रांची(ब्यूरो)। राज्यपाल द्वारा झारखंड राज्य कृषि उपज एवं पशुधन विपणन विधेयक 2022 को मंजूरी दिये जाने के बाद से राज्य के व्यापारियों के बीच बन रही ऊहापोह की स्थिति के बीच झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा बुधवार 8 फरवरी को चैंबर भवन में राज्यस्तरीय बैठक आयोजित की गई है। राज्य के सभी जिलों के खाद्यान्न व्यापारी, जिला चैंबर ऑफ कॉमर्स, राइस-फ्लॉवर मिलर्स अपने प्रतिष्ठान बंद रखकर इस बैठक में शामिल होंगे। झारखण्ड चैंबर के आहवान पर इस विधेयक के विरोध में सोमवार से ही राज्य भर के खाद्यान्न व्यापारियों ने अपने प्रतिष्ठान में काला झंडा लगाकर और काला बिल्ला लगाकर व्यापार संचालित करना आरंभ कर दिया है। पंडरा बाजार कृषि मंडी में भी आज व्यापारियों ने काला बिल्ला लगाकर इस विधेयक के प्रति विरोध जताया। प्रेस वार्ता में चैंबर उपाध्यक्ष अमित शर्मा, महासचिव डॉ अभिषेक रामाधीन, सह सचिव रोहित पोद्दार, शैलेष अग्रवाल, पूर्व अध्यक्ष प्रवीण जैन छाबडा, रांची चैंबर पंडरा के अध्यक्ष संजय माहुरी, अनिल शर्मा, सदस्य विवेक अग्रवाल, अशोक मंगल, मनोज छापडिया, संजय साहू, रितेष जैन उपस्थित थे।

चैंबर भवन में पीसी

चैंबर भवन में संपन्न हुई प्रेस वार्ता में चैंबर महासचिव डॉ अभिषेक रामाधीन ने कहा कि झारखण्ड में पुन: भ्रष्टाचार को बढावा देने के लिए इस विधेयक को प्रभावी करने की दिशा में पहल आरंभ की जा रही है, जिसका हम विरोध करते हैं। ऐसे समय में जब राज्य में आर्थिक गतिविधियों को बढावा देने के साथ ही महंगाई पर नियंत्रण के लिए उत्तर प्रदेश में मंडी शुल्क समाप्त कर दिया है, तब झारखण्ड में इस शुल्क को प्रभावी किया जा रहा है। बुधवार को आहूत होनेवाली राज्यस्तरीय बैठक में इस विधेयक के विरोध में आंदोलनात्मक रणनीति तय की जायेगी। चैंबर के पूर्व अध्यक्ष प्रवीण जैन छाबडा ने कहा कि यह विधेयक व्यापारी, किसान और उपभोक्ता के साथ ही सरकार के हित में भी नहीं है। क्योंकि शुल्क प्रभावी होने के बाद यहां का व्यापार पडोसी राज्यों में शिफ्ट होने लगेगा जिससे सरकार को जीएसटी के रूप में भारी नुकसान होगा। कुछ पदाधिकारियों द्वारा भ्रमात्मक स्थिति बनाकर इस विधेयक को लाया जा रहा है जिससे आम जनता के उपभोग की वस्तुएं महंगी हो जायेंगी। उन्होंने यह भी कहा कि झारखण्ड में अधिकांशत: बिक्री हेतु तैयार माल ही अन्य राज्यों से आयात किये जाते हैं, ऐसी वस्तुओं के कृषि शुल्क में आने से यह किसी विपणन व्यवस्था की फीस न होकर सीधे एक टैक्स के रूप में प्रभावी होगा जो जीएसटी के अतिरिक्त डबल टैक्सेशन होगा। अन्य राज्य से आयातित वस्तु पर अधिकतम स्लैब में कृषि शुल्क लगाकर जिसपर बाजार समिति ने कोई सुविधा उपलब्ध नहीं कराई है, यह सीधा-सीधा आम उपभोक्ता पर महंगाई को बढ़ानेवाला है। पूर्व में जब यह शुल्क प्रभावी था, तब बडे रूप में भ्रष्टाचार व्याप्त था। बोर्ड में व्याप्त अनियमितताओं को देखते हुए ही तत्कालीन सरकार ने इस शुल्क को शून्य कर दिया था। पुन: इस शुल्क को प्रभावी करने की दिशा में सरकार द्वारा लिये जा रहे किसी भी निर्णय को व्यापारी मानने को ईच्छुक नहीं है और इसके विरोध में वृहद् आंदोलन किया जायेगा। उन्होंने यह भी कहा कि इस बार जब तक हमें लिखित में इस विधेयक को समाप्त करने की बात नहीं कही जायेगी तब तक आनेवाले दिनों में राज्य में खाद्यान्न के आवक बंद जैसी कार्रवाई जारी रहेगी।

जनता के शोषण-दोहन का विधेयक

रांची चैंबर के अध्यक्ष संजय माहुरी ने कहा कि यह विधेयक सिर्फ कृषक एवं आम जनता के शोषण एवं दोहन करने का विधेयक है। वर्ष 1982 से 2003 तक झारखण्ड के किसी भी बाजार समिति में कृषकों का माल नहीं आया है, ऐसे में किस प्रकार इस विधेयक के माध्यम से कृषकों के उत्थान की बात कही जा रही है। ई-नाम को प्रभावी करने के लिए केंद्र सरकार से आये पैसों से किसानों के प्रोत्साहन के लिए कुछ भी नहीं किया गया। दो तीन माह पूर्व ही 88 लाख रू की ग्रेडिंग, पैकेजिंग मशीनें खरीदी गई हैं जो बाजार समिति में बेकार पडी हुई हैं। उपरी कमाई का संशाधन बनाया जाना ही इस विधेयक को प्रभावी करने का एकमात्र उद्देश्य है, जिसका हम पुरजोर विरोध करते हैं। चैंबर उपाध्यक्ष अमित शर्मा और सह सचिव रोहित पोद्दार ने संयुक्त रूप से कहा कि यह शुल्क कुछ गिने-चुने अधिकारियों के हित के लिए लाया जा रहा है जिससे राज्य में उपभोक्ता वस्तुएं महंगी होंगी। क्योंकि सरकार को यह समझना होगा कि व्यापारी इस शुल्क की उगाही उपभोक्ता से ही वसूलकर जमा करेंगे, ऐसे में इस बढे हुए महंगाई के दौर में उपभोक्ता अतिरिक्त महंगाई से कैसे निपटेंगे।