- चार महीने से बैठे हैं सरकार ने नहीं दिया रोजगार

- आर्थिक हालत हो गई खराब, वापस जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं

कोरोना संक्रमण की वजह से अप्रैल और मई महीने में देश भर में लॉकडाउन लगाया गया था। इस वजह से ट्रांसपोर्टेशन के सभी साधन बंद हो गए थे। जो जहां था, वह वहीं फंस कर रह गया। सबसे ज्यादा असर बाहर रह कर काम करने वाले लोगों पर पड़ा था। वे अपने राज्य लौट नहीं पा रहे थे। ऐसे में सरकार ने स्पेशल बस और ट्रेन चलवाकर अपने लोगों को उनके घर भेजा था। बसों की संख्या सीमित होने की वजह से गाडि़यों में भर-भर प्रवासी मजदूरों को लाया गया था। लेकिन अब जब लॉकडाउन में ढील दे दी गई है, तो यही मजदूर वापस फ्लाइट से अपने काम पर वापस लौट रहे हैं। इन मजदूरों को विभिन्न कंपनी वाले प्लेन की मदद से वापस बुला रहे हैं। जाने का सारा खर्चा भी कंपनी के ओनर ही वहन कर रहे हैं। दरअसल मजदूरों के घर वापस लौट जाने की वजह से बिजनेस में काफी गहरा असर पड़ा है। बगैर मजदूरों के काम आगे नहीं बढ़ रहा है। इस वजह से कंपनी के रिप्रजेंटेटिव अब अपने मजूदरों को वापस बुलाने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन भी दे रहे हैं।

एयरपोर्ट पर उमड़ रही भीड़

एयरपोर्ट पर इन दिनों कुछ अलग ही नजारा है। बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन की तरह एयरपोर्ट पर भीड़ देखी जा रही है। इसमें 60 से 70 परसेंट मजदूरों की संख्या है, जो लॉकडाउन में अपने घर लौट गए थे। अब फिर से काम पर वापस लौट रहे हैं। कोरोना काल में झारखंड के लाखों मजदूर जो दूसरे राज्यों में काम कर रहे थे वो वापस घर लौट आए थे। इन मजदूरों को सरकार ने अपने ही प्रदेश के गृह जिले में रोजगार देने का आश्वासन दिया था, लेकिन अब तक मजदूरों को रोजगार नहीं मिल सका, जिसके कारण वो भुखमरी के कगार पर पहुंच गए। प्रदेश से मजदूर एक बार फिर रोजगार के लिए दूसरे प्रदेशों में पलायन कर रहे हैं। पैसेंजर की संख्या बढ़ने से एयरपोर्ट पर अव्यवस्था का माहौल साफ देखा जा रहा है। भीड़ को संभालने वाले स्टाफ भी एयरपोर्ट पर नजर नहीं आ रहे। कोरोना के डर से अधिकांश स्टाफ साइड में ही खडे़ या बैठे रहते हैं।

काम की तलाश में वापसी

अनलॉक के साथ ही मजदूरों के सामने बेरोजगारी का संकट खड़ा हो गया है। यही वजह है कि फिर से पलायन शुरू हो गया है। कंपनियां तरह-तरह के प्रलोभन देकर मजदूरों को वापस बुला रही हैं। चार महीने तक कोई काम नहीं मिलने की वजह से मजदूरों की आर्थिक हालत दिन पर दिन खराब होती जा रही है। इस कारण मजदूरों के पास भी दूसरा ऑप्शन नहीं है। मजदूरों ने बताया कि सरकार की ओर से न तो कोई सहायत मिली, न आर्थिक मदद और न ही रोजगार उपलब्ध कराया गया। सामाजिक संगठनों ने कुछ राशन दे दिया उसी से गुजारा होता रहा। लेकिन अब और गुजारा नहीं हो सकेगा, इसलिए जाना जरूरी है।

मजदूरों ने बताई पीड़ा

बेंगलुरु जा रहे हैं। वहां अर्पणा कंपनी में पाइपलाइन में काम करते हैं। लॉकडाउन में घर आ गए थे। सोचा यहीं रहकर काम करेंगे। अब वापस नहीं जाएंगे। लेकिन हमारे सामने कोई विकल्प नहीं है। कंपनी सारी सुविधा दे रही, फ्लाइट से वापस बुला रही है। अब पगार में भी वृद्धि करने का बात कही गयी है।

संतोष रजवार

फैमिली से अलग कौन रहना चाहता है लेकिन हम सभी की मजबूरी है। कंपनी के लोग लगातार संपर्क कर रहे हैं। जबकि अपने राज्य अपने गांव में कोई पूछता तक नहीं है। वहां रहेंगे, कुछ आमदनी भी हो जाएगी, यहां कुछ नहीं हो सकता है। फ्लाइट में पहली बार बैठने का मौका मिला है। काफी अच्छा लग रहा है।

चमरु बेदिया

बस में आए थे। बैठने के लिए सीट भी नहीं मिली थी। जैसे-तैसे खड़े होकर आए। मई महीने में ही घर आ गए थे। उस वक्त से बैठे हुए हें। सरकार की ओर से वादा तो किया गया लेकिन रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया। वहीं कंपनी वाले लगातार वापस बुला रहे हैं। कंपनी के लोगों ने ही फ्लाइट का टिकट करा दिया है।

संतोष कुमार