RANCHI: राजधानी में ऐसा कोई भी दिन नहीं है जब सप्लाई पानी की पाइपलाइन नहीं फटती हो। पाइप लाइन पुरानी होने और पानी का प्रेशर अधिक होने के कारण पाइपलाइन फट जाती है। पुरानी पाइपलाइन की वजह से शहर के लोगों को हमेशा परेशानी झेलनी होती है। शहर में तकरीबन 60 वर्ष पुरानी जर्जर वाटर सप्लाई पाइपलाइन आए दिन क्षतिग्रस्त हो रही हैं और इससे हजारों गैलन पानी की बर्बादी हो रही है। इसके बावजूद पेयजल स्वच्छता विभाग के अधिकारियों की नींद नहीं खुल रही है।

1966 में बिछी टाउन पाइपलाइन

टाउन पाइप लाइन करीब 55 साल पुरानी है। वर्ष 1966 में बिछी यह पाइप लाइन अब काफी कमजोर हो चुकी है, जिसकी वजह से लगातार पाइप फटने की घटनाएं हो रही हैं। बूटी पहाड़ स्थित स्टोरेज से ही टाउन पाइप लाइन में जलापूर्ति की जाती है। 55 साल पहले जब यह पाइपलाइन शहर में पानी देने के लिए बिछाई गयी थी। उस समय शहर की आबादी बहुत कम थी। लेकिन लगातार शहर की आबादी बढ़ते-बढ़ते 20 लाख हो गई और पाइप लाइन वही पुरानी ही रही। लोगों ने कनेक्शन भी बहुत अधिक संख्या में ली। लेकिन पाइपलाइन बदली नहीं जा सकी है, जिस कारण शाम और सुबह एक बार जब बहुत अधिक घरों में पानी पहुंचने लगता है उसी समय पाइपलाइन कहीं ना कहीं से फट जाती है। पाइपलाइन फटने से घरों तक सही तरीके से पानी नहीं पहुंच पाता है।

1952 में बना गोंदा डैम

गोंदा डैम से वाटर सप्लाई के लिए 1952-53 में पाइपलाइन बिछाई गई थी और आज भी उसी पाइपलाइन से पेयजल व स्वच्छता विभाग शहर में जलापूर्ति कर रहा है। नतीजा यह है कि पाइपलाइन जगह-जगह फट रही है और उसके जरिए लोगों के घरों में गंदा पानी पहुंच रहा है। इस दूषित पानी को कई बार लोग घर में फिल्टर कर पीने के लिए यूज कर रहे हैं, लेकिन बड़ी आबादी आज भी इसी दूषित पानी को पीने के लिए मजबूर है। डैम की स्थापना होने से अब तक पाइपलाइन नहीं बदली गई है। लगभग 60 वर्ष होने के बावजूद आज तक पाइप बदले नहीं गए हैं।

10 साल में अरबों खर्च

रांची में जलापूर्ति योजना का विस्तार 11 साल में भी पूरा नहीं हो पाया। 2009-10 में जवाहर लाल नेहरू शहरी विकास पुनरुद्धार योजना ली गयी थी। इसमें रांची शहर के चार लाख की आबादी को पीने का पानी पहुंचाने की भारी-भरकम योजना नगर विकास विभाग ने ली थी। इस योजना का क्रियान्वयन पेयजल और स्वच्छता विभाग को सौंपा गया। हैदराबाद की कंपनी आइवीआरसीएल को 256 करोड़ की योजना का कार्यादेश दिया गया। 24 महीने में योजना का काम पूरा करना था। सरकार ने सितंबर 2013 में आइवीआरसीएल को यह कहते हुए काली सूची में डाल दिया कि उसने निर्धारित समय में 30 फीसदी से कम उपलब्धि हासिल की। इसके बाद रा<स्हृद्द-क्तञ्जस्>य मंत्रिमंडल की तरफ से एलएनटी को बचे हुए काम का कार्यादेश दिया गया। 2014-15 में एलएनटी को 290.88 करोड़ का काम दिया गया। यह काम भी 24 महीने में पूरा नहीं हो पाया। अब अमृत योजना के तहत रांची के एक लाख घरों तक पानी पहुंचाने की घोषणा की गयी है। वह भी 2020 तक। सरकार की योजना में न तो नया डैम बनाया गया है और न ही जल स्त्रोत का कोई आधार है, जहां से पानी लाया जाएगा।

रांची शहरी जलापूर्ति का हाल

जेएनयूआरएम के तहत रांची शहरी जलापूर्ति फेज-1 के अंतर्गत रुक्का डैम में 110 मिलियन लीटर प्रति दिन क्षमता का वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बनाना था। यहीं पर इंटेक वेल भी बनाया जाना था। साथ ही साथ हटिया, डोरंडा के 56 सेट, ललगुटूवा, पुनदाग, अरगोड़ा समेत छह जगहों पर पीने के पानी का ओवरहेड टैंक बनाया जाना था। 300 किलोमीटर से अधिक दूरी तक पाइपलाइन भी बिछायी जानी थी। ललगुटूवा में अब तक ओवरहेड टैंक नहीं बन पाया है। इसके अलावा इंटेकवेल का काम भी अब तक लटका हुआ है। पहले से रांची शहर में 21 से अधिक जलमीनार के जरिए 30 मिलियन गैलन प्रति दिन की आपूर्ति नगर निगम क्षेत्र के 80 फीसदी हिस्से में की जा रही है।

2010 में बनी हटिया डैम की योजना

2010 में राज्य सरकार की तरफ से खूंटी के मुरहू और गुमला के नागफेनी से पानी रांची तक लाने की योजना बनी थी। पेयजल और स्व<स्हृद्द-क्तञ्जस्>छता विभाग, योजना विभाग और नगर विकास विभाग तथा जल संसाधन विभाग की उ<स्हृद्द-क्तञ्जस्>च स्तरीय टीम ने दोनों जगहों का दौरा भी किया। टीम ने मुरहू की योजना को दरकिनार कर दिया। नागफेनी से पानी लाने की योजना को आगे बढ़ाये जाने की अनुशंसा भी की। यह योजना फाइलों में ही सीमित रह गयी।