रांची: राजधानी में क्रिसमस की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। मसीहियों के त्योहार क्रिसमस में अब कुछ ही दिन बचे हैं। बाजारों में भी क्रिसमस की रौनक दिखने लगी है। नवंबर के अंतिम सप्ताह में ही आगमन काल की शुरुआत हो चुकी है। ºीस्त की पवित्रता को जीवन में उतारने का अभ्यास ही आगमन काल है। सिटी के विभिन्न चर्चो में भी क्रिसमस तैयारी होने लगी है। इस बार माहौल थोड़ा बदला हुआ है। कोरोना की वजह से सभी फेस्टिवल को सादगीपूर्ण तरीके से आयोजित किया जा रहा है। डॉ अर्चना तिर्की ने बताया कि इसबार क्रिसमस की तैयारी भी कोरोना से बचने के सभी मापदंडों को मानते हुए की जा रही है। कोरोना काल की वजह से चर्च में सोशल डिस्टेंसिंग के साथ प्रेयर आयोजित होंगे।

पुराने चर्चो में शामिल सेंट मारिया महागिरजाघर

रांची के पुराने चर्चो में एक सेंट मारिया महागिरजाघर की स्थापना 1906 में हुई थी। दरअसल, सिटी में धीरे-धीरे विश्वासियों की संख्या बढ़ती गई, जिसे देखते हुए बड़े गिरजाघर की जरूरत महसूस हुई। ऐसे में अल्फ्रेड लेम्बन ने इस गिरजाघर को डिजाइन किया। आर्चबिशप म्यूलमैन ने 20 मई 1906 में सेंट मारिया गिरजाघर की नींव रखी। इस चर्च को पूरा बनने में तीन वर्ष लग गए। ढाका के बिशप हर्ट ने 30 अक्टूबर 1909 में इसका उद्घाटन किया, जिसकी लंबाई 61 मीटर, ऊंचाई 35 मीटर और चौड़ाई 36 मीटर है। चर्च में दो घंटाघर हैं। यहां एक मुख्य बेदी है, जहां मिस्सा-आराधना की जाती है। चर्च के अंदर 14 खंभे हैं, जिसमें 12 के पास संतों की मूर्तियां स्थापित हैं। इस चर्च में 10 बड़े दरवाजे हैं। इसमें मुख्य बेदी के अलावा 8 छोटी बेदियां भी हैं। इनमें दैनिक मिस्सा पूजा की जाती है।

क्रिसमस का संदेश

ख्रीस्त की पवित्रता जीवन में उतारने का अभ्यास है आगमन काल

मसीहियों के लिए आगमन काल मात्र एक माह की आध्यात्मिक तैयारी या सक्रियता नहीं, बल्कि आजीवन ºीस्तीय आदर्शो पर जीने का अभ्यास है। यह तभी संभव है, जब मसीही प्रतिदिन प्रार्थना में प्रभु की संगति करें। अपने जीवन के हर कार्य और व्यवहार में ईश वचनों को आत्मसात करें। दूसरों के साथ परस्पर मेल-मिलाप रखें। पाप रहित जीवन जीएं। दूसरों के साथ दया, करुणा, सेवा और क्षमाशील बनें। येसु ºीस्त संसार में इसलिए आए कि अपनी पवित्रता का स्वरूप दूसरों में बांट सकें। उन्होंने मानव जीवन जीते हुए दूसरों के साथ नि:स्वार्थ प्रेम, सेवा और क्षमाशीलता में बढ़ने का संदेश दिया। आज के युग में मनुष्य सृष्टिकर्ता ईश्वर के वरदान और कृपादानों को महत्व देने के बजाय बाहरी चकाचौंध और क्षणिक सुख की दौड़ में इतना रम गया है कि ईश्वर से काफी दूर, पाप, भ्रष्टाचार, द्वेष, नफरत कलह के दलदल में गिरता जा रहा है। इन सभी को त्यागते हुए मनुष्य को करुणा और दया का भाव लेकर जीवन में आगे बढ़ना चाहिए।

- फा। नेल्सन बारला, पल्ली पुरोहित, सामलोंग, रांची