रांची (ब्यूरो)। प्रसिद्ध साहित्यकार रणेन्द्र ने कहा कि राग दरबारी एक ऐसा उपन्यास है जो शिवपाल गंज के माध्यम से अपने समय और समाज का प्रतिनिधित्व करता है। शिवपाल गंज नाम के इस गांव में जो भ्रष्ट ता है उसे संभवत देश के पतन शील इतिहास के प्रतीक के रूप में देखा जा सकता है .राग दरबारी उपन्यास स्वतंत्र भारत में जीवन मूल्यों में आए पतन की ओर इंगित करता है। श्रीलाल शुक्ल के यह व्यंग्यात्मक उपन्यास राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और गांधीवादी कवियों रचनाकारों द्वारा बड़ी मेहनत से गढी गई अहो ग्रामीण जीवन की रूमानी छवि को बुरी तरह ध्वस्त करता है। दूसरी ओर नेहरू युग ने पवित्र संविधान और लोक कल्याणकारी राज का जो भ्रामक मिथक खड़ा किया था वह भी यहां भरभरा कर मुंह के बल पसरा हुआ नजर आता है .राग दरबारी मूलत:जीवन का हास्य चित्र है निंदोपाख्यान है सैटायर के अर्थ में। पर सैटायर लिखना तो उपन्यास लिखने से भी अधिक मुश्किल है। राग दरबारी की जो संरचना है वह अद्भुत है इसमें कोई एक व्यक्ति विशेष नायक या नायिका नहीं है। बल्कि इसके सभी पात्र अपने अपने चरित्र को बखूबी प्रस्तुत करते हैं। खासकर राग दरबारी की भाषा हंसते -हंसाते हमें बहुत सारी बातें सहजता से बता जाती है। भारतीय समाज में सामाजिक सांस्कृति अव मूल्यन की कथा जिस भाषा शैली में इस उपन्यास में कही गई है वह अद्भुत है। अंतत: इस उपन्यास की एक बड़ी उपलब्धि है की कद्दावर क्रूर लुटेरे,,अमानुषिक और भ्रष्ट समुदाय को चैन की सांस लेने का अवसर देता है और उन्हें आश्वस्त करता है कि उनके पाप चिंतनीय नहीं है। कीचड़ तो गली-गली गांव-गांव फैली हुई है संयोगवश ही व्यवस्था के कुकर्म को अपने आप में निरापद करने का यह एक बड़ा रचनात्मक प्रयास बन गया है और यही इस व्यवस्था में उपन्यास की लोकप्रियता का राज भी है.इस तरह राग दरबारी सचमुच एक दरबारी गायन है राग दरबारी का संबंध संगीत से नहीं बल्कि स्वतंत्र भारत में उपजे दरबार के उन दरबारियों से है जो दिन रात चापलूसी में रहते हैं और भ्रष्ट व्यवस्था को बनाए रखने में अपना योगदान देते हैं। स्वागत वक्तव्य देते हुए प्रोफेसर इंचार्ज फूलमनी धान ने कहा कि राग दरबारी उपन्यास भारतीय गांव के पतन की कहानी कहता है .यह एकल व्याख्यान कार्यक्रम में मंच का संचालन डॉ प्रज्ञा गुप्ता ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ किरण तिवारी ने किया। इस अवसर पर डॉ मधुबाला सिन्हा डॉ कुमारी उर्वशी डॉ सुनीता कुमारी डॉ उषा किरण समेत 80 छात्राएं उपस्थित थी।