रांची: राजधानी रांची में कोरोना का संक्रमण चौगुनी स्पीड से बढ़ रहा है। सिटी में अब कोई इंसान ऐसा नहीं जिसके परिचित में किसी को कोविड न हो। संक्रमण के बढ़ रहे ग्राफ ने जहां एक ओर राजधानी के हॉस्पिटल में बेड की कमी कर दी है। वहीं दूसरी और मरने के बाद भी दाह संस्कार के लिए डेड बॉडी को घंटो इंतजार करना पड़ रहा है। इसका एक और साइड इफेक्ट ऑक्सीजन की कमी के रूप में देखा जा रहा है, जिस प्रकार बेड के लिए मारामारी हो रही है उसी प्रकार सिटी में अब ऑक्सीजन के लिए भी लोग यहां-वहां दौड़ लगा रहे हैं। इसका फायदा आक्सीजन का कारोबार करने वाले उठा रहे हैं। सामान्य दिनों में पांच से सात हजार में बिकने वाला दस लीटर का ऑक्सीजन सिलेंडर इन दिनो 12 से 18 हजार रुपए में बेचा जा रहा है। लोग एक सप्लायर से दूसरे सप्लायर के पास भटक रहे है।

रांची में 2 फैक्ट्री, 6 सप्लायर

सिटी में आक्सीजन बनाने वाली दो कंपनियां हैं। एक विकास और दूसरा पालू में स्थित है। जबकि लगभग छह छोटे सप्लायर सिटी के मेडिकल्स में ऑक्सीजन सप्लाई करते हैं। इन्हीं सप्लायर के पास आम पब्लिक भी ऑक्सीजन लेने पहुंच रही है। सिटी में सर्जिकल सामानों की बिक्री करने वाले भी छोटे हैंडी सिलेंडर की बिक्री कर रहे हैं। हालांकि कम ही दुकानदारों के पास छोटे सिलेंडर हैं, एक लीटर वाला 600-1000 रुपए तक में बेचा जा रहा है। इसके अलावा ऑक्सी मीटर भी लोग खरीद रहे हैं। दरअसल, कोरोना के बढ़ते प्रकोप और हॉस्पिटल की स्थिति को देखते हुए लोग होम आइसोलेसन को प्रायोरिटी दे रहे हैं, जिस वजह से ऑक्सीजन की डिमांड बढ़ गई है। सप्लायर पहले जिस ऑक्सीजन को सिर्फ हॉस्पिटल में भेजा करते थे। अब आम पब्लिक को भी बेच रहे हैं। सप्लायरों का कहना है कि रात में भी चैन नहीं मिला रहा है। लोग आक्सीजन के लिए काफी परेशान है। सप्लायर का कहना है कि एक फैक्ट्री शाम पांच बजे बंद हो जाती है, जबकि दूसरी रात दस बजे बंद होती है। इस कारण समय से आक्सीजन नहीं मिलता। यदि रात में भी फीलिंग का काम हो तो काफी हद तक राहत मिल सकती है।

रेमडेसिवर इंजेक्शन का भी टोटा

किसी ने नहीं सोचा था कि कोरोना इंसान की सांसों पर भारी पड़ जाएगा। एक सूक्ष्म सा वायरस अकाल मौतों और हाहाकार की वजह बनेगा। इंसान को जिंदगी देने वाले अस्पतालों में भी चीख पुकार मच जाएगी। आज कई हॉस्पिटलों में ऑक्सीजन की कमी होने लगी है। लगातार और तेजी से संक्रमण के मामले बढ़ने से रेमडेसिवर इंजेक्शन और ऑक्सीजन का भी टोटा पड़ गया है। कई लोग सिर्फ ऑक्सीजन की कमी के कारण प्राण गवां रहे हैं। स्थिति इतनी भयावह है कि श्मशान और कब्रिस्तान में भी मोक्ष के लिए इंतजार करना पड़ रहा है। यह सब हालात सिस्टम की बदइंतजामियों और लोगों की लापरवाही का नतीजा है। सिर्फ राजधानी रांची से हर दिन 900 से 1000 संक्रमित मरीज सामने आ रहे हैं। हॉस्पिटल में प्रेशर इतना ज्यादा है कि बेड मिलने से पहले एंबुलेंस में ही पेशेंट दम तोड़ दे रहे हैं। मिली जानकारी के अनुसार, ऑक्सीजन की खपत पहले से तीन गुणा ज्यादा बढ़ गई है।

ऐसे तैयार होती है ऑक्सीजन

फैक्ट्री में ट्रकों से भरकर ऑक्सीजन के लिक्विड फॉर्म को लाया जाता है। उसके बाद फैक्ट्री में बने वेसल में डालकर उस लिक्विड को बूस्टअप किया जाता है। इसके बाद वह सिलेंडर में भरा जाता है। तब जाकर ऑक्सीजन सिलेंडर मरीजों को मुहैया कराया जाता है। ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदने के लिए पहले लोगों को एक सिलेंडर खरीदना पड़ता है। उस सिलेंडर के साथ रेगुलेटर, फ्लो मीटर, मास्क और ऑक्सीजन चाबी की भी जरूरत होती है, जिसके लिए ग्राहक को करीब 10 हजार रुपये तक खर्च करने पड़ सकते हैं। अगर मरीज के पास सिलेंडर के साथ दूसरे सभी समान हैं, तो उन्हें सिर्फ ऑक्सीजन भरवाने में सिलेंडर के साइज के हिसाब से कीमत देनी होगी। निजी स्तर पर ऑक्सीजन सिलेंडर अपने घर में रखने के लिए डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन जरूरी है। ऑक्सीजन सिलेंडर इस्तेमाल कैसे करना है, इसकी जानकारी भी सिलेंडर लेते समय दी जाती है।