रांची(ब्यूरो)। अब प्राइवेट प्राइवेट अस्पताल में इलाज करवाने वाले मरीजों की स्थिति अगर खराब होती है तो उन्हें सीधे सरकारी अस्पताल में नहीं भेजा जाएगा। बल्कि प्राइवेट अस्पताल में भर्ती मरीज की स्थिति और परिस्थिति दोनों का मूल्यांकन करने के बाद ही प्राइवेट अस्पताल मरीज को सरकारी अस्पताल में रेफर कर सकेंगे। वर्तमान में प्राइवेट अस्पताल में मरीज भर्ती होते हैं और उनकी आर्थिक स्थिति अगर कमजोर होती है तो उन्हें तत्काल सरकारी अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है। उनकी कंडीशन कैसी भी हो, उन्हें तत्काल रेफर कर दिया जाता है।

देखना होगा मरीज का कंडीशन

जो नया नियम तय किया गया है उसके अनुसार अस्पताल को यह देखना होगा कि मरीज का कंडीशन कैसा है। उसकी सांस की नली ठीक से काम कर रही है या नहीं, ऑक्सीजन सैचुरेशन कैसा है, बीपी, शुगर, पल्स रेट, हार्ट रेट ठीक है या नहीं। अगर यह सभी चीजें सही तरीके से काम नहीं कर रही हैं तो प्राइवेट हॉस्पिटल मरीज को सरकारी अस्पताल में रेफर नहीं कर सकते हैं। यही नियम मरीज को एक सरकारी अस्पताल से दूसरे सरकारी अस्पताल भेजने के लिए भी तय किया गया है।

मेंटल स्थिति कैसी है

मरीज को रेफर करते समय उसकी मानसिक स्थिति का भी ख्याल रखना होगा। मरीज अस्पताल से रेफर होने की मेंटल स्थिति में जब तक नहीं होता है उसे दूसरे अस्पताल में नहीं भेजा जा सकता है। इस नए नियम का पालन करने के लिए शीघ्र कानून बनाया जाएगा। इस मापदंड को देश के 24 डॉक्टरों की कमिटी ने मिलकर तैयार किया है, जिसमें रिम्स क्रिटिकल केयर विभाग के अध्यक्ष डॉ प्रदीप भट्टाचार्य भी शामिल हैं। यह पहली बार है जब राष्ट्रीय स्तर के मापदंड को तैयार करने में झारखंड के किसी डॉक्टर को शामिल किया गया है।

सरकारी अस्पताल में गंभीर मरीज

वर्तमान स्थिति ऐसी है कि राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेज में सबसे ज्यादा क्रिटिकल अवस्था में पहुंचने वाले मरीजों की संख्या होती है। प्राइवेट अस्पताल को जब लगता है कि उनसे यह केस नहीं संभल रहा है तो वह सीधे मेडिकल कॉलेज को रेफर कर देते हैं। राज्य के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज रिम्स में हर दिन 15 से 20 ऐसे मरीज प्राइवेट अस्पताल से आते हैं, जिनकी प्राइवेट अस्पताल में स्थिति अच्छी नहीं रहती है उनको भगवान भरोसे सरकारी अस्पताल के जिम्मे में छोड़ दिया जाता है।

हर सुविधा होनी चाहिए

नए नियम के अनुसार, जो भी प्राइवेट अस्पताल हैं, उनको अस्पताल में हर तरह की सुविधा रखनी होगी। प्राइवेट अस्पतालों का आईसीयू बेहतर होना चाहिए, यहां सुविधा मापदंड के अनुसार होना जरूरी है। जिस अस्पताल में इतनी सारी सुविधाओं की जानकारी नहीं दी जाएगी, वह पूरी तरह से गलत माना जाएगा। नए मापदंड के अनुसार अस्पताल के आईसीयू में वेंटिलेटर होना चाहिए, पैथोलॉजी, ईसीजी, जांच की सुविधा होनी चाहिए। इसके अलावा ऑक्सीजन सैचुरेशन, न्यूरोलॉजी की समस्या की मॉनिटरिंग की सुविधा हो, ब्लड प्रेशर और शुगर की मॉनिटरिंग की व्यवस्था भी हो।

अभी है यह व्यवस्था

वर्तमान में जो व्यवस्था है उसके अनुसार मरीज प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने के लिए जाते हैं, वहां अगर मरीज ठीक हो जाते हैं, तो अच्छा है, लेकिन अगर केस गड़बड़ हो जाता है, तो प्राइवेट अस्पताल मरीज को सरकारी मेडिकल कॉलेज में ईलाज कराने के लिए भेज देते हैं। मरीज की स्थिति कैसी भी हो।