रांची: राजधानी रांची में बने अवैध भवनों को तोड़ने का आदेश जारी होते ही शहर में हड़कंप की स्थिति बनी हुई है। घर तोडे़ जाने के आदेश से जहां एक ओर अवैध निर्माण करने वाले भयभीत हैं वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों एवं संस्थाओं ने इस आदेश का विरोध भी शुरू कर दिया है। रांची नगर निगम के डिप्टीमेयर संजीव विजयवर्गीय भी मुखर रूप से इस आदेश के विरोध में मैदान में उतर चुके हैं। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की ओर से रविवार को इसी विषय पर वेबिनार का आयोजन किया गया। इसमें एनक्रोचमेंट, नगर निगम द्वारा जारी आदेश एवं इसके उपाय पर चर्चा की गई। वेबिनार में डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय, चैंबर अध्यक्ष प्रवीण जैन छाबड़ा, अपर बाजार निवासी सुरेश अग्रवाल और शैलेश अग्रवाल भी शामिल हुए।

सिर्फ नगर निगम दोषी नहीं, 2011 के बाद से मिला नक्शा पास का काम: डिप्टीमेयर

इस गंभीर विषय पर डिप्टीमेयर संजीव विजयवर्गीय ने कहा कि सारी गलती नगर निगम की नहीं है। निगम सरकार के इशारों पर काम करता है। नगर निगम को 2011 के बाद भवनों का नक्शा पास करने का अधिकार मिला है। इससे पहले आरआरडीए नक्शा पास करता था। नगर निगम क्षेत्र में कई भवन हैं, जो अवैध है, उन्हें तोड़ने के बजाय वैध करने पर ज्यादा ध्यान दिया जाए तो बेहतर होगा। डिप्टी मेयर ने कहा कि रेगुलराइजेशन को लेकर 2012-13 में बिल लाया गया था। लेकिन काफी जटिल होने के कारण लोग इसका फायदा नहीं उठा पाए। भवन वैध करने के लिए उस वक्त 874 आवेदन भी आए थे, जिसमें 100 भवनों को भी रेगुलराइज नहीं किया जा सका। फिर एक रेगुलराइजेशन एक्ट लाने की जरूरत है। वो सरल हो, ताकि अधिक से अधिक लोग इसका फायदा उठा सकें।

नदी-नालों का एनक्रोचमेंट हटे

डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय ने कहा कि नदी, नालों समेत अन्य सभी जलाशयों में एनक्रोचमेंट करना बिल्कुल गलत है। इस पर कार्रवाई जरूर होनी चाहिए। लेकिन शहर में 30-40 साल पहले बने भवन जिनका किसी कारणवश नक्शा पास नहीं हो सका है। ऐसे मकानों को वैध करने पर ध्यान जरूर देना चाहिए। इसके लिए सरकार को सरल नीति लाने की जरूरत है, जिसमे डोमेस्टिक और कॉमर्शियल दोनो भवनों को रेगुलराइज किया जा सके। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसका फायदा उठाएं। डिप्टी मेयर ने सभी संस्थाओं से भी इस दिशा में आगे आने की अपील की है।

पुराने घरों को तोड़ना ठीक नहीं

अपर बाजार निवासी व सोशलवर्कर सुरेश अग्रवाल ने कहा कि नगर निगम तानाशाही रवैया अपना रहा है। 40-50 साल पहले बने मकानों को तोड़ने का आदेश बिल्कुल अव्यावहारिक है। उन्होंने कहा कि जब मकान बनता है उस वक्त नगर निगम के अधिकारी-पदाधिकारी और इंजीनियर कहा रहते हैं। लेकिन मकान बन जाने के बाद इनकी नींद खुल जाती है। उन्होंने कहा कि 60 साल पहले रांची की परिस्थिति और यहां की भौगोलिक दशा कुछ और थी। आज कुछ और है। ऐसे में भवनों को तोड़ने के बजाय इन्हें रेगुलराइज कराने की नियमावली आनी चाहिए।

टैक्स वसूलेंगे तो मकान अवैध कैसे

चैंबर अध्यक्ष प्रवीण छाबड़ा ने इस संबंध में कहा कि कोर्ट की ओर से नदी, नालों और जलाशयों को एनक्रोचमेंट फ्री करने का आदेश दिया गया था। लेकिन नगर निगम ने अवैध भवनों को तोड़ने का आदेश जारी कर दिया है। दोनों अलग विषय है। निगम ने दोनों को मिला दिया। 1974 में बिल्डिंग बायलॉज जब था ही नहीं, रांची में उस वक्त के भवन बने हुए हैं। नगर निगम होल्डिंग टैक्स, पानी कनेक्शन और टैक्स वसूलता रहा है। लेकिन अब उन्हीं भवनों को तोड़ने का आदेश जारी करके तानाशाही रवैया अपना रहा है। नगर निगम को सभी अवैध भवनों को वैध बनाने के लिए रेगुलराइजेशन की आसान नीति लानी बेहद जरूरी है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को फायदा मिल सके। साथ ही सरकार को राजस्व की भी प्राप्ति हो सके।

आशियाना तोड़ना जायज नहीं

इस विषय पर शैलेश अग्रवाल ने कहा कि पेनडेमिक के समय सरकार या नगर निगम को इस तरह के ऑर्डर पास नहीं करने चाहिए। लोग पहले से ही टूटे हुए हैं, इस तरह के आदेश से लोगों को काफी तकलीफ होगी। आखिर सरकार व नगर निगम लोगों की सहायता के लिए बने हैं न, परेशान करने के लिए तो नहीं। लोगों की तकलीफें बढ़ाने किसी हालत में जायज नहीं है। आखिर एक घर बनाने में लोगों को कितनी परेशानियां होती हैं, ये तो बनाने वाले ही जानते हैं। वहीं, जब निर्माण हो रहा था तभी क्यों नहीं रोका गया।