रांची(ब्यूरो)। करोड़ों का एथलेटिक्स स्टेडियम खेलगांव में है, लेकिन झारखंड के होनहारों को प्रैक्टिस के लिए बिना पैसे के यहां एंट्री भी नहीं है। नेशनल लेवल तक के एथलेटिक्स प्लेयर्स, जो राज्य का नाम रोशन क चुके हैं, झारखंड की ओर से खेल चुके हैं, लेकिन अब उनको अपना खेल जारी रखने के लिए प्रैक्टिस तक नहीं करने दिया जा रहा है। अपने खर्च पर वो किराया लेकर रह रहे हैं। पैसे देकर स्टेडियम में प्रैक्टिस कर रहे हैं और पैसा खत्म हो जाने पर प्रैक्टिस तक नहीं करने दिया जा रहा है।
500 रुपए का मंथली कार्ड
खेलगांव स्थित एथलेटिक्स स्टेडियम में प्रैक्टिस करने वाले प्लेयर्स को हर महीने 500 रुपए का कार्ड दिया जाता है। एक महीने बाद अगर प्लेयर्स के पास पैसा नहीं है तो उसकी प्रैक्टिस भी बंद हो जाती है। यह ऐसे प्लेयर्स के साथ हो रहा है, जिन्होंने झारखंड को रिप्रेजेंट किया है। जबकि सीसीएल की ओर से यहां प्रैक्टिस करने वाले सभी प्लेयर्स को तमाम सुविधाएं मिल रही हैं, लेकिन राज्य के प्लेयर्स को कोई सुविधा नहीं मिल रही है।
जिम में भी एंट्री नहीं
यहां झारखंड के प्लेयर्स के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है। प्लेयर्स को खेलगांव के स्टेडियम में जो जिम है, उसमें भी एंट्री नहीं दी जा रही है। वहीं सीसीएल के जो प्लेयर्स हैं वो कहीं भी स्टेडियम में आ-जा सकते हैं, लेकिन झारखंड के प्लेयर्स को स्टेडियम में भी हर जगह जाने की मनाही है।
खाना-पीना सब अपने पैसे पर
झारखंड के प्लेयर्स राज्य की तरफ से भी खेलते हैं, लेकिन उनको कोई मदद नहीं मिल रही है। पांच हजार के किराये वाले कमरे में पांच से छह प्लेयर्स रहते हैं। अपने पैसे से खाते-पीते हैं, और स्टेडियम में प्रैक्टिस करने का पैसा भी दे रहे हैं। सरकार की ओर से उनको कोई मदद नहीं मिल रही है। सभी गरीब घर के हैं, प्लेयर्स को प्रैक्टिस के बाद जो खाने-पीने की चीजें जरूरी होती हैं वो भी नहीं खरीद पाते हैं।
सीसीएल के बच्चों को सभी सुविधाएं
राज्य के बच्चे भले ही नेशनल लेवल तक खेल चुके हों, लेकिन उनको कोई सुविधा नहीं मिल रही है। लेकिन सीसीएल जिन बच्चों को ट्रेनिंग दे रहा है, उनको सभी तरह की सुविधाएं दी जा रही हैं। उन बच्चों के लिए स्पेशल कोच भी हैं, जो उनको सिखाते हैं।
डेढ़ साल से घर नहीं गए
अधिकतर प्लेयर्स यहां रहकर जो प्रैक्टिस करते हैं उनमें हजारीबाग, धनबाद, गिरिडीह, कोडरमा जैसे इलाको से हैं। छात्रों का कहना है कि दो साल तक कोरोना के कारण कुछ नहीं हो पाया, उसके बाद से डेढ़ साल से हमलोग घर नहीं गए हैं, सिर्फ प्रैक्टिस कर रहे हैं। घर में कोई बीमार, या कोई खुशी का मौका होता है तब भी नहीं जा पाते हैं।

क्या है प्लेयर्स की पीड़ा
मैं झारखंड की तरफ से बिहार में होने वाले एथलेटिक्स मीट में शामिल रही हूं। मुझे वहां अवार्ड मिला था, लेकिन रांची आने के बाद मुझे कोई सपोर्ट नहीं मिल रहा है। अपने पैसे से किसी तरह प्रैक्टिस कर रही हूं। प्रैक्टिस करने के लिए भी हर महीने पैसे देकर कार्ड बनाना पड़ रहा है, उसके बाद ही एंट्री मिलती है।
संघमित्रा मेहता

मैं भी झारखंड की ओर से कई बार नेशनल लेवल पर आयोजित मैच में शामिल हो चुका हूं। लेकिन अपने राज्य में सरकार की ओर से मदद नहीं मिल रही है। खेलगांव में स्टेडियम के साथ सभी तरह की सुविधाएं हैं, लेकिन हमें इसका लाभ नहीं मिल रहा है। अपने खर्चे से प्रैक्टिस कर रहे हैं।
पवन सिंह

बस अपने देश का नाम रोशन करना है। इंडिया के लिए खेलना है, इसीलिए सभी तरह का कष्ट झेलकर भी प्रैक्टिस कर रहा हूं। सरकार की ओर से कभी मदद नहीं मिलती है। अगर स्टेडियम का इस्तेमाल करने को मिल जाए, और कोई कोच मिल जाए, तो हमारे लिए प्रैक्टिस करना आसान हो जाएगा।
उमेश कुमार

झारखंड के सभी प्लेयर्स को बढ़ावा देने का काम किया जा रहा है। प्लेयर्स को प्रैक्टिस हर हाल में करनी है, उनकी मदद की जाएगी। हमारे पास अभी इन बच्चों की कोई सूचना नहीं आई है। इसकी जांच करवाकर हम उनकी मदद करेंगे।
-हफीजुल हसन, मंत्री, खेल एवं युवा कार्य विभाग, झारखंड