बच्चे भी पढ़ाई करें और काबिल बनें
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RANCHI: एक हाथ में स्टोव पर केतली और दूसरे हाथ में डिस्पोजल ग्लास की बाल्टी। कभी दफ्तर की सीढि़यों पर अपनी थकावट मिटाते तो कभी न्यू मार्केट के किसी चौपाल पर माथे का पसीना पोंछते मुरारी मंडल की कहानी भी संघर्ष की एक ऐसी दास्तां है जो आज भी अपने बच्चों के लिए सपने देखते हैं और उसे पूरा करने के लिए मेहनत करते हैं। जी हां, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, एंटी करप्शन ब्यूरो के सभी बाबुओं के बीच मुरारी मंडल बीते 20 सालों से लेमन टी बेच रहे हैं। धनबाद से रोजगार की तलाश में रांची आए मुरारी की ख्वाहिश थी कि उनके बच्चे भी पढ़ाई करें और काबिल बनें।

पापा हैं रोल मॉडल: परशुराम
मुरारी बताते हैं कि उनकी शिक्षा तो दस्तखत से आगे नहीं हो पाई, लेकिन उनकी इच्छा थी कि उनके बच्चे पढ़ाई करें। उनके पुत्र परशुराम मंडल मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में डाटा एनालिसिस के तौर पर काम करते हैं। उनकी काम करने की क्षमता को देखते हुए उन्हें जामताड़ा जिले की जिम्मेदारी दी गई है। और वे वहां रहकर अपने कार्यो को बखूबी से अंजाम दे रहे हैं। मुरारी अपने बेटे की तारीफों के पुल बांधते नहीं थकते हैं। वे कहते हैं कि मेरे बेटे ने मुझे दिन-रात मेहनत करते देखा है। शायद यही वजह है कि उसने बीएससी तक की पढ़ाई खूब मन लगाकर की।

मेहनत का निवाला खिलाया
मुरारी की एक बेटी भी है, जिसकी शादी हो चुकी है। उन्होंने एक पिता की भूमिका निभाते हुए अपने बच्चों को ईमानदारी और मेंहनत का निवाला खिलाया है। वे हर दिन सुबह दस बजे से 5 बजे तक एसीबी और सूचना भवन में लेमन टी बेचते हैं। इसके बाद न्यू मार्केट में। हर रात करीब दस बजे घर पहुंचते हैं, फिर सुबह वही रूटीन। अब बेटे का कद उनके बराबर हो गया है, वे कहते है बेटे द्वारा रिजेक्ट किए गए कपड़े पहन लेते हैं और वे एकदम फिट आ जाते हैं। वहीं, उनके बेटे परशुराम मंडल भी अपने पिता के त्याग को सर्वोपरि मानते हैं। परशुराम का कहना है कि मेरे पिता मेरे लिए आदर्श हैं क्योंकि मैंने और मेरे परिवार ने उनकी मेहनत को बहुत करीब से देखा है।