रांची(ब्यूरो)।राजधानी रांची में धड़ल्ले से बड़े भवनों का निर्माण किया जा रहा है, इनमें से बहुत सारे ऐसे भवन हैं जिन्होंने पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से पर्यावरण क्लीयरेंस नहीं लिया है। अब इन्हें एन्वायरमेंट क्लीयरेंस लेना होगा। इसके लिए अप्लाई करना होगा वरना पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ऐसे भवनों को चिन्हित करके कार्रवाई करने की तैयारी में है। बता दें कि सिटी में बिना पर्यावरण क्लीयरेंस (ईसी) लिये ही कई बिल्डिंग का निर्माण हो रहा हैं। पर्यावरण को होने वाली क्षति और लोगों की लापरवाही के खिलाफ पीसीबी ने कमर कस ली है। जल्द ही शहर में कहीं भी निर्माण कार्य शुरू होने और पुराने निर्माणों की जांच की जाएगी, जिनके पास भी ईसी नहीं मिलेगा उन पर कार्रवाई की चेतावनी दी गई है।

क्या है नियम

नियमानुसार 20,000 स्क्वायर मीटर से अधिक किसी प्रोजेक्ट का निर्माण या फिर 1 लाख 50 हजार स्क्वायर मीटर से अधिक एरिया में रेजिडेंशियल निर्माण करने पर पर्यावरण क्लीयरेंस लिया जाता है। ये क्लीयरेंस स्टेट एन्वायरमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट अथॉरिटी की ओर से दिया जाता है।

बिना क्लीयरेंस निर्माण नहीं

ईसी के बिना निर्माण कार्य नहीं शुरू करा सकते। ईसी देते समय अधिकारी उस जगह के पर्यावरण स्तर को देखते हैं, यह भी जांचा जाता है कि इसके निर्माण से पर्यावरण को नुकसान तो नहीं पहुंच रहा। कड़े नियमों के बावजूद बिल्डर बिना क्लीयरेंस मिले ही निर्माण शुरू करा देते हैं।

6 माह में सर्टिफिकेट

पेड़ कटाई से ग्रीनरी को नुकसान, धूल, सीवरेज (जल एवं वायु प्रदूषण दोनों)। पीसीबी की वेबसाइट पर क्लीयरेंस के लिए ऑनलाइन आवेदन किया जा सकता है। आवेदन के छह माह के भीतर सर्टिफिकेट मिल जाएगा।

बोर्ड ने जारी किया निर्देश

झारखंड राच्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बड़े टाउनशिप और भवन निर्माण के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति अनिवार्य कर दिया है। एन्वायरमेंट क्लीयरेंस निर्माण से पहले लेना होगा। बोर्ड ने इस संबंध में राच्य के सभी क्षेत्रीय कार्यालयों को निर्देश जारी किया है। साथ ही इसका अनुपालन भी सुनिश्चित कराने को कहा है। बोर्ड ने स्पष्ट कर दिया है कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत भारत सरकार ईआईए नोटिफिकेशन 2006 के संशोधित नियम के तहत बिल्डिंग व कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट, जिनका बिल्डअप एरिया 20 हजार वर्ग मीटर या उससे अधिक है और टाउनशिप एंड एरिया डेवलपमेंट प्रोजेक्ट, जिनका बिल्ड अप एरिया डेढ़ लाख वर्ग मीटर या कुल रकबा 50 हेक्टेयर से अधिक है, इन्हें निर्माण कार्य प्रारंभ करने से पहले पर्यावरणीय स्वीकृति प्राप्त करना होगा।

अलग-अलग कैटेगरी तय

इतना ही नहीं, इस तरह के सभी निर्माण को जल प्रदूषण नियंत्रण निवारण अधिनियम 1974 एवं वायु प्रदूषण नियंत्रण एवं निवारण अधिनियम 1981 के तहत उद्योगों के वर्गीकरण श्रेणी में भी रखा गया है। मसलन निर्माण परियोजना जहां 100 किलो लीटर प्रतिदिन या उससे अधिक जल का यूज हो रहा है उन्हें लाल श्रेणी और इससे कम बहिस्राव को नारंगी श्रेणी में रखा गया है। लाल एवं नारंगी श्रेणी के उद्योगों को बोर्ड से जल प्रदूषण नियंत्रण निवारण अधिनियम 1974 की धारा 25 एवं वायु प्रदूषण नियंत्रण निवारण अधिनियम 1981 की धारा 21 के तहत स्थापना सहमति एवं संचालन सहमति लेना अनिवार्य किया गया है। इन अधिनियम का उल्लंघन पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 15, जल प्रदूषण नियंत्रण एवं निवारण अधिनियम 1974 की धारा 44 एवं वायु प्रदूषण नियंत्रण निवारण अधिनियम 1981 की धारा 37 के तहत दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इन पर कठोर कार्रवाई होगी।