रांची(ब्यूरो)। सिटी के बीचोबीच एक कॉलोनी है पथलकुदवा, करीब दस हजार से अधिक आबादी यहां रहती है। लेकिन यहां पीने के लिए साफ पानी तक नसीब नहीं है। अरबों रुपए सरकार स्वच्छ पानी पिलाने पर खर्च कर रही है, लेकिन यहां के लोगों को जहरीला पानी ही नसीब है। दरअसल, इस इलाके में पानी में आर्सेनिक की मात्रा बहुत अधिक पाई गई है, जिसके कारण वर्षों से यहां के वाशिंदों को सप्लाई वाटर पर निर्भर रहना पड़ता है। यहां ग्राउंड वाटर से लोग सिर्फ घर की सफाई और कपड़े धोने का काम करते हैं।

पानी से बीमारी

इस इलाके में आर्सेनिक युक्त जल पीने के कारण लोग कई तरह की बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। यहां भूजल में आर्सेनिक तत्व की मात्रा काफी बढ़ी हुई है। जो सरकार द्वारा निर्धारित मानक से काफ अधिक है।

सरकार ने तय किया है मानक

आर्सेनिक एक ऐसा विषैला तत्व है, जिसका अधिक मात्रा में सेवन किया जाए तो यह कैंसर समेत कई तरह की बीमारियों उत्पन्न कर देता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पीने के पानी में आर्सेनिक की प्रति लीटर मात्रा शून्य दशमलव शून्य एक मिग्रा तय की हुई है, जबकि भारत सरकार ने शून्य दशमलव शून्य पांच मिग्रा तक आर्सेनिक का मानक तय किया हुआ है। पीने के पानी में इससे अधिक आर्सेनिक होना स्वास्थ्य के लिए जानलेवा सिद्ध हो सकता है। आर्सेनिक की मात्रा सरकार द्वारा निर्धारित मानक से अधिक पाई गई है।

इन बीमारियों का है खतरा

डॉक्टरों के अनुसार, आर्सेनिक वाले पानी का लगातार सेवन लंबे समय तक करते रहने से कई तरह की बीमारियां लोगों को होती है। इससे शारीरिक कमजोरी, थकान, टीबी, सांस संबंधी रोग, पेट दर्द, खून की कमी, बदहजमी, वजन में गिरावट, आंखों में जलन, त्वचा संबंधी रोग तथा कैंसर जैसी बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं।

सैंपल टेस्ट में हुई है पुष्टि

राजधानी के पथलकुदवा में पानी में आर्सेनिक मिलने के बाद भूगर्भ जल निदेशालय और पेयजल विभाग की ओर से जांच भी कराई गई थी। रांची जिले में भूगर्भ निदेशालय के करीब 20 ऑब्जर्वेशन वेल हैं। वहां से सैंपल लेकर जांच कराई गई थी। उसमें भी ग्राउंड वाटर में आर्सेनिक पाया गया था। यहां बोरिंग में अमूमन 34 से 40 फ ट की गहराई के बाद पानी है। ऐसे लेवल पर आर्सेनिक का मिलना चिंताजनक है।

सप्लाई पानी पर निर्भर हैं इलाके के सभी लोग

इस इलाके में रहने वाले लोग पूरी तरह से सप्लाई पानी पर निर्भर रहते हैं। जब कभी सप्लाई पानी धोखा दे देता है, या पानी गंदा आ जाता है तो यहां के लोगों के पास कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है। सप्लाई पानी कई दिनों तक लोग स्टॉक में रख लेते हैं, ताकि उनके साथ धोखा ना हो जाए। गर्मी के दिनों में तो पानी सप्लाई कभी-कभी नहीं होती है, वैसी स्थिति में लोग खरीदकर पानी पीते हैं। इस इलाके से जो पानी निकलता है उसका इस्तेमाल लोग नहीं के बराबर करते हैं। खाना बनाने से लेकर नहाने और कपड़ा धोने तक के लिए लोग इसी पानी का इस्तेमाल करते हैं।

बीआईटी मेसारा ने डिजाइन किया है फिल्टर

इस इलाके के पानी से आर्सेनिक निकालने के लिए बीआईटी मेसरा द्वारा एक डिजाइन भी तैयार किया गया है, इस इलाके में प्रारंभिक चरणों में फिल्टर की 4 इकाई स्थापित की गई है। इससे विभिन्न भूजल स्थितियों में इसके आर्सेनिक निस्पंदन की जांच की गई। इसकी क्षमता की पूरी जांच बिरला प्रौद्योगिकी संस्थान मेसरा के लैब में की जा चुकी है। यह पानी को आसानी से फिल्टर कर सकता है। यह फिल्टर पानी से आर्सेनिक जैसे घातक पदार्थ को निकालने में पूरी तरह से सक्षम है। बीआईटी मेसरा संस्थान में आसानी से मिलने वाले पदार्थोंं से बना है। इसे चलने के लिए बिजली या टंकी की आवश्यकता नहीं पड़ती है। फि ल्टर के विकास में इस बात का ध्यान रखा गया था कि इसे चलाने में ऊर्जा की खपत न हो, इससे फिल्टर को हर परिस्थिति में सुलभ करना आसान होगा। आर्सेनिक के अलावा फिल्टर आयरन, फ ास्फेट, मैंगनीज जैसे रासायनों को भी विश्व स्वास्थ्य संस्था के अधिनियमित मात्रा तक लाता है। यह फि ल्टर प्रति दिन 200 से 240 लीटर तक जल को शुद्ध कर सकता है। इसका अर्थ है कि 10-12 लीटर प्रति घंटे पानी को शुद्ध किया जा सकता है। वहीं प्रति लीटर पानी को शुद्ध करने का खर्च केवल 0.03 रुपये आएगा।