कल्पना कीजिए, अगर इन अधूरे सपनों को आज पूरा कर लिया गया होता, तो हमारा झारखंड कहां होता? इनस्टैबिलिटी, एजूकेशनल इंस्टीट्यूट्स की कमी, इनवेस्टमेंट का नहीं होना और यूथ का स्टेट से लगातार माइग्रेशन डेवलपमेंट की रफ्तार को लगातार कम कर रहा है। लेकिन अब भी टाइम बचा है, कुछ कर के दिखाने का। अपने पास्ट को तो हम बदल नहीं सकते। लेकिन बेहतर प्लानिंग, विजन और मेहनत से अपने झारखंड का कर सकते हैं टर्न अराउंड। इसके लिए ये जानना इम्पॉर्टेंट है कि आखिर वह कौन-कौन से कोर एरियाज हैं, जिन पर अगर स्टेट गवर्नमेंट की ओर से फोकस कर काम किया जाए, तो डेवलपमेंट की स्पीड बढ़े और लोगों को जॉब्स मिले। इसी पर फोकस है आज की आई नेक्स्ट की रिपोर्ट।

पॉलिटिकल स्टैबिलिटी और सुशासन
लंबे स्ट्रगल के बाद जब 15 नवंबर 2000 को झारखंड बना, तो लोगों को उम्मीद थी कि अब इस स्टेट में डेवलपमेंट का काम होगा। यहां के लोग खुशहाल बनेंगे। लेकिन झारखंड में राजनीतिक अवसरवादिता और अस्थिरता का एक ऐसा दौर चला, जिसने इसे काफी पीछे कर दिया। इस स्टेट के साथ ही अस्तित्व में आए छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड में जहां स्टेबल गवर्नमेंट्स ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया, वहीं झारखंड में पिछले 13 सालों में मात्र आठ सरकारें बनीं। पांच लोग सीएम भी बने, लेकिन हर बार झारखंड के सपने अधूरे ही रह गए। इसके अलावा यहां जोड़-तोड़ की पॉलिटिक्स होती रहती है। झारखंड में पॉलिटिकल स्टैबिलिटी और सुशासन की काफी जरूरत है। झारखंड का युवा चाहता है कि यहां पर  पॉलिटिकल स्टैबिलिटी और सुशासन हो। चाहे किसी भी पार्टी की सरकार बने, वह विजन के साथ विकास का काम करे।

करप्शन फ्री स्टेट
वैसे तो करप्शन पूरे देश की प्रॉब्लम है, लेकिन झारखंड में इसकी जड़ें काफी गहरी हैैं। ऊपर से लेकर नीचे तक सभी इसमें शामिल हैैं। खासकर यहां के शासन-प्रशासन में करप्शन सबसे अधिक है। इसलिए झारखंड को डेवलपमेंट के लिए करप्शन फ्री होना जरूरी है। यहां के एक्स सीएम और मिनिस्टर जेल करप्शन के आरोप में जेल की सजा काट चुके हैं। बात जब करप्शन की होती है, तो उसमें झारखंड का नाम काफी आगे आता है। ये हालात झारखंड के युवाओं को एक ओर जहां शर्मिंदा करते हैं। ऐसे में युवा चाहते हैं कि स्टेट में करप्शन से लोगों को निजात मिले।

खत्म हो नक्सलवाद
झारखंड के 24 डिस्ट्रिक्ट्स में से 22 नक्सलवाद और उग्रवाद की चपेट में हैैं। एक अनुमान के मुताबिक स्टेट में 17 से ज्यादा नक्सली और उग्रवादी संगठन एक्टिव हैं। नक्सली प्रॉब्लम के कारण ही स्टेट में डेवलपमेंट का काम नहीं हो पा रहा है। झारखंड जब बना था, तब इसके 10 डिस्ट्रिक्ट्स ही नक्सलवाद और उग्रवाद प्रभावित थे। लेकिन बीते 13 सालों में यह 22 डिस्ट्रिक्ट्स में फैल गया है। एक अनुमान के मुताबिक इन सालों में नक्सली घटनाओं में एक हजार से अधिक लोग मारे गए हैैं। 50 से ज्यादा कंपनियां झारखंड से अपना काम-काज सपेट कर बाहर जा चुकी हैं। लेवी और फिरौती के डर से यहां पर बड़ी कंपनियां काम करने से बचती हैं। युवा चाहता है कि गवर्नमेंट नक्सलवाद को समाप्त करे।

