रांची (ब्यूरो)। जब तक हमारी आस्था मजबूत नहीं होगी तब तक कोई भी आत्मा परमात्मा नहीं बन सकती है। आत्मा और परमात्मा के प्रति सच्ची निष्ठा होना ही भगवान बनने का प्रथम सोपान है। मुनि श्री ने कहा भक्ति और आराधना में सच्ची श्रद्धा होना अनिवार्य चरण है। आस्था और श्रद्धा के साथ की गई भक्ति अनेक उपलब्धियों को प्राप्त कराती आती है। ये बातें परमपूज्य झारखंड राजकीय अतिथि श्रमण श्री विशल्यसागर जी मुनिराज ने कहीं। वह तमाड़ में आयोजित पांच दिवसीय पंचकल्याणक महोत्सव (प्राण प्रतिष्ठा समारोह) के पहले दिन श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। बता दें कि परम पूज्य राष्ट्रसंत गणाचार्य श्री 108 विरागसागरजी व श्री विशल्यसागर जी मुनिराज के सानिध्य में सराक क्षेत्र के तमाड़ में पंचकल्याणक का भव्य शुभारंभ घटयात्रा एवं ध्वजारोहण के साथ किया गया।
भगवान बनने की कला है पंचकल्याणक अनुष्ठान
श्री विशल्यसागरजी मुनिराज ने कहा कि सम्पूर्ण मनोरथों को पूर्ण करने वाली जिनेंद्र भक्ति है। पंचकल्याणक अनुष्ठान भगवान बनने की कला है, जिसमें पाषाण संस्कारों के माध्यम से पूज्य बन जाता है। वह पूज्यता को प्राप्त हो जाता है। जब वह पुण्यता जीव माता के गर्भ में आता है तो पंद्रह माह में प्रतिदिन 14 करोड़ दिव्य रत्नों की वर्षा होती है। ऐसा जीव अपने प्रभाव से सम्पूर्ण लोक को आंनदित करता है। पंडाल उदघाटन कर्ता उम्मेदमल जैन काला परिवार, ध्वजारोहण कर्ता नवीन जैन पापड़ीवाल, धर्मचंद्र रारा, पूरनमल सेठी, झीतरमल, पद्मजी छावड़ा, अरुण बाकलीवाल, सुभाष विनाक्या, अजय गंगवाल, प्रदीप बाकलीवाल, संजय पाटनी, संजय छाबड़ा आदि समाज के सभी मान्यवर उपस्थित थे।