RANCHI: जिन्होंने अब तक सिटी की पहाड़ी मंदिर की खूबसूरती नहीं देखी है, उनके लिए घर बैठे इस शानदार जगह को निहारने के उपाय किए जा रहे हैं। पहाड़ी मंदिर की डिटेल अब जल्द ही ऑनलाइन मिलेगी। पहाड़ी मंदिर विकास समिति मंदिर की बेवसाइट को अपडेट करने में जुटी है। इसके अलावा पहाड़ी मंदिर पर आधारित प्रमोशनल वीडियो भी तैयार कराया जा रहा है। इसमें मंदिर से जुड़ी कई जानकारियां होंगी। इस प्रमोशनल वीडियो को बनाने का मुख्य उद्देश्य यही कि देश-विदेश के श्रद्धालुओं को मंदिर के बारे में जानकारी मिल सके। इस वीडियों को यू ट्यूब पर अपलोड किया जाएगा। मंदिर विकास समिति और जिला प्रशासन जोर-शोर से इसकी तैयारी में जुटा है। वीडियो में 1905 से लेकर 2019 तक के सभी इंर्फोमेशन होंगे। किस तरह से मंदिर वजूद में आया, मंदिर से पहले यहां का इतिहास क्या था। ऐसे ही कई एतिहासिक पहलुओं को इस वीडियो में समेटा जाएगा। वहीं मंदिर के अपने बेवसाइट में भी इसे अपडेट किया जाएगा।

वीडियो में होगी भौतिक जानकारी

प्रमोशनल वीडियो में पहाड़ी मंदिर के भौतिक दशा जैसे समुद्र स्थल से इसकी उंचाई, जमीन से उंचाई, मंदिर अवस्था, सीढ़ी, भौतिक रचना क्षेत्रफल आदि सभी जानकारियां होंगी। विकास समिति के सदस्यों ने बताया कि यह प्रयास पहली बार किया जा रहा है। इससे मंदिर बनने के बाद और इससे पहले की स्थिति से लोग अवगत हो सकेंगे। मंदिर बनने से पहले यहां क्या था। इसे फांसी टोंगरी क्यों कहा जाता है। ब्रिटिश शासन काल में यहां क्या होता था आदि कई जानकारियां देने का प्रयास किया जाएगा।

अनूठी परंपरा का होता है निर्वहन

पहाड़ी मंदिर के साथ कुछ अनोखी परंपरा भी जुड़ी हुई है। यहां आदिवासी सबसे पहले नाग देवता की पूजा करते हैं। इसके बाद पहाड़ी बाबा का दर्शन करते हैं। यहां पहले नागगुफा में नाग का दर्शन करने के बाद वे पहाड़ी बाबा का दर्शन करते हैं। अन्य लोग पहले पहाड़ी बाबा पर जलार्पण करने के बाद नाग की पूजा करते हैं।

तिरंगा फहराया जाता है

यह एक ऐसा मंदिर है, जहां 15 अगस्त व 26 जनवरी को तिरंगा फहराया जाता है। यहां विशाल तिरंगा भी स्थापित किया गया है। जब देश आजाद हुआ तो यहां पर तिरंगा फहराया गया था। इस पहाड़ को स्वाधीनता पूर्व फांसी टुंगरी कहा जाता था। हालांकि इसका वास्तविक नाम रांची बुरू है। यहां कई स्वतंत्रता सेनानियों को अंगरेजों द्वारा फांसी दी गई।

468 सीढि़यां चढ़कर करते हैं दर्शन

पहाड़ी मंदिर 300 फीट की ऊंचाई पर हैं। भगवान शिव के दर्शन करने के लिए भक्तों को 468 सीढि़यां चढ़नी पड़ती हैं। इस पहाड़ी का भू-भाग लगभग 26 एकड़ में फैला हुआ है। पहाड़ी मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। पहाड़ी स्थित नाग देवता का स्थल 55 हजार साल पुराना बताया जाता है। 1905 के आसपास ही पहाड़ी के शिखर पर शिव मंदिर का निर्माण हुआ था। 1908 में पालकोट के राजा से इस पहाड़ी को नगरपालिका के एक अंग्रेज अधिकारी ने मात्र 11 रुपये में ले लिया था। हस्तांतरण आलेख में यह शर्त लिखा हुआ था कि पहाड़ी पर स्थित मंदिर सार्वजनिक होगा। 1917 में एमजी हेलेट द्वारा प्रकाशित बिहार-उड़ीसा गजेटियर में रांची पहाड़ी की चोटी पर शिव मंदिर का उल्लेख है।

शहर का नजारा है खूबसूरत

पहाड़ी के शिखर पर मौजूद मंदिर प्रांगण से रांची शहर का खूबसूरत नजारा दिखाई देता है। पर्यावरण प्रेमियों के लिए भी यह मंदिर महत्वपूर्ण है, क्योंकि पूरी पहाड़ी पर मंदिर परिसर के इर्द-गिर्द विभिन्न भांति के हजार से अधिक वृक्ष हैं। साथ ही यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का अनुपम सौंदर्य भी देखा जा सकता है।