रांच (ब्यूरो)। सिटी में मोनो रेल से सफर करने वाले लोगों के सपनों को अभी पूरा होने में समय लगेगा, क्योंकि शहर में चलने वाली मोनो रेल सिर्फ कागजों पर चल रही है। फरवरी महीने में शहरी विकास मंत्रालय के सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा रांची आए हुए थे। उन्होंने नगर विकास विभाग से रांची शहर में मोनो मेट्रो रेल चलाने के लिए प्रस्ताव भेजने को कहा था। 10 महीने से अधिक समय गुजर गए, नगर विकास विभाग ने भारत सरकार को इससे संबंधित कोई प्रस्ताव नहीं भेजा है। इस बारे में विभाग के वरीय अधिकारी भी कुछ कहने से बच रहे हैं।

मेट्रो नियो चलाने का मिला था आश्वासन

राजधानी रांची में सफर के लिए मेट्रो ट्रेन की तहर मेट्रो नियो की सुविधा उपलब्ध कराने की बात कही गई थी। केंद्रीय आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय के सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने राज्य सरकार से इसके लिए प्रस्ताव मांगा था। उन्होंने यह भी कहा था कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट को हर घर तक पहुंचाने की दिशा में तरीके से काम करने की जरूरत है। इसके लिए केंद्र सरकार शीघ्र ही योजनाएं शुरू करने जा रही है।

बजट में की मेट्रो नियो की घोषणा

केंद्र सरकार के बजट में बड़े शहरों में मेट्रो की तर्ज पर छोटे शहरों में मेट्रो नियो या मेट्रो लाइट शुरू करने की व्यवस्था है। मेट्रो के मुकाबले ये आधे से भी कम खर्च में बनेंगे। ये छोटे शहरों में होने वाली ट्रैफिक की समस्या को काफी हद तक दूर कर सकते हैं। रबर की टायर पर चलने वाली तीन कोच वाली इस मेट्रो के स्टेशन परिसर के लिए बड़ी जगह की जरूरत नहीं होती है। यह सड़क की सतह पर भी चल सकती है। इसमें यात्रियों के बैठने की क्षमता सामान्य मेट्रो से कम होगी। इसके हर कोच में 200-300 लोग सफर कर सकते हैं। इसका मतलब यह कि मेट्रो नियो में एक साथ 700 से 800 लोग सफर कर सकते हैं।

लागत भी कम आएगी

इसके लिए सड़क से अलग एक डेडिकेटेड कॉरिडोर तैयार किया जाएगा। इस मेट्रो सिस्टम से छोटे शहर के लोगों को भी सड़क के जाम से निजात मिलेगी। इससे छोटे शहरों की परिवहन व्यवस्था भी सुधरेगी। इसको बनाने में खर्च काफी कम आता है। अभी एक एलिवेटेड मेट्रो को बनाने में प्रति किलोमीटर का खर्च 300-350 करोड़ रुपए आता है। अंडरग्राउंड में यही लागत 600-800 करोड़ रुपए तक पहुंच जाती है। जबकि एक मेट्रो नियो या मेट्रो लाइट के लिए 200 करोड़ तक का ही खर्च आता है।

हर दिन तीन लाख लोग करते हैं सफर

राजधानी रांची की शहरी आबादी 16 लाख से अधिक है, लेकिन उसकी तुलना में न सड़कें हैं और न पब्लिक ट्रांस्पोर्ट। पब्लिक ट्रांसपोर्ट के नाम पर राजधानी में महज 15 से 20 सिटी बसें ही चलती हैं, जबकि आंकड़ों के मुताबिक रांची में रोजाना तीन लाख से अधिक लोग एक से दूसरे जगह आना-जाना करते हैं। जो डीजल ऑटो या निजी वाहनों में सफर करते हैं। शहर में रोजाना 30 हजार से अधिक ऑटो का परिचालन होता है। इसके अलावा लोग अपने वाहन से आना-जाना करते हैं। इसका बुरा असर शहर की ट्रैफिक पर पड़ता है। सुबह नौ बजे से लेकर रात के आठ बजे तक शहर की मुख्य सड़कों पर लंबा जाम लगा रहता है। ऐसे में सरकार जबतक पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बेहतर नहीं करेगी, रांची को जाम से मुक्ति नहीं मिलेगी।

2015 में भी बन चुकी है योजना

रांची में मोनो रेल चलाने की योजना नई नहीं है। 2015 में रघुवर दास की सरकार ने भी राजधानी में मोनो मेट्रो रेल चलाने के लिए स्वीकृति दी थी, लेकिन यह भी कागजों में ही चलती रही। इसके लिए आइडीएफसी को परामर्शी चुना गया था। पहले फेज में शहर के 14 किमी क्षेत्र में मोनो रेल चलाने की योजना बनी थी। शहर में रातू रोड, मेन रोड, लालपुर, कांटाटोली, बिरसा चौक जैसे व्यस्त इलाकों में मोनो रेल चलाने की योजना थी। इसके लिए व्यस्त सड़कों को चौड़ा करने की जगह डिवाइडरों के बीच खंभे (पिलर) खड़े किये जायेंगे। खंभों के ऊपर पटरी बिछायी जानी थी, स्टेशन भी सड़क के ऊपर ही बनाये जाने की योजना थी। 2015 में ही इसके लिए प्रस्ताव भी तैयार किए गए, जिसे केंद्र सरकार के पास भेजा गया था। जिसमें प्रति किमी 200 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान था। 14 किलोमीटर ट्रैक बिछना था और इसके लिए 19 स्टेशन का निर्माण होना था।

सांसद ने पीएम से की थी मांग

इस साल के जुलाई महीने में रांची के सांसद संजय सेठ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी। मुलाकात में उन्होंने पीएम से रांची में मोनो मेट्रो रेल चलाने की मांग की थी। लेकिन सांसद संजय सेठ की मांग के बावजूद यह एक कदम भी आगे नहीं बढ़ रहा है