- सड़क सुरक्षा माह की शुरुआत के साथ ही चार दिनों में तीन की मौत

- छह से ज्यादा लोग हो चुके हैं गंभीर रूप से घायल

- तेज रफ्तार बनी काल, हर रोज कहीं न कहीं हो रहे हैं हादसे

- लॉकडाउन में जब गाडि़यां नहीं चलीं, तब भी केवल 20 फीसदी कम हुए हादसे

- 2020 में रांची जिले में 549 मौतें हुईं

खतरनाक ब्लैक स्पॉट्स

1. डीपीएस चौक।

2. नेपाल हाउस मोड़।

3. बूटी मोड़।

हादसों व मौत की वजह

1. तेज रफ्तार में वाहन चलाना।

2. हेल्मेट नहीं पहनना।

3. बाइक सवारों का खतरनाक स्टंट।

4. शराब पीकर ड्राइविंग।

सड़कों को सुरक्षित बनाने के लिए सेमिनार और मीटिंग का दौर चल रहा है। 17 जनवरी से ही सड़क सुरक्षा माह की शुरुआत हुई है। लेकिन, तमाम कवायदों के बावजूद सड़कें केवल कागजों पर ही सुरक्षित हो रही हैं। हकीकत तो यह है कि रांची की सड़कें लगातार खौफनाक होती जा रही हैं। सबसे ज्यादा शिकार हो रहे हैं दो पहिया वाहन सवार, जो या तो बड़ी गाडि़यों की चपेट में आ रहे हैं या फिर तेज रफ्तार के कारण खुद ही हादसे को दावत दे रहे हैं। पिछले 17 जनवरी से लेकर 20 जनवरी तक चार दिनों के भीतर ही रांची शहर में हुए हादसों में 3 लोगों की जान जा चुकी है और कम से कम 6 लोग गंभीर रूप से घायल हैं।

डराने वाले हैं आंकड़े

वर्ष 2019 में रांची में 1850 सड़क हादसे हुए थे। इनमें 350 से अधिक की मौत हुई। इससे पहले वर्ष 2018 में कुल 538 सड़क हादसे हुए थे। इसमें 363 लोगों की मौत हुई, जबकि 328 लोग घायल हुए थे। पिछले साल यानी 2020 में करीब छह महीने तक गाडि़यां नहीं चलीं, इसके बावजूद हादसे कम नहीं हुए। अब तक मिले आंकड़ों के अनुसार रांची में 2020 में 1450 से भी ज्यादा एक्सीडेंट्स हो चुके हैं। इन हादसों में 549 लोगों की जान गई है। इतनी मौतें तब हुई हैं, जब छह महीने तक सड़कें वीरान थीं। यानी लॉकडाउन से पहले के तीन महीने और अनलॉक के बाद के तीन महीनों में ही इतने हादसे हो गए।

स्पीड गवर्नर भी फेल

इन सब के बीच सरकारी तंत्र की सुस्ती का आलम दिखता है और हादसे होते रहते हैं। सूबे में स्पीड गवर्नर की बात की जाये तो इसके नाम पर केवल खानापूर्ति की जा रही है। लगातार हिट एंड रन के केस दर्ज किये जा रहे हैं। चालू कंपनियों के स्पीड गवर्नर वाहनों में लगाये जा रहे हैं। इन स्पीड गवर्नर की टेस्टिंग की भी कोई व्यवस्था नहीं है, जबकि सरकार ने वाहनों के लिए स्पीड गवर्नर को अनिवार्य कर दिया है, लेकिन इसे चेक करने के लिए किसी तरह की कोई व्यवस्था नहीं की गयी है। वाहनों में लगे स्पीड गवर्नर के क्वालिटी की न तो जांच हो रही है और न ही उसपर मुहर लग रही है।

ब्लैक स्पॉट की सिर्फ पहचान

ब्लैक स्पॉटों की पहचान और इसकी सुधार की कई बार योजनाएं बनीं, लेकिन अबतक सुधार की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। कुछ जगहों पर सुधार हुआ, लेकिन अधूरे काम की वजह से हादसों पर लगाम नहीं लगी है। रांची में जो ब्लैक स्पॉट हैं, उनमें कई तीखे मोड़ हैं। कहीं घाटी, तो कहीं डायवर्सन हैं। एफआइआर के आधार पर ये सर्वे किए गए हैं। स्थानीय पुलिस और प्रशासन ने कई बार ऐसी जगहों को दुरुस्त करने के लिए पत्राचार किया है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गयी है।

ब्लैक स्पॉट्स पर हर दिन हादसे

अगर राजधानी रांची की बात की जाए तो ब्लैक स्पॉट पर हर दिन छह सड़क हादसे हो रहे हैं। वर्ष 2019 में रांची में 1850 सड़क हादसे हुए हैं। इनमें 350 से अधिक की मौत हुई है, जबकि वर्ष 2018 में कुल 538 सड़क हादसे हुए। इसमें 363 लोगों की मौत हुई, जबकि 328 लोग घायल हुए हैं। ये आंकड़े डराने वाले हैं और लगातार बढ़ रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि ब्लैक स्पॉट्स को दुरुस्त करने की दिशा में जिम्मेवार कदम नहीं उठा रहे। आंकड़े बताते हैं कि रांची व आसपास मोटरसाइकिल हादसों के साथ-साथ कार एक्सीडेंटथ्स तेजी से बढ़े हैं। यहां प्राइवेट कारों की वजह से जहां 12 प्रतिशत एक्सीडेंट होते हैं, वहीं कॉमर्शियल कारों से होने वाले रोड एक्सीडेंट का आंकड़ा 45 प्रतिशत है। इसकी वजह इन चालकों का अनट्रेंड व कम पढ़ा लिखा होना है।

क्या है ब्लैक स्पॉट्स

ब्लैक स्पॉट्स उन इलाकों को कहा जाता है, जहां अधिक दुर्घटनाओं की आशंका हो। पिछले तीन साल के रिकॉर्ड में जिन इलाकों में पांच दुर्घटनाएं या दस लोगों की मौत हो चुकी हो, उसे ब्लैक स्पॉट के रूप में चिन्हित किया गया है। ऐसे स्पॉट कोई एक निश्चित जगह नहीं बल्कि 500 मीटर तक की रेंज में होते हैं।

80 प्रतिशत मामलों में सिर पर आती है चोट

सड़क दुर्घटना में 80 प्रतिशत घायलों के सिर पर चोट लग रही हैं। कई बार गंभीर चोट लगने से उन्हें बचाना मुश्किल हो जाता है। सड़क हादसों में अधिकतर मौतें सिर पर चोट लगने से होती हैं। थोड़ी सी सतर्कंता से सड़क दुर्घाटनाओं को कम किया जा सकता है।

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सड़क सुरक्षा माह चल रहा है। परिवहन विभाग द्वारा सुरक्षा को लेकर लोगों को अवेयर किया जा रहा है। सड़क हादसे कम हों, इसके लिए परिवहन विभाग लगातार कोशिश कर रहा है। लोगों के सहयोग से इसे कम करेंगे।

प्रवीण प्रकाश, डीटीओ, रांची