रांची (ब्यूरो) । रांची यूनिवर्सिटी के 3 जनवरी 2023 से चल रहे संकाय संवर्धन कार्यक्रम में सोमवार को प्रथम सत्र में बीआईटी मेसरा, रांची के प्राध्यापक डॉ निशिकांत कुमार ने एक छात्र के चरित्र और व्यक्तित्व के निर्माण में शिक्षक की नैतिक जिम्मेदारी विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण में शिक्षकों की अहम भूमिका होती है। शिक्षक कुंभकार के समान होते हैं, जो विद्यार्थी को कुंभ के रूप में शक्ल देकर उनके चरित्र का निर्माण करते हैं। यही वजह है कि वह विद्यार्थी को जिस चरित्र में ढालते हैं, उसी के अनुरूप वह बन जाता है। द्वितीय सत्र में गणित विभाग रांची विश्वविद्यालय रांची के शिक्षक डॉ शीत निहाल टोपनो ने नई शिक्षा नीति झारखंड के संदर्भ में विषय पर अपने विचार रखे।

शिक्षा में सुधार होगा

उन्होंने कहा कि इस शिक्षा नीति के लागू होने के बाद भारतीय शिक्षा में बहुत सुधार हो सकता है। विद्यार्थियों का बोझ कम करने पर जोर दिया गया है। जबरन विषयों के थोपे जाने के नियमों को समाप्त किया गया है। तीसरे सत्र में रांची विश्वविद्यालय की ओएसडी सह व्यवसायी कोर्स की कोऑर्डिनेटर एवं रसायन शास्त्र विभाग, रांची विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका डॉ स्मृति सिंह ने नई शिक्षा नीति-2020 और उच्चतर शिक्षा तंत्र विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि एनईपी 2020 एक उत्कृष्ट दूरदृष्टि का परिणाम है और एक प्रेरणादायक नीति दस्तावेज है जो भारतीय उच्च शिक्षा के परिदृश्य में एक मूलभूत परिवर्तन का आगाज है। इसके तहत भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली की जटिलता और चुनौतियों को ईमानदारी और स्पष्टता के साथ पहचाना गया है। इसके तहत मानव विकास की असाधारण क्षमता और जनसांख्यिकी लाभांश का उपयोग करने के लिए एक व्यापक बदलाव लाने के लिए एक दृष्टिकोण की परिकल्पना की गई है, जो कि भारत जैसे देश में बहुतायत में उपलब्ध है।

रोगाणुओं की जानकारी दी

चौथे और अंतिम सत्र में जंतु विज्ञान विभाग कोल्हान यूनिवर्सिटी के प्राध्यापक डॉ नितीश कुमार महतो ने सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने में रोगाणुओं की भूमिका विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया। अपने व्याख्यान में उन्होंने समझाया कि माइक्रोबायोलॉजिस्ट उन चुनौतियों को संबोधित करने में शामिल हैं जो तत्काल समाधान की मांग करने वाली समस्याओं से भिन्न होती हैं, जैसे कि नई और उभरती हुई बीमारियाँ, दीर्घकालिक मुद्दों के माध्यम से, जैसे रोगाणुरोधी दवा प्रतिरोध, खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता। यह माइक्रोबायोलॉजी सोसायटी के संस्थापक और पहले अध्यक्ष सर अलेक्जेंडर फ्लेमिंग द्वारा प्रदर्शित किया गया था, जिनकी दुनिया की पहली एंटीबायोटिक की खोज ने अनगिनत लोगों की जान बचाई और आधुनिक चिकित्सा को बदल दिया।