हर किसी को एजूकेशन
झारखंड में वैसे पिछले 13 सालों में एजूकेशन बढ़ा है, लेकिन अभी भी यहां साक्षरता की दर काफी कम है। गावों में रहनेवाली अधिकतर आबादी निरक्षर है। झारखंड की आधी आबादी गवर्नमेंट स्कूल्स पर निर्भर हैं। इन स्कूलों में टीचर्स की भी भारी कमी है। हालत यह है कि एक ही टीचर के भरोसे पूरा स्कूल चल रहा है। झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद के डेटा के अनुसार झारखंड में स्कूलों में 100 बच्चों पर एक ही टीचर है। बड़ी संख्या में टीचर्स अनुबंध पर है। जिसका असर बच्चों के एजूकेशन पर पड़ रहा है। ऐसे में झारखंड का युवा चाहता है कि गवर्नमेंट एजूकेशन पर ध्यान दे.  पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप मॉडल को अपना कर एजूकेशन के फील्ड में काम करे। खासकर प्राइमरी लेवल पर बच्चों के एजूकेशन पर काम किया जाए।

हर हाथ को काम
जिन ज्वलंत समस्याओं के कारण झारखंड का चेहरा अभी उदास है, उनमें से एक प्रॉब्लम अनइंप्लॉयमेंट की है। यहां के पढ़े-लिखे लोग बड़ पैमाने पर जॉब की तलाश में बड़े शहरों की ओर पलायन करते हैं। गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले 13 सालों में झारखंड से लगभग 30 लाख लोगों को पलायन करना पड़ा है। जिनमें पांच लाख लड़कियां और महिलाएं हैं। ये देश के मेट्रो शहरों में घरेलू कामगार के रूप में न सिर्फ काम कर रही हैं, बल्कि शोषण का शिकार भी बन रही हैं। झारखंड ह्यïूमन ट्रैफिकिंग का भी हब बन रहा है, जिसके पीछे कारण अनइंप्लॉयमेंट है। ऐसे में अगर झारखंड के लोगों को अपने स्टेट में ही काम मिल जाएगा, तो उन्हें बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। झारखंड का हर युवा चाहता है कि यहां पर अनइंप्लॉयमेंट को दूर किया जाए

रोड और फ्लाई ओवर का बिछे जाल

झारखंड में इंफ्रास्ट्रक्चर का डेवलपमेंट तेजी से नहीं हो रहा है। स्टेट में डेवलपमेंट के लिए सड़कों और फ्लाई ओवर का जाल बिछना जरूरी है। लेकिन पिछले 13 सालों में इसके लिए काफी कम काम हुआ है। हालांकि रिंग रोड का निर्माण यहां पर कुछ जगहों पर हुआ है और कुछ जगहों पर चल भी रहा है। नेशनल हाइवे डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के तहत झारखंड में 6500 किमी लंबी छह लेन का निर्माण होना है। इसमें बाइपास और फ्लाईओवर बनाना है। जिससे यहां का इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप हो सके। लेकिन बाकी जगहों को छोड़ दिया जाए, तो झारखंड की राजधानी रांची में भी अभी तक एक भी फ्लाईओवर नहीं बन सका है, जबकि इस सिटी में ट्रैफिक सिस्टम को सुधारने के लिए तीन फ्लाइओवर बनाने का प्रपोजल पिछले तीन सालों से है। यहां का यूथ इनका तेजी से विकास चाहता है। इससे ट्रैफिक की प्रॉब्लम सॉल्व की जा सकती है।