RANCHI : मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सामने विधानसभा चुनाव को लेकर कई चुनौतियां हैं। नवंबर-दिसंबर में चुनाव संभावित है, ऐसे में झामुमो अकेले दम पर चुनाव लड़े अथवा कांग्रेस और आरजेडी जैसे दलों के साथ गठबंधन बनाकर मैदान में उतरा जाए, इसे लेकर हेमंत सोरेन पार्टी के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के साथ लगातार चिंतन मनन कर रहे हैं। हेमंत के साथ सबसे बड़ी दिक्कत है कि उनकी अगुवाई में जो सरकार चल रही है, उसे सहयोगी दलों का तो समर्थन मिल रहा है, पर चुनाव मैदान में जब साथ में उतरने की बात हो रही है तो कांग्रेस और आरजेडी हेमंत सोरेन के नेतृत्व में चुनाव में उतरने को राजी होते दिखाई नहीं दे रहे हैं। वैसे राजनीति में समीकरण हर वक्त बनते-बिगड़ते रहते हैं। चुनाव में करीब तीन महीने का वक्त है। ऐसे में राजनीतिक दलों का चुनावी समीकरण कभी भी पलट सकता है।

सीट बचाने की होगी चुनौती

लोकसभा चुनाव में दुमका और राजमहल सीट पर जीत दर्ज कर झामुमो ने तो साबित कर दिया कि संथालपरगना इलाके में पार्टी की पकड़ मजबूत है, लेकिन दुमका लोकसभा सीट के दुमका विधानसभा क्षेत्र में जेएमएम को बीजेपी की तुलना में कम वोट मिले थे। इस साल लोकसभा चुनाव में दुमका विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी के उम्मीदवार सुनील सोरेन से जेएमएम के शिबू सोरेन ख्म्00 वोट से पिछड़ गए थे। दुमका विधानसभा क्षेत्र में जेएमएम से ज्यादा बीजेपी को वोट मिलना ही हेमंत सोरेन को चिंतित कर रहा है, क्योंकि इसी सीट से वे विधायक हैं। इस बार भी दुमका विधानसभा सीट से उनके चुनाव लड़ने की उम्मीद है। ऐसे में अगर लोकसभा चुनाव जैसा ही समीकरण बना तो हेमंत की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

समीकरण से वाकिफ हैं हेमंत

दुमका लोकसभा सीट पर हार के बाद भी बीजेपी खेमे में उत्साह है। इसकी वजह दुमका विधानसभा क्षेत्र में पार्टी को जेएमएम से ज्यादा वोट मिलना है। ऐसे में दुमका विधानसभा सीट पर जेएमएम के हेमंत सोरेन को हराने के लिए बीजेपी अभी से ही रणनीति तैयार कर रही है। जहां तक ख्009 विधानसभा चुनाव की बात है, दुमका सीट से बीजेपी के कैंडिडेट लुईस मरांडी ने जेएमएम के हेमंत सोरेन को कड़ी टक्कर दी थी। वैसे जीत का सेहरा हेमंत सोरेन के सिर बंधा था। लेकिन, इस बार के विधानसभा चुनाव को देखते हुए समीकरण में काफी बदलाव आ चुका है। बीजेपी के लुईस मरांडी का कहना है कि लोकसभा चुनाव में दुमका विधानसभा क्षेत्र में जेएमएम के शिबू सोरेन को बीजेपी के सुनील सोरेन के मुकाबले कम वोट मिलने से साबित हो गया है कि सीएम हेमंत सोरेन अपना जनाधार खो चुके हैं। इस बार विधानसभा चुनाव में उनकी हार निश्चित है। दूसरी ओर हेमंत सोरेन भी इस बात से भली-भांति वाकिफ हैं कि लोकसभा चुनाव में दुमका विधानसभा क्षेत्र में जेएमएम को कम वोट मिलना विधानसभा चुनाव में जेएमएम की चिंता बढ़ा सकती है। ऐसे में वे लगातार इस इलाके का दौरा कर रहें है। कई विकास योजनाओं का तोहफा इस क्षेत्र को दे रहे हैं, ताकि लोगों का दिल जीत सकें।

स्टीफन मरांडी से भी खतरा

अगर हेमंत सोरेन दुमका सीट से विधानसभा चुनाव लड़ते हैं, तो उनके सामने न सिर्फ बीजेपी की चुनौती होगी, बल्कि प्रो स्टीफन मरांडी भी मुश्किलें पैदा कर सकते हैं। गौरतलब है कि प्रो स्टीफन मरांडी जेएमएम का कद्दावर नेता होने के साथ पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन के सबसे करीबी नेताओं में एक थे। दुमका सीट से वे कई बार विधानसभा चुनाव भी जीत चुके हैं, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में जब पार्टी ने यहां से हेमंत सोरेन को दुमका सीट से उम्मीदवार बनाया तो प्रो स्टीफन ने जेएमएम को अलविदा कह दिया। इसके बाद वे पहले तो कांग्रेस में शामिल हुए, लेकिन बाद में जेवीएम का दामन थाम लिया। उम्मीद है कि दुमका सीट से वे जेवीएम के उम्मीदवार होंगे। अगर वे चुनाव लड़ते हैं तो जेएमएम के वोट बैंक में ही ज्यादा सेंधमारी करेंगे, जिसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है। ऐसे समीकरण बनते हैं तो हेमंत सोरेन के लिए इस बार चुनाव जीतना आसान नहीं होगा।

सोरेन परिवार से है लगाव

दूसरी ओर इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि दुमका का पूरा इलाका जेएमएम का गढ़ है। यहां के लोगों का शिबू सोरेन के परिवार से दिल का लगाव है। जेएमएम का इस इलाके में मजबूत संगठन और जनाधार है, जिसका फायदा हेमंत सोरेन को चुनाव में मिल सकता है। खास बात है कि दुमका सीट झारखंड की सबसे हाई प्रोफाइल सीट्स में से एक है। जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन और जेवीएम सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी की यह कर्मभूमि रही है। वे इस सीट से चुनाव भी जीत चुके हैं। इस सीट पर किसी भी दल के जीत-हार का असर पूरे झारखंड की राजनीति पर पड़ता है। ऐसे में इस बार विधानसभा चुनाव में भी राजनीतिक दलों के लिए यह सीट खास मायने रखती है। वैसे तो यहां से किस दल से कौन उम्मीदवार होगा, यह तय नहीं हुआ है, पर माना जा रहा है कि जेएमएम से हेमंत सोरेन और बीजेपी से लुईस मरांडी मैदान में उतरेंगे। सस्पेंस सिर्फ प्रो स्टीफन मरांडी की उम्मीदवारी पर है, क्योंकि जेवीएम अभी तक यह तय नहीं कर पाई है कि वह अकेले अथवा गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ेगी।