रांची(ब्यूरो)। नेशनल प्रोग्राम कंट्रोल ऑफ ब्लाइंडनेस के तहत रिम्स में बन रहे क्षेत्रीय नेत्र संस्थान को शुरू होने में अभी और वक्त लगेगा। 39 करोड़ की लागत से तैयार हो रहे इस भवन का निर्माण वर्ष 2014 में शुरू हुआ था। तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र सिंह ने इसकी नींव रखी थी। भवन को दो साल में तैयार कर लेना था, लेकिन अब तक काम पूरा नहीं हुआ है। वहीं भवन के निर्माण की अनुमानित लागत बढ़कर अब 76 करोड़ तक पहुंच गई है। लेकिन दस साल में भी आई हॉस्पिटल का संचालन शुरू नहीं हो सका है। राच्य के विभिन्न अस्पतालों में हर महीने करीब 10 हजार लोग आंखों की समस्या को लेकर पहुंचते हैं। इनमें 20 परसेंट यानी करीब 2000 मरीजों को सर्जरी की जरूरत पड़ती है। रिम्स राच्य का एक मात्र ऐसा संस्थान है, जहां सामान्य दिनों में रोजाना 100 मरीज आंख की समस्या लेकर पहुंचते हैं। ऐसे में रीजनल आई इंस्टीट्यूट मरीजों के लिए वरदान साबित हो सकता था