रांची(ब्यूरो)। यह चुनावी साल है। कुछ ही दिनों में चुनाव की घोषणा होगी। पहले लोकसभा, फिर विधानसभा का भी चुनाव झारखंड में होना है। किसी भी चुनाव में यूथ की बड़ी भागीदारी होती है। यूथ अपनी इच्छा से अपने लीडर का चयन करते हैं। इसी संदर्भ को देखते हुए दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की ओर से राजनी-टी नाम से परिचर्चा की शुरुआत की गई है, जिसमें आने वाले दिनों में विभिन्न स्थानों पर चौपाल लगाकर लोगों के विचार जानने की कोशिश की जाएगी। राजनी-टी के पहले दिन रांची यूनिवर्सिटी के जर्नलिज्म एवं मॉस कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट के स्टूडेंट्स से उनकी राय ली गई। पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे स्टूडेंट्स ने बेबाकी से अपनी राय रखी। इसमें कोई फस्र्ट टाइम वोटर था तो कोई दूसरी बार अपने वोट का इस्तेमाल करने वाला था। छात्रों ने बताया कि लीडर में लीडरशिप करने की क्वालिटी होनी चाहिए। पढ़ा-लिखा और योग्य उम्मीदार ही जनता की परेशानी समझकर उनका निराकरण कर सकता है।
चुनावी प्रक्रिया पर बात
इस परिचर्चा में युवाओं ने डिजिटल इलेक्शन से लेकर अन्य कई मु्द्दों पर बातचीत की। कैंडिडेट्स से लेकर चुनावी प्रकिया के बारे में भी युवाओं ने अपनी बातें रखी। युवाओं ने बताया कि उनके लिए पार्टी कोई मैटर नहीं करती है। कैंडिडेट योग्य होना चाहिए। यूथ के लिए राम मंदिर कोई मुद्दा नहीं है। चुनाव में युवा अपने भविष्य, रोजगार, शिक्षा और जन समस्याओं को दूर करने के मुद्दे को सामने रखकर वोट देंगे। लड़कियों का कहना था लड़की की शादी की उम्र 21 साल कर देनी चाहिए। क्योंकि इस उम्र तक उनमें सोचने-समझने की शक्ति आ जाती है। वो अपना अच्छा-बुरा देख सकती हैं।
क्या कहते हैं यूथ
इस डिजिटल समय में जब सबकुछ डिजिटलाइज होता जा रहा है। ऐसे में चुनाव भी ऑनलाइन होना चाहिए। यदि ऑनलाइन वोटिंग का ऑप्शन मिलेगा तो वोट का अनुपात भी बढ़ेगा। ज्यादा से ज्यादा लोग अपने मत का प्रयोग कर सकेंगे। कई बार ऐसा होता है कि कहीं और जॉब करने या पढ़ाई करने की वजह से लोग वोट नहीं कर पाते हैं। यदि ऑनलाइन की सुविधा होगी, तो वे जहां होंगे वहीं से अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे।
-आस्था गुप्ता

वोटिंग हर मतदाता के लिए अनिवार्य होना चाहिए। ऐसा होने से एक बेहतर और योग्य उम्मीदवार चुनने में मदद मिलेगी। इसके अलावा उम्मीदार कौन, इसका भी हमें स्टडी करना चाहिए। उसकी शिक्षा कितनी है और विजन क्या है, यह तो जरूर देखना चाहिए। 70 साल पहले की तरह आज भी बेरोजगारी बहुत बड़ा मुद्दा है। इसे दूर करना जरूरी है। इलेक्शन के समय बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं, लेकिन चुनाव जीतते ही सभी अपने वादे भूल जाते हैं। युवाओं को रोजगार मिले, इसकी प्राथमिकता होनी चाहिए।
-पल्लवी धान

राम मंदिर बनना तो ठीक है, लेकिन सिर्फ राम मंदिर बन गया, इसलिए हम किन्ही को वोट कर दें, यह गलत होगा। क्योंकि मंदिर से किसी व्यक्ति का जीवन नहीं चल सकता है। वहां प्रार्थना कर सकते हैं, रोजगार नहीं है। चुनावी मुददे शिक्षा और रोजगार होना चाहिए। व्यक्ति यदि शिक्षित होगा तो वह अपने जीवन यापन के लिए जरूर कुछ न कुछ कर लेगा। इस क्वालिटी और स्किल एजुकेशन पर जोर देना चाहिए।
-रिया किस्पोट्टा

इलेक्शन में परिवारवाद खत्म होना चाहिए। योग्य कैंडिडटे्स को ही वोट दें। इसका जरूर ख्याल रखना चाहिए। परिवार के साथ-साथ चुनाव में जातिवाद भी हावी रहता है। इसपर भी रोक लगाने की जरूरत है। जातिवाद में पड़ कर लोग किसी को भी चुन लेते हैं। अपने सांसद या विधायक से हमें उम्मीद होती है कि वे न सिर्फ हमारी समस्याओं को सुनें बल्कि उसे दूर भी करें। क्षेत्र के लिए डेवलपमेंट का काम करें। अच्छे लोगों को भी राजनीति में जरूर आना चाहिए, तभी इसकी गंदगी साफ होगी।
- आकाश रंजन

लड़कियों-महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर कई कानून हैं। लेकिन महिलाओं को इसकी जानकारी ही नहीं है। जिसका फायदा अपराध करने वाले उठाते हैं। महिलाओं के साथ होने वाले सभी हिंसा और उसके खिलाफ क्या सजा हो सकती है, कैसे कोई लड़की अपनी आवाज उठा सकती है, कहां वह शिकायत कर सकती है। इन सब बातों की जानकारी स्कूल और कॉलेज एजुकेशन में ही शामिल करना चाहिए। मौजूद कानून पर्याप्त है, इसे और कड़ा करने की जरूरत है। इसके अलावा सबसे बड़ी जो कमी है, वह समय की। समय से महिलाओं-लड़कियों को न्याय नहीं मिलता है। सालों साल उन्हें कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने पड़ते हैं।
- पुष्पा महतो

आज भी हजारों-लाखों सरकारी पद वैकेंट पड़े हुए हैं। देश भर में सरकारी नौकरी पर आफत है। सौ पद के लिए वैकेंसी आती है तो उसमें पाच लाख आवेदन आते हैं। उसके बाद भी कभी समय से परीक्षा नहीं ली जाती है तो कभी परीक्षा ही रदद कर दी जाती है। तो वहीं पेपर लीक कर युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ होता है। सभी खाली पड़े पदों पर नियुक्ति कर दी जाए तो बेरोजगारी में कुछ हद तक जरूर कमी आएगी। सरकार किसी की भी हो बेरोजगारी को दूर करने की इच्छाशक्ति होनी चाहिए। यह जरूर दूर होगा। इससे सिर्फ किसी व्यक्ति ही नहीं, संपूर्ण राष्ट्र का विकास होगा।
- बसंत कुमार

चुनाव में हर पार्टी कई सुनहरे सपने दिखाती है। लोक-लुभावन वादे करती है। मुफ्त की रेवडिय़ां बांटी जाती हैं, जिसका परिणाम होता है कि अच्छे और योग्य उम्मीदार का चुनाव न कर हम झूठे वादे करने वाले का चयन कर लेते हैं। लोगों को मुफ्त में कुछ भी लेने की मानसिकता बदलनी होगी। क्योंकि व्यक्ति चुनाव जीत कर आता है तो अगले पांच साल तक वह कुर्सी पर रहता है। इसलिए लोक लुभावन वादों में न पड़कर बेहतर से बेहतरीन की तलाश ज्यादा अच्छे परिणाम दे सकते हैं।
-अमिताभ