रांची (ब्यूरो)। अपराध के बदलते तरीकों के साथ-साथ इससे निपटने के लिए पुलिस को भी हाईटेक होने की जरूरत है। इसे देखते हुए पुलिस विभाग की ओर से तैयारी शुरू कर दी गई है। अपराधियों पर पैनी निगाह रखने के लिए पुलिस हर संभव प्रयास कर रही है। आने वाले दिनों में इसे और मजबूत किए जाने की योजना है। वैसे अपराधी जिन्हें पुलिस गिरफ्तार करेगी, उनके डिजिटल रिकार्ड को रखा जाएगा। इन अपराधियों का डीएनए से लेकर हाथ-पैर के प्रिंट, आंख और बाल की भी रिपोर्ट ली जाएगी। यहां तक की रेटिना और नाखून की भी रिपोर्ट रखी जाएगी।

चकमा देना आसान नहीं

डिजिटल डेटाबेस की मदद से भविष्य में भी अपराध किए जाने पर संबंधित अपराधी तक पुलिस आसानी से पहुंच सकेगी। उसे अरेस्ट करने में भी पुलिस को आसानी होगी। अमूमन यह देखा जाता है कि क्रिमिनल फर्जी आईडी और दूसरे दस्तावेजों के सहारे पुलिस को चकमा देने की कोशिश करते हैं। लेकिन डिजीटल डेटा तैयार होने के बाद अपराधी पुलिस को चकमा नहीं दे सकेंगे। कोई भी अपराधी किसी वारदात को अंजाम देते वक्त कोई न कोई सुराग जरूर छोड़ता है। इसी सुराग और डिजीटल डेटा की मदद से पुलिस संबंधित अपराधी को दबोच लेगी।

75 साल सेफ रहेगी डेटा

यह डिजीटल डेटा आने वाले 75 सालों तक सुरक्षित रखने के उद्देश्य से तैयार की जाएगी। पुलिस अधिकारियों के अनुसार, यह आपराधिक पहचान और सत्यापन डेटा मजबूत होगा और यदि कोई व्यक्ति दूसरी बार कोई अपराध करता है तो उसे डेटाबेस के आधार पर आसानी से पकड़ा जा सकेगा। डाटाबेस तैयार करने की जिम्मेवारी सीआईडी को दी गई है। सीआईडी की ओर से इस पर वर्क शुरू कर दिया गया है। सभी जिलों के एसपी को इस संबंध में निर्देश जारी कर जल्द से जल्द सभी अपराधियों की सूची उपलब्ध कराने को कहा गया है।

43 बिंदुओं पर डाटाबेस

अपराधियों का डेटा तैयार करने के लिए 43 प्वाइंट चिन्हित किए गए हैं। अपराधियों का पर्सनल डिटेल जैसे अपराधी की हाइट, वेट, फिंगरप्रिंट, फूट मार्क, डीएनए, बाल, आंख, रेटिना, डीएनए सैंपलिंग प्रोफाइल, उच्चारण, बोल चाल की स्टाईल आदि शामिल हैं। यदि कोई अपराध होता है तो अपराधियों का पता लगाने और उसे ट्रैक करने में इसका इस्तेमाल किया जाएगा। डेटाबेस के अनुसार हर अपराधी को यूनिक आईडी नंबर दिया जाएगा। डेटा के रिकार्ड जांच के लिए आने वाले समय में संग्रह प्रणाली और माप नियंत्रण इकाई भी स्थापित की जाएगी।

ये जानकारियां जुटाएगी पुलिस

केस नंबर, थाना, अपराधी का नाम, उम्र, जन्म दिन, पिता का नाम, पिता की उम्र, पिता का बैकग्राउंड, आईडेंटिफिकेशन मार्क, क्रिमिनल स्टेटस, ईमेल आईडी, ड्राइविंग लाइसेंस, आधार कार्ड, पैन कार्ड, पोस्ट ऑफिस अकांउट, एलआईसी या हेल्थ इंश्योरेंस की जानकारी, वोटर आईडी, मोबाइल नंबर, सोशल मीडिया प्लेटफार्म, व्हाटसएप, फेसबुक समेत अन्य पूरी जानकारी, अपराधी का वर्तमान और स्थायी पता, जन्म से अब तक का निवास स्थान, मैरिटल स्टेटस, पत्नी और गर्लफ्रेंड की जानकारी, शैक्षणिक योग्यता, भाषा का ज्ञान, शारीरिक जानकारी आदि।

दूसरी बार अपराध में तुरंत होगी पहचान

पुलिस विभाग द्वारा तैयार किए जा रहे आइडेंटिफिकेशन व वेरिफिकेशन का डाटा काफी स्ट्रांंग होगा। प्रत्येक आपराधिक वारदात में जेल जाने वाले आरोपी के आधार से लेकर पूरी जानकारी सॉफ्टवेयर में दर्ज की जाएगी। जब भी कोई व्यक्ति दूसरी बार अपराध करेगा तो डाटाबेस में डिटेल डालते ही अपराधी की पूरी जानकारी पुलिस के पास मौजूद होगी। अपराधियों के पर्सनल डिटेल से लेकर उसके द्वारा की गई क्राइम एक्टिविटी के डिटेल फौरन आ जाएगी। मर्डर केस, बलात्कार एवं सात साल से अधिक सजायाफ्ता अपराधियों का अनिवार्य रूप से डीएनए प्रोफाइल तैयार किया जाएगा। जबकि जिन मामलों में अपराधी को सात साल से कम सजा हुई है उस संदर्भ में डीएनए प्रोफाइल के लिए अपराधी की सहमति लेना भी जरूरी होगा। यदि कोई अपराधी डेटा एकत्र करने में सहयोग करने से इनकार करता है तो उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर अलग से कानूनी कार्रवाई होगी।

सभी क्रिमिनल्स की डीएनए सैंपलिंग की जानी है। इस दिशा में पहल शुरू हो चुकी है। सभी जिलों से रिपोर्ट तैयार करवाई जा रही है।

-एस कार्तिक, एसपी, सीआईडी