RANCHI: केंद्र सरकार विद्युत व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए बदलाव की तैयारी कर रही है। इस सिलसिले में विद्युत अधिनियम (संशोधन) विधेयक-2020 को संसद में रखा जाना है। इस अधिनियम (संशोधन) के विधेयक के मसौदे पर राज्य सरकारों की भी सहमति मांगी गई है। केंद्रीय विद्युत मंत्री राजकुमार सिंह ने 3 जुलाई को वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से राज्यों के मुख्यमंत्रियों/बिजली मंत्रियों के साथ विचार-विमर्श कर उनकी राय जानी। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों द्वारा दिए जाने वाले जरूरी सुझावों को विद्युत अधिनियम (संशोधन) विधेयक में शामिल किया जाएगा। इस मौके पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी विद्युत अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन पर अपने विचार रखने के साथ कई आपत्तियां जताई। उन्होंने कहा कि विद्युत अधिनियम के मसौदे में कमजोर और पिछड़े राज्यों के साथ बिजली उपभोक्तों के हितों को सुरक्षित रखने की व्यवस्था सुनिश्चित हो।

डीवीसी बिजली कटौती नहीं करे

मुख्यमंत्री ने केंद्रीय विद्युत मंत्री से कहा कि राज्य के सात जिलों में डीवीसी के द्वारा बिजली आपूर्ति की जाती है, लेकिन बकाया होने की बात कहकर वह बार-बार कई-कई दिनों तक घंटों बिजली आपूर्ति बाधित कर दी जाती है। खास बात है कि जिन इलाकों में डीवीसी द्वारा बिजली दी जाती है, वहां ज्यादातर औद्योगिक क्षेत्र हैं। ऐसे में डीवीसी द्वारा बार-बार फरमान जारी कर बिजली आपूर्ति काटने पर रोक लगाई जाए। उन्होंने कहा कि डीवीसी ने एकबार फिर बकाया नहीं देने पर बिजली आपूर्ति रोकने की चेतावनी दी है, जबकि वह राज्य सरकार के संसाधनों का पूरा इस्तेमाल करती है। उन्होंने केंद्रीय विद्युत मंत्री को इस बात से भी अवगत कराया कि उनकी सरकार ने इस साल मार्च तक का बकाया डीवीसी को दे दिया है, जबकि जो पहले का बकाया है, वह पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल का है। क्योंकि 2014 में शून्य बकाया था। ऐसे में केंद्र सरकार डीवीसी को यह निर्देश दे कि वह झारखंड की बिजली नहीं काटेगी। राज्य सरकार बिजली लेने के एवज में उसका भुगतान निश्चित करेगी।

गरीबों को सस्ती बिजली मिले

मुख्यमंत्री ने केंद्रीय विद्युत मंत्री को इस बात से अवगत कराया कि झारखंड की एक बड़ी आबादी गरीबी रेखा के नीचे और ग्रामीण इलाके में रहती है। राज्य सरकार इनके घरों में सस्ती दर पर बिजली उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है। अत: विद्युत अधिनियम (संशोधन) विधेयक-2020 में क्रॉस सब्सिडी के मूल्य का निर्धारण करने की शक्ति को राज्य विद्युत नियामक आयोग (एसईआरसी) के साथ बनाए रखा जाए, ताकि घरेलू और कृषि उपभोक्ताओं के टैरिफ का निर्धारण कर सकें। मुख्यमंत्री ने क्त्रॉस सब्सिडी इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन के कार्य क्षेत्र से बाहर निकाल कर नेशनल टैरिफ पॉलिसी के माध्यम से तय करने की प्रक्त्रिया पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इससे राज्य सरकारों की शक्तियों का हनन होगा।

राज्य के क्षेत्राधिकार का हनन

मुख्यमंत्री ने स्टेट इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन के केंद्रीयकरण किए जाने के प्रस्ताव पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह राज्य सरकारों के क्षेत्राधिकारों का हनन होगा। पूरे देश के लिए एक ही कमिटी का गठन करने से कोई अतिरिक्त लाभ मिलने की संभावनाएं बहुत कम है। मुख्यमंत्री ने रिन्यूएबल परचेज ऑब्लिगेशन के तहत एसईआरसी की शक्ति को हटाने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि सभी राज्यों के लिए रिन्यूबल एनर्जी का पोटेंशियल और एडिशनल पावर कैपासिटी की क्षमता अलग-अलग होती है। अत: एकीकृत आरपीओ से राज्य सरकार को नुकसान होगा। इसलिए इसे एसईआरसी के साथ बनाए रखा जाना चाहिए।

सब्सिडी देने की व्यवस्था जारी रहे

एसईआरसी को डिस्पूयट रिड्रेसल के लिए अलग अथॉरिटी बनाने के प्रस्ताव पर आपत्ति जताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि एसईआरसी इन सभी मामलों के लिए सक्षम है और केंद्रीकृत अथॉरिटी से राज्यों की परेशानी बढ़ सकती है। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि वर्तमान में उपभोक्ताओं को सब्सिडी बिजली बिलों में कटौती के माध्यम से हस्तांतरित की जाती है। इस व्यवस्था को आगे भी जारी रखा जाना चाहिए। इस मौके पर मुख्य सचिव सुखदेव सिंह, अपर मुख्य सचिव एल खियांगते, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का और झारखंड राज्य बिजली वितरण निगम के कार्यकारी निदेशक सह झारखंड ऊर्जा संचरण निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक केके वर्मा मौजूद थे।