रांची(ब्यूरो)। जमीन अवैध कब्जे का 'घावÓ जगन्नाथपुर तक पहुंच गया है। कभी पूरी तरह शांत रहने वाला यह इलाका देखते ही देखते अवैध कब्जेधारियों का अड्डा बन गया है। आलम यह है कि 331 साल पुराने ऐतिहासिक जगन्नाथपुर मंदिर परिसर के आसपास भी एक दर्जन से ज्यादा घर बन गए हैैं, जिसकी जमीन न किसी ने खरीदी और न ही बेची गई है। मंदिर की पहाड़ी के चारों ओर मकान और दुकानें बन गई हैं। इससे मंदिर का अस्तित्व संकट में पड़ गया है। 'दैनिक जागरण - आईनेक्स्टÓ ने जब इसकी पड़ताल की, तो पता चला कि जिन लोगों ने घर बनाया है, उन्होंने कुछ छुटभैये नेताओं को पेशगी दी है।
सौ एकड़ से ज्यादा पर बसावट
जगन्नाथपुर मंदिर 300 एक ड़ क्षेत्र में फैला है। 300 एकड़ की जमीन पर जगन्नाथ स्वामी की मंदिर, मेला परिसर और जगन्नाथपुर बस्ती बसी है। इसमें कई एकड़ जमीन पर अतिक्रमणकारियों ने कब्जा कर मकान और दुकानें बना ली हैं और वर्तमान में मंदिर के पास सिर्फ 41 एकड़, 27 डिसिमल जमीन ही बची है। एक समय था जब नये हाईकोर्ट भवन और शहीद मैदान तक मेला लगता था, लेकिन दिन-ब-दिन मेले का स्वरूप छोटा होता गया।
लोग चला रहे कुटीर उद्योग
जगन्नाथपुर मंदिर के पास अतिक्रमण कर रह रहे लोग कई तरह की दुकान लगाने के अलावा कुटीर उद्योग के रूप में कुएं में लगनेवाली सीमेंट के रिंग बना कर व्यवसाय चला रहे हैं।
331 वर्षों से लग रहा मेला
जगन्नाथपुर मेला पिछले 331 वर्षों से हर वर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि को लग रहा है। इस दौरान केवल दो वर्षों तक मेला कोरोना संक्रमण के चलते वर्ष 2020 और 2021 में नहीं लग सका था, लेकिन इस साल से प्रशासन ने मेला आयोजित करने की फिर से अनुमति दे दी।
कूड़े को किया जा रहा डंप
जगन्नाथ मंदिर के नीचे तालाब के पास कूड़ा डंप किया जा रहा है। इससे आसपास दुर्गंध फैलने लगा है। इससे तालाब के पानी के प्रदूषित होने का भी खतरा बढ़ गया है। तालाब में हर वर्ष प्रतिमा विसर्जन और स्थानीय लोग नहाने और कपड़ा धोने में करते हैं।
झालसा की जमीन पर दावा
ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी लाल प्रवीरनाथ शाहदेव का कहना है कि उन्होंने मंदिर के पिछले हिस्से में झालसा और कैट के कैंपस की जमीन को लेकर भी हाई कोर्ट में दावा ठोका है और कोर्ट ने संबंधित जमीन को मंदिर का बताया है।
1691 में बना था मंदिर
जगन्नाथपुर मंदिर को नागवंशी राजा एनीनाथ शाहदेव ने वर्ष 1691 में बडकागढ़ में बनवाया था। कहा जाता है कि ठाकुर एनीनाथ शाहदेव अपने नौकर के साथ ओडिशा के प्रसिद्ध मंदिर पुरी गए थे। नौकर भगवान जगन्नाथ का भक्तबन गया और कई दिनों तक उनकी उपासना की। एक रात को वह भूख से व्याकुल हो उठा। उसने मन ही मन भगवान से भूख मिटाने की प्रार्थना की। उसी रात भगवान जगन्नाथ ने रूप बदल कर अपनी भोगवाली थाली में खाना लाकर उसे खिलाया।
तीन गांवों को दिया था दान
राजा ठाकुर एनीनाथ शाहदेव ने मंदिर के रख-रखाव के लिए तीन गांव जगन्नाथपुर, आमी और भुसु की जमीन मंदिर को दान में दे दी थी। हाल के कई वर्षों तक तक मंदिर का प्रबंधन राजपरिवार के द्वारा ही होता था। वर्ष 1979 में मंदिर का ट्रस्ट बनाया गया और मंदिर के प्रबंधन ट्रस्ट के अधीन कर दिया गया। डीसी ट्रस्ट के पदेन अध्यक्ष थे। साथ ही, ट्रस्ट में राजपरिवार के भी सदस्यों को शामिल किया गया था। लेकिन फिलहाल ट्रस्ट की कमेटी भंग कर दी गई है और अध्यक्ष और सचिव ने इस्तीफा दे दिया है।

हमलोग राजा एनीनाथ शाहदेव के वंशज और मंदिर के मूल संरक्षकों में हैं, लेकिन हमलोगों को ही न्यास परिषद् में जगह नहीं दी गई। परिषद् में बाहरी लोगों को रखा गया है। मुझे मंदिर में पूजा करने के लिए भी सुरक्षा के लिए गुहार लगानी पड़ती है जो दुखद है।
-प्रवीरनाथ शाहदेव, ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के प्रत्याक्ष उत्तराधिकारी

मंदिर की पहाड़ी का अतिक्रमण हो रहा है, तो यह दुखद है। न्यास परिषद् के अन्य 9 सदस्यों को इसे देखना चाहिए। हालांकि, प्रशासक होने के नाते मैं इस मामले को गंभीरता से लूंगा और इस पर जल्द ही कार्रवाई करने का निर्देश दूंगा।
-नलिन कुमार, विधि विभाग के सचिव