रांची(ब्यूरो)। रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइकियाट्री एंड अलाइड साइंसेज(रिनपास) में इन दिनों रिनपास में मनोरोगियों की संख्या तेजी से बढ़ गई है। रिनपास में हर दिन 300 ओपीडी मरीजों में 50 से अधिक नए शामिल हैं। सिर्फ झारखंड ही नहीं बिहार, बंगाल, ओडि़शा, छत्तीसगढ़ से भी मरीज इलाज कराने के लिए पहुंच रहे हैं। कोरोना के बाद नए मरीजों की संख्या बढ़ रही है। इनमें सबसे अधिक युवा हैं, जो मानसिक रोग के शिकार हो रहे हैं। युवा नशे की लत में जकड़ते जा रहे हैं। हैरान करने वाली बात यह है कि सिर्फ युवक ही नहीं, बल्कि युवतियां भी अब ब्राउन शुगर जैसे ड्रग्स की आदी हो रही हैं। यही कारण है कि कांके के मनोविज्ञान केंद्र स्थित नशामुक्ति केंद्र में अब हर महीने 100 से अधिक की संख्या में युवा आ रहे हैं। जबकि दो साल पहले यह आंकड़ा काफ कम था। युवाओं में बढ़ती नशे की लत को गंभीर बताते हुए रिनपास के वरीय मनोचिकित्सक डॉ सिद्धार्थ सिन्हा बताते हैं कि पहले प्रत्येक सप्ताह 20 से 25 ऐसे मरीज ओपीडी में आ रहे थे, जिनकी नशे के कारण तबीयत खराब होती थी। फि र नशे के कारण दिमाग पर असर हुआ है। अब यह आंकड़ा लगातार बढ़ता चला जा रहा है।

मल्टीपल सब्सटांस एब्यूज

मनोचिकित्सक डॉ सिद्धार्थ सिन्हा ने बताया कि अप्रैल 2021 में ऐसे आठ लोगों को नशा मुक्ति केंद्र में लाया गया था, जिन्हे मल्टीपल सब्सटांस एब्यूज, ब्राउन शुगर, गांजा और शराब की लत थी। पर इसके बाद इसके आंकड़े बढ़ते चले गए। वर्तमान में रिनपास में मल्टीपल सब्सटांस एब्यूज के कारण भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या बढ़कर 47 पहुंच गयी और आंकड़ा हर रोज बढ़ता ही जा रहा है।

बढ़ती जाती है नशे की लत

डॉ सिद्धार्थ सिन्हा ने बताया कि ब्राउन शुगर एक ऐसा नशा है जिसका सेवन करने वाला इसे शुरुआत में दिन में दो बार ही लेता है। इसके बाद 10 से 15 दिनों में वह इस नशे का इतना आदी हो चुका होता है कि 24 घंटे में नशे में रहना चाहता है। कुछ वक्त के बाद तो ऐसे हालात हो जाते हैं कि नशा करने वाला व्यक्ति ब्राउन शुगर को पानी में मिलाकर इंजेक्शन के जरिए अपनी नस में इंजेक्ट करने लगता है। कई बार इंजेक्शन शेयरिंग भी होती है इससे एचआईवी जैसी खतरनाक बीमारी का खतरा भी बन जाता है।

रिनपास में इलाज संभव

मनोचिकित्सक डॉ सिद्धार्थ सिन्हा ने कहा कि नशे के आदी हो चुके युवाओं का इलाज संभव है। रिनपास के नशा मुक्ति केंद्र में उनका इलाज होता है। उन्होंने कहा कि कम से कम ढाई-तीन महीने के इलाज के बाद नशे की लत से छुटकारा दिलाया जा सकता है। नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती मरीजों को नशे की लत छुड़ाने के लिए शरीर के अंदर का विष हरने की दवा जाती है। इसके अलावा केंद्र में मोटिवेशनल एन्हांसमेंट थेरेपी के जरिए मरीजों को ठीक करने की कोशिश की जाती है। नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती मरीज के परिजनों की भी काउंसेलिंग की जाती है।

पेरेंट्स को ध्यान देने की जरूरत

डॉ सिद्धार्थ सिन्हा ने कहा कि अगर कोई युवक ब्राउन शुगर लेना शुरू करता है तो उसके व्यवहार में बदलाव आ जाता है। वो घर में आकर किसी से बात नहीं करता है। वह अपने कमरे में खुद को बंद रखता है और खुद को सबसे अलग कर लेता है। खाना पीना भी ठीक से नहीं खाता और पढ़ाई में ध्यान नहीं देता है। इसके अलावा वह लगातार पैसों की मांग करता है।

रिनपास के ओपीडी में मरीजों की संख्या हर दिन बढ़ रही है। ओपीडी में हर दिन 300 मरीज पहुंचते हैं, इनमें 250 ऐसे मरीज होते हैं, जिनका इलाज चल रहा होता है। 50 से अधिक नए मरीज हर दिन पहुंच रहे हैं। इनमे सबसे अधिक युवा होते हैं जो नशे के कारण मानसिक बीमार हो रहे हैं। पोस्ट कोविड के कारण भी लोगों में मानसिक परेशानी बढ़ रही है।

-डॉ सिद्धार्थ सिन्हा, वरीय मनोचिकित्सक, रिनपास, रांची