रांची(ब्यूरो)। स्मार्टफोन बेशक आज की बड़ी जरूरत है, लेकिन इसकी गुलामी बेहद महंगी पड़ सकती है। एक तो मोबाइल के अत्यधिक इस्तेमाल से आपको कई तरह के शारीरिक विकार का सामना करना पड़ सकता है, वहीं साइबर स्पेस में खुद को पूरी तरह से बे-पर्दा करने के कारण अपराधियों के निशाने पर आ सकते हैं। कुल मिलाकर मोबाइल का अत्यधिक इस्तेमाल या फिर इसकी गिरफ्त में आना आपकी जान और माल दोनों के लिए महंगा साबित हो सकता है। इसलिए, यह जरूरी है कि जरूरत पडऩे पर ही मोबाइल फोन का इस्तेमाल करें और कभी इसकी गिरफ्त में खुद को आने न दें। ये विचार पुंदाग स्थित लाला लाजपत राय सीनियर सेकेंड्री स्कूल में आयोजित अवेयरनेस वर्कशॉप में उभरकर सामने आया। 'दैनिक जागरण-आईनेक्स्टÓ की ओर से चलाए जा रहे अभियान 'फेक फ्रेंड्सÓ के तहत इस वर्कशॉप का आयोजन किया गया। इसमें एक्सपर्ट के रूप में लालपुर थाना प्रभारी इंस्पेक्टर आदीकांत महतो और सीआईपी रांची के क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ संजय कुमार मुंडा मौजूद थे। हजारों की संख्या में मौजूद बच्चों को दोनों विशेषज्ञों ने डिजिटल स्पेस में खुद को सुरक्षित रखने के उपाय भी बताए। यहां प्रस्तुत है इस वर्कशॉप में दिए गए टिप्स का सार :
पहले शौक फिर लत
सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ साइकियाट्रि(सीआईपी) के क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ संजय कुमार मुंडा ने बच्चों को मोबाइल के प्रति अवेयर रहने की सलाह दी। उन्होंने कहा की शुरुआत में पेरेंट्स अपने बच्चों को शौक के लिए मोबाइल देते हैं, लेकिन यह शौक धीरे-धीरे उनकी आदत बन जाती है, उसके बाद यही आदत उनके लिए लत बन जाती है। इसलिए बच्चों को मोबाइल से बचने की जरूरत है। मोबाइल की जरूरत जिंदगी में है लेकिन इसके लिए एक समय तय करना होगा कि कितनी देर तक मोबाइल देखेंगे। मोबाइल में कौन सा कंटेंट देख रहे हैं, यह भी बहुत महत्वपूर्ण है। मोबाइल पर अगर बच्चों को ब्लैकमेल कर रहा है तो बिना डर के अपने पेरेंट्स से जरूर शेयर करें। बच्चों को अपना मेंटल हेल्थ मजबूत रखना बहुत जरूरी है। मेंटल हेल्थ मजबूत रखने से उनको डिसीजन लेने में, पढऩे में, करियर बनाने में मदद मिलती है। जो बच्चे बहुत अधिक मोबाइल देख रहे हैं उनके ग्राउंड पर दोस्त कम बनते हैं। वह अकेले रहना चाहते हैं। बच्चों की लाइफ स्टाइल मोबाइल के कारण बदल रही है। उनमें चिड़चिड़ापन आ रहा है। उनको भूख कम लगती है। बहुत अधिक मोबाइल देखने के कारण आजकल बच्चे बीमार भी हो रहे हैं, इसके लिए जो बड़े बच्चे हैं, उनको खुद से एक बाउंड्री बनानी होगी। मोबाइल यूज का लिमिट तय करना होगा। ओपीडी में ऐसे बच्चे पहुंच रहे हैं जो सपनों की दुनिया में अधिक रहते हैं। पढ़ाई पर कम फ ोकस करते हैं, मोबाइल का इस्तेमाल लोगों को गुलाम बना रहा है। स्कूल और पेरेंट्स दोनों को मिलकर इस पर मॉनिटरिंग करने की जरूरत है।
सोशल साइट पर प्राइवेसी जरूरी
साइबर एक्सपर्ट इंस्पेक्टर आदिकांत महतो ने स्कूल के बच्चों को साइबर सिक्योरिटी के बचाव के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि जिस तरह से आप अपने घर की सुरक्षा करते हैं उसी तरह से सोशल साइट पर अपने प्रोफ ाइल की भी सुरक्षा करें। जैसे घर में कोई भी व्यक्ति जिसको नहीं जानते हैं वो नही आ सकता है। उसी तरह सोशल साइट पर भी जिसको नहीं जानते हैं उसको दोस्त ना बनाएं। बिना जानने वाले लोगों को सोशल साइट पर अपना दोस्त बनाने के कारण आप अपनी प्राइवेसी ऐसे लोगों के साथ शेयर कर रहे हैं जो इसका गलत फ ायदा उठा सकते हैं। मोबाइल पर पासवर्ड और सिक्योरिटी लगाना बहुत जरूरी है, ताकि इसका कोई गलत इस्तेमाल ना करे। अगर कोई इस्तेमाल किया हुआ फ ोन किसी दूसरे को दे रहे हैं तो उसे रिसेट करके और पूरी तरह से सारा डाटा डिलीट करने के बाद ही इस्तेमाल करने के लिए दें, नहीं तो इसका गलत इस्तेमाल भी दूसरा व्यक्ति कर सकता है। सोशल मीडिया पर अपनी बहुत प्राइवेट चीजों को शेयर करने की जरूरत नहीं है। पर्सनल चीजों को शेयर करने से लोग इसका गलत इस्तेमाल भी करते हैं। आजकल पेरेंट्स अपने बच्चों को मोबाइल तो दे देते हैं लेकिन उस पर मॉनिटर नहीं करते हैं। बच्चे कौन सा कंटेंट देख रहे हैं कौन से लोगों के साथ जुड़े हुए हैं, इसकी मॉनिटरिंग करनी जरूरी है। बच्चों को खुद से यह समझने की जरूरत है कि सोशल साइट एक अलग दुनिया है, जहां आपको अपने लिए खुद समझदार बनकर दोस्त बनाना है, कंटेंट डालना है, मोबाइल से क्या सीखना है, यह खुद तय करना होगा।
बोले प्रिंसिपल
दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की ओर से स्कूल के बच्चों के साथ साइबर सिक्योरिटी और मेंटल हेल्थ को लेकर इंटरैक्शन किया गया। यह बच्चों को बहुत मदद करने वाला प्रोग्राम है। बच्चों को अभी से ही यह जानना है कि मोबाइल उनके जीवन में किस तरह से एक फेक फ ्रेंड के रूप में जुड़ा हुआ है। आपको अपने जीवन में रियल दोस्त बनाने की जरूरत है। करियर आगे बढ़ाने के लिए मेंटल हेल्थ मजबूत रखना जरूरी है।
-पीके ठाकुर, प्रिंसिपल, लाला लाजपत राय सेकेंड्री स्कूल, रांची

क्या कहते हैं स्टूडेंट्स
हम लोग मोबाइल का इस्तेमाल तो करते हैं लेकिन कितना इस्तेमाल करना है यह अपने कंट्रोल में नहीं रहता है। अब इस सेशन के बाद यह समझ में आ रहा है कि मोबाइल का इस्तेमाल एक लिमिट तक करने से इसका लाभ है। ऐसा नहीं करने से पढ़ाई पर और दिमाग पर भी इसका बुरा असर पड़ता है।
राजकुमार

सोशल मीडिया पर सबसे बड़ी परेशानी होती है कि जो नहीं जानते हैं वह भी फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज देते हैं। हम कुछ लोगों को नहीं जानते हैं उनका भी फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर लेते हैं। अब इस सेशन के बाद यह समझ में आ गया है कि जिन लोगों को नहीं जानते हैं, उनको फ्रेंड नहीं बनाना है।
अनुराग राजहंस

सोशल साइट पर कितना अधिक समय देना है इसकी लिमिट खुद से तय करनी होगी। अभी मोबाइल देखते हैं तो बहुत देर तक देखते ही रह जाते हैं। लेकिन एक्सपर्ट द्वारा जो बताया गया कि मोबाइल का इस्तेमाल कुछ देर के लिए किया जाए तो यह पढ़ाई में और जानकारी के लिए भी मदद करता है।
अरगान आलम

मोबाइल पर सोशल साइट की सुरक्षा को लेकर जो बताया गया, उससे बहुत कुछ सीखने को मिला है। मोबाइल इस्तेमाल करने के समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि हम किन लोगों के संपर्क में है, वह फेक दोस्त हैं या रियल दोस्त हैं। रियल दोस्तों को ही अब सोशल साइट पर फॉलो करेंगे और उन्हीं के साथ इंट्रैक्शन करेंगे।
हिमांशु शर्मा

आजकल मोबाइल पर बहुत सारे ऐसे लोग भी फोटो लाइक या कमेंट करते हैं जिनको हम लोग नहीं जानते हैं। लेकिन लाइक और कमेंट करते करते उनके साथ एक दोस्ती जैसी हो जाती है। अब इस सेशन के बाद यह समझ में आ रहा है कि जिन लोगों को जानते हैं या रेफ रेंस द्वारा जिन लोगों को जानते हैं, उन्हीं के साथ दोस्ती करनी है।
आकांक्षा अग्रवाल

इस सेशन से यह समझ में आया कि अगर मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं तो उसको पूरी तरह से सुरक्षित रखने की जरूरत है। व्हाट्सएप, फेसबुक, मैसेंजर, ट्विटर, इंस्टाग्राम सभी नेटवर्किंग साइट पर सिक्योरिटी और पासवर्ड लगाने के बाद ही मोबाइल का इस्तेमाल करना है, ताकि इसका कोई गलत इस्तेमाल ना करे।
अनिष्का कुमारी

इस सेशन के बाद मोबाइल का इस्तेमाल एक लिमिट तक करेंगे। हम लोगों के पास मोबाइल रहता है और मोबाइल का कितना देर तक इस्तेमाल करते हैं इसका कोई आइडिया नहीं रहता है। बहुत देर तक मोबाइल देखने से सिर दर्द और आंख दर्द भी होने लगता है, लेकिन मोबाइल देखते रहते हैं।
खुशी कुमारी