतिहास नौ दशक से भी ज्यादा पुराना है। इसकी शुरुआत महावीर चौक निवासी श्रीकृष्णलाल साहू और जगन्नाथ साहू के प्रयास से हुई। यह 1927 की बात है। श्रीकृष्णलाल साहू रामनवमी के समय अपने ससुराल हजारीबाग में थे और वहां का रामनवमी जुलूस देखा। इसके बाद रांची आकर अपने मित्र जगन्नाथ साहू सहित अन्य मित्रों को हजारीबाग की रामनवमी के बारे में बताया। यह सुनकर उनके मित्रों में उत्सुकता जगी और 1928 में वे लोग रामनवमी का जुलूस देखने हजारीबाग चले गए। वहां से लौटकर रांची में भी रामनवमी की शोभायात्रा निकालने का संकल्प लिया गया। बता दें कि हजारीबाग में रामनवमी जुलूस गुरु सहाय ठाकुर ने 1925 में वहां के कुम्हार टोली से प्रारंभ की थी।

1929 में निकली पहली शोभायात्रा

जानकारों की मानें तो रांची में रामनवमी की पहली शोभायात्रा 17 अप्रैल, 1929 को निकली थी। यह शोभायात्रा महावीर चौक स्थित महावीर मंदिर से निकली थी। इसमें कृष्णलाल साहू, रामपदारथ वर्मा, राम बड़ाईक लाल, नन्हकू राम, जगदीश नारायण शर्मा, जगन्नाथ साहू, गुलाब नारायण तिवारी, ननकू राम और लक्ष्मण राम मोची शामिल हुए। इस जुलूस में केवल दो महावीरी झंडे थे। महावीरी झंडा खादी के कत्थई रंग के कपड़े से तैयार करवाया गया था। शोभायात्रा महावीर चौक से अमला टोली होते हुए फिरायालाल चौक तक गई और वहां का चक्कर लगाकर वापस महावीर चौक लौट आई। शोभायात्रा के आगे अनिरुध्द राम झंडा उठाये और जागो मोची ढोल बजाते हुए हुए चल रहे थे। जुलूस में दो हाथ रिक्शा भी शामिल थे।

पहाड़ी मंदिर में पटाखा जलाकर दी जाती थी सूचना

अगले साल, 1930 में जब दूसरी शोभायात्रा निकाली गई तो महावीरी झंडों की संख्या बढ़ गई थी। यह शोभायात्रा नन्हू भगत के नेतृत्व में रातू रोड स्थित ग्वाला टोली से निकाली गई थी। धीरे-धीरे झंडों की संख्या बढऩे लगी। बुजुर्गों का कहना है कि पहले पहाड़ी मंदिर पर पटाखा जलाकर रामनवमी की तैयारी की सूचना दी जाती थी। शुरुआती सालों में मुख्य शोभायात्रा रातू रोड से निकाली जाती थी, जो मेन रोड तक जाती। इसमें चर्च रोड, अपर बाजार, भुतहा तालाब, मोरहाबादी, कांके रोड, बरियातू, चडरी, लालपुर, चुटिया, हिंदीपीढ़ी आदि अखाड़े के झंडे भी शामिल होने लगे।