रांची(ब्यूरो)। ईयरफोन और तेज आवाज का टशन युवाओं को पेशेंट बना रहा है। राज्य के विभिन्न हॉस्पिटल में रोजाना ईएंडटी के सैकड़ों मामले सामने आ रहे हैं। कई मामलों में तो स्थिति अधिक खतरनाक देखी जा रही है। यह स्थिति शादी में डीजे का तेज म्युजिक, घंटों ईयरफोन लगाकर रखना या मोबाइल फोन एक कान में लगाकर देर तक बात करने की वजह से पैदा हो रही है। ऐसे मामले कोविड काल के बाद कई गुणा बढ़ गए हैं। डॉक्टर्स के अनुसार ऐसे मामलों के शिकार अधिकतर युवा और बच्चे हो रहे हैं। ये लोग शुरू में परेशानी को इग्नोर करते हैं, लेकिन परेशानी बढऩे पर डॉक्टर्स के पास पहुंचते हैं।

हर रोज आते हैं 15-20 मरीज

रिम्स में ईयरफोन लगाने और तेज आवाज के कारण सुनने की शिकायत लेकर हर रोज 15-20 मरीज आते हैं। हालांकि, इलाज के बाद इनमें से अधिकतर लोग ठीक हो जाते हैं। लेकिन कुछ लोग बहुत देर से आते हैं, जिन्हें लंबे इलाज की जरूरत पड़ती है।

बढ़ गए मरीज

रिम्स के ईएंडटी के ओपीडी में मरीजों की संख्या बढ़ गई है। रिम्स के ईएंडटी विभाग के डॉ नुमान आलम के अनुसार नॉइज पॉल्यूशन के कारण लोगों में कम सुनाई पडऩे की शिकायतें मिल रही हंै। ऐसे मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है। रिम्स में पहले की तुलना में इस तरह के मरीजों की संख्या में ढाई से तीन गुणा की वृद्धि हुई है। वे कहते हैं कि पहले जहां एक्सीडेंटल केस और डायबिटीज के मरीजों में ऐसे मामले मिलते थे, वहीं अब ऐसे मामले पार्टी या रेस्टोरेंट में तेज आवाज सुनने और लगातार एक ही कान से मोबाइल पर बात करने के कारण ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। यह समस्या 30 से 40 वर्ष के बीच के आयु के लोगों में अधिक देखने को मिल रही है।

उद्योगों के मजदूर भी शिकार

तेज आवाज वाले उद्योगों में काम करनेवाले मजदूरों को भी सुनने की समस्या होती है और वे इलाज के लिए रिम्स पहुंचते हैं। इनमें क्रेशर मशीन, एयरपोर्ट पर काम करनेवाले कर्मचारी और भारी उद्योगों में काम करनेवाले लोग शामिल हैं, जहां 100 डेसीबल से अधिक आवाज गूंजती है।

कोरोना के बाद मामले बढ़े

कोरोना के बाद ऐसे मामले की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। कोरोना के दौरान अधिकांश स्कूल, कॉलेज और ऑफिस बंद हो गए, जिससे बच्चे और युवा घर से ही ईयरफोन लगाकर पढ़ाई करने लगे। नौकरीपेशा लोग भी वर्क फ्रॉम होम के तहत ईयरफोन लगाकर काम निबटाने लगे। इससे उनमें सुनने की क्षमता प्रभावित हुई।

अवेयरनेस की कमी

लोगों में बहरेपन की समस्या की वजह अवेयरनेस की कमी है। इसलिए लोगों को इस समस्या के प्रति जागरूक करने की जरूरत है। लोगों में हीयरिंग स्क्रीनिंग प्रोग्राम चलाना चाहिए। खास कर स्कूलों में ऐसे प्रोग्राम चलाने चाहिए। ताकि ऐसी समस्याओं को दूर किया जा सके। मालूम हो कि हमारे कान 70-80 डेसिबल तक ही सुनने की क्षमता रखते हैं। इससे अधिक तीव्रता की आवाज होने से कानों को नुकसान होता है। 90 डेसिबल से ऊपर हम पांच मिनट से अधिक आवाज नहीं सुन सकते हैं। वहीं 80 डेसिबल तक आधा घंटा और 70 डेसिबल तक पांच घंटा सुन सकते हैं।

ऐसे करें बचाव

कम से कम ईयरफोन का उपयोग करें।

तेज आवाज वाली जगहों पर जाने से बचें।

बात करने के दौरान अधिक से अधिक स्पीकर ऑन कर के बात करें।

फोन पर बारी-बारी से दोनों कानों का यूज करें और धीमी आवाज में म्युजिक सुनें।

नहीं सुनने और कान में दर्द की शिकायत लेकर रोजाना 25-30 मरीज आते हैं, जिसमें अधिकांश युवा होते हैं। इनमें से अधिकतर ऐसे लोग होते हैं जो ईयरफोन लगाकर घंटों फोन पर बात करते हैं और तेज डीजे की आवाज सुनना पसंद करते हैं। कोरोना के बाद ऐसे मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है।

-डॉ नुमान आलम, ईएंडटी, रिम्स