RANCHI:मातमी माह मुहर्रम की नौवीं और दसवीं तारीख के मौके पर रांची में अकीदतमंदों ने कर्बला के शहीद ईमाम हुसैन और उनके 72 साथियों को याद किया और उनकी मगफिरत की दुआएं मांगीं। मुहर्रम के महीने से इस्लामिक साल की शुरुआत होती है। इस महीने में ही ईराक के कर्बला मैदान में यजीदियों ने पैंगम्बर मोहम्मद साहब के नवासे हजरत ईमाम हुसैन को शहीद कर दिया था। हर साल मुहर्रम के महीने के 10वें दिन रोज-ए-आशूरा होता है। इस बार रांची में मुहर्रम को लेकर कोई जुलूस नहीं निकाला गया। लोगों ने बाद नमाज जुमा मस्जिदों में दुआएं कीं। इसके बाद ईमामबाड़ों पर नियाज-फातिहा कर दुआ-ए-मगफिरत की गई।

तकरीर का हुआ आयोजन

रांची के कर्बला चौक, मेन रोड स्थित कुल्हाड़ी शाह बाबा, डोरंडा कब्रिस्तान, कांके धौताल, कांके कर्बला सहित विभिन्न कर्बला और ईमामबाड़ो में नियाज फातिहा के बाद सादगी से मुहर्रम मनाया गया। कहीं भी किसी अखाड़े के द्वारा जुलूस नहीं निकाले गए। मुस्लिम बहुल इलाकों के चौक-चौराहों पर ब<स्हृद्द-क्तञ्जस्>चे बाजार में बिकने वाले छोटे-छोटे ढोलक खरीद कर बजाते नजर आए। कई जगह पर हजरत इमाम हुसैन की याद में तकरीर का आयोजन किया गया। इस दौरान उलेमाओं ने कर्बला के वाकये को बताया।

कई जगह हुई रस्म-ए-पगड़ी

कई अखाड़ों के ईमामबाड़ो में लोगों ने अपने-अपने खलीफा को पगड़ी बांधकर स्वागत किया। उन्हें तलवार भेंट कर सम्मानित किया। कोविड-19 के गाइडलाइन का पालन कराने के लिए पुलिस की गश्ती सुबह से शाम तक होती रही। सेंट्रल मुहर्रम कमेटी के महासचिव अकीलुर्रहमान के नेतृत्व में पूरी टीम इलाके का दौरा करती रही। जगह-जगह ब<स्हृद्द-क्तञ्जस्>चों और नौजवानों को समझाते रहे के ढोलक ना बजाएं, किसी तरह का खेल प्रदर्शन ना करें। तीनों मुख्य इमामबाड़ा धौताल का महावीर चौक, गावला टोली चौक, इमाम बख्श का हिंदपीढ़ी में, सुबह से शाम तक न्याज फातिहा का दौर चलता रहा।

लंगर खानी का दौर

मुहर्रम पर मुस्लिम मुहल्लों के चौक-चौराहों ईमामबाड़ो और घरों में लंगर खानी का दौर चलता रहा। कोविड-19 को देखते हुए लोग एक एक कर आते गये और लंगर खानी सुबह से शाम तक चलता रहा। कोई शरबत बांट रहा है, तो कोई खिचड़ा, तो कोई खीर, कोई मिठाई, कोई खजूर, कोई दलिया, कोई बिरयानी, कोई फल, कोई मीठा जर्दा, जिससे जो हो रहा है वह अपने हिसाब से मुहर्रम में लंगर खानी का एहतमाम कर रहा था।

ज्यादातर मुसलमानों ने रखा रोजा

मुहर्रम में 9वीं और 10वीं का रोजा की अहमियत बहुत है। इसलिए ज्यादातर मुसलमानों ने 9वीं और दसवीं का रोजा रखा। रोजा रखकर अपने रब को याद किया। हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद कर उनके लिए इसाले सवाब (दुआ) की गई। साथ ही पूरी दुनिया में कोविड-19 जैसे महामारी की खात्मा की दुआ की गई।