रांची (ब्यूरो)। सिटी में पानी की भारी किल्लत हो गई है और इसके पीछे सबसे बड़ा कारण जलस्रोतों पर अतिक्रमण के रूप में सामने आया है। शहर से लेकर रूरल एरिया तक माफियाओं ने कब्जा कर लिया। सिटी के जेल रोड स्थित तालाब, कोकर का तालाब, बडग़ाईं, मिसीरगोंदा, हात्मा, हेसल, सुखदेवनगर समेत रातू, नगड़ी, कांके के कई रूरल एरिया में भी तालाबों पर कब्जा किया जा रहा है। मिसीर गोंदा तालाब की हालत भी काफी दयनीय हो चुकी है। यह तालाब भी अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहा है। लगभग सौ वर्ष पुराना मिसीर गोंदा तालाब जीर्णोद्धार की आस में दम तोड़ रहा है। कुछ साल पहले यहां जीर्णोद्धार का काम शुरू हुआ, लेकिन दो लोगों ने रैयती जमीन पर तालाब होने का दावा कर दिया, जिसके कारण तालाब खुदाई की प्रक्रिया बंद कर दी गई। नगर आयुक्त की पहल पर तालाब की जमीन से संबंधित कागजातों की जांच कराई गई तो पता चला कि यह रैयती जमीन पर नहीं, बल्कि सरकारी तालाब है। इसके बाद भी तालाब सौंदर्यीकरण योजना पर लगा ग्रहण अबतक नहीं हट सका है।

आवेदन के बाद भी पहल नहीं

दिनों दिन इसकी स्थिति और भी ज्यादा खराब होती जा रही है। तालाब के बीच में घास और जंगली पौधे उग आए हैं। सफाई नहीं होने से इसकी गहराई खत्म होती जा रही है। आस-पास के लोगों ने तालाब की खुदाई और गहरीकरण के लिए कई बार आवेदन भी दिया, लेकिन कोई पहल नहीं की गई। इसकी साफ-सफाई, गहरीकरण और चारों ओर सीढ़ी निर्माण से इस तालाब का भी लुक बदल जाता हैै। साथ ही तालाब के दुरुस्त रहने पर आस-पास के लोगों के घरों में पानी की समस्या भी नहीं होती। लोकल लोगों ने बताया कि तालाब होने के बाद भी आसपास के इलाकों में पानी की घोर समस्या है। बोरिंग कराने पर 800 फीट तक भी पानी नहीं निकलता है। तालाब की अनदेखी के कारण आसपास का भूगर्भ जलस्तर भी घटता जा रहा है। कुछ दिनों में बारिश का मौसम शुरू हो जाएगा। यदि गर्मी में तालाब की खुदाई की जाती तो वर्षा जल का संचयन होता। तालाब भरा होने से आसपास का भूगर्भ जलस्तर भी मजबूत होता।

भू माफिया का खेल

सरकारी पदाधिकारी और भू-माफिया मिल कर एक-एक कर सभी तालाब बेच रहे हैं, जो तालाब बचे हुए हैं उनका भी दोहन किया जा रहा है। आस-पास के एरिया में अतिक्रमण कर बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स खड़ी कर दी गई है। जिससे पानी का स्रोत बिल्कुल बंद हो गया है। भू-राजस्व से जुड़े अधिकारियों-कर्मियों की मिलीभगत के बिना यह संभव नहीं। नक्शे पर तालाब व अन्य जल स्रोत साफ दिखाई देते हैं। इसके बावजूद इन जमीन की धड़ल्ले से रजिस्ट्री भी होती है और दाखिल-खारिज भी हो जाता है। इतना ही नहीं, आरआरडीए और नगर निगम इसके लिए नक्शा भी पास कर देते हैं, जिसपर बहुमंजिली इमारतें खड़ी हो जा रही हैं। जब कोर्ट फटकार लगाती तब निगम और आरआरडीए और अंचल कार्यालय के पदाधिकारी हरकत में आते हैं। लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति कर इसकी इतिश्री कर ली जाती है। भूमाफिया जिस जमीन से करोड़ों रुपए कमाते हैं उसे खरीदने के लिए जबरदस्त तरीका अपनाते हैं। तालाब की कई जमीनें रैयती हैं या निजी लोगों की जमीन है। माफियाओं द्वारा पहले जमीन मालिक को कहा जाता है कि तालाब है सारे अधिकारियों को, लोकल लोगों को मैनेज करना होगा, बहुत विवाद है जैसी बातें कहकर सस्ती दर पर जमीन मालिक से करार करते हैं उसके बाद उसे भरकर करोड़ों की कीमत पर बेच देते हैं।