रांची: राजधानी रांची समेत राज्य भर में कोरोना की दूसरी लहर ने कोहराम मचा रखा है। पहली लहर में प्रतिदिन मरीजों की संख्या के भयानक लगने वाले आंकड़े दूसरी लहर में मामूली लगने लगे हैं। रांची में प्रतिदिन मिलने वाले मरीजों की संख्या अब खतरनाक ढंग से बढ़ रही है। कोरोना संक्रमण के साथ ही साथ मरीजों में अब मानसिक अस्वस्थता भी नजर आने लगी है। हालत यह हो गई है कि कोरोना पॉजिटिव आते ही मरीज के साथ ही साथ पूरा परिवार तनाव तथा हताशा में आने लगा है। इससे बचने के लिए चिकित्सकों ने परामर्श के साथ ही साथ योग तथा प्राणायाम की भी सलाह दी है।

मानसिक तनाव बढ़ाने में सोशल मीडिया बहुत कारण है

सीआइपी के मनोचिकित्सक डॉ संजय कुमार मुंडा बताते हैं कि इन दिनों मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तथा सामान्य चर्चा में केवल कोरोना के भयावह आंकड़ों का ही बोलबाला है। स्थिति यह हो गई है कि कोरोना के भयावह आंकड़े तथा कोरोना संक्रमण से होने वाली मौतों ने लोगों को बुरी तरह से डरा दिया है। कोरोना संक्रमण का असर इतना अधिक हावी हो गया है कि संक्रमित होने की जानकारी मिलते ही मरीज से लेकर उनके परिजन तक हताश हो रहे हैं, जो उचित नहीं है। कोरोना संक्रमण के बाद कई मरीजों में बेवजह रोने, खाना नहीं खाने, नींद ना आने तथा बार-बार बुरे सपने देखने जैसी शिकायतें मिल रही हैं। कोरोना संक्रमण का इतना अधिक डर हो गया है कि संक्रमित मरीज जाने-अनजाने अवसाद, हताशा जैसी अन्य दूसरी बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। संक्रमण के बाद कोरोना से तो मरीज को ठीक होने में बमुश्किल पखवाड़े भर का ही समय लगता है परंतु मरीजों में डर इतना अधिक हावी हो गया है कि इस बीमारी से मरीज कब तक उबरेगा, यह बताना अब कठिन हो रहा है।

धैर्य से काम लेने का समय

बीमारी के संक्रमण से मरीज के मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। डॉ संजय कुमार मुंडा ने कोरोना पॉजिटिव आने पर धैर्य से काम लेने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि पॉजिटिव आने पर घबराएं नहीं, बल्कि आइसोलेट हो जाएं। अपनी शारीरिक व मानसिक समस्या की पहचान करें। पहले स्वयं महसूस करें कि क्या आपको घबराहट हो रही है या सांस लेने में दिक्कत है। क्या आप नकारात्मक विचारों से घिर रहे हैं, नींद की समस्या हो रही है।

महामारी का नींद पर असर

रातू रोड के रहने वाले अरविंद कुमार बताते हैं कि मेरे पिताजी रामानंद कुमार पॉजिटिव हो गए हैं। उनको हम लोगों ने घर पर ही आइसोलेशन में रखा है। लेकिन हम सब परिवार वालों को डर सता रहा है कि कहीं हमें भी तो कोरोना नहीं हो गया। जबकि कोरोना का कोई भी लक्षण हमारे परिवार के दूसरे सदस्यों को नहीं है, लेकिन इस डर के कारण रात भर हम लोग सो नहीं पा रहे हैं।

आइसोलेशन वाले ज्यादा परेशान

डॉ संजय कुमार मुंडा बताते हैं कि जो लोग आइसोलेशन में घर पर हैं वो बहुत अधिक परेशान हो जा रहे हैं। आइसोलेशन के दौरान ईटिंग डिसऑर्डर (असामान्य भोजन करना) के शिकार हो गए। ईटिंग डिसऑर्डर के कारण तनाव, अकेलापन और अन्य मानसिक विकार पैदा हो सकते हैं। हालांकि यह सिर्फ आइसोलेशन के वक्त नहीं होता है, बल्कि भोजन से दूर होने की चिंता और अपराधबोध के कारण भी हो सकता है।

संक्रमित नहीं, लेकिन हैं बीमार

पहली बार लक्षण दिखाई देने के बाद से कुछ लोग कोविड-19 से महीनों या कई सप्ताह से ठीक नहीं हुए हैं। कुछ लोग कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं रहे, लेकिन लंबे समय तक वे सांस और न्यूरोलॉजिकल प्रभावों को अनुभव करते हैं, क्योंकि वे कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं हैं, मानसिक प्रभाव भी आखिर में ऐसे ही होते हैं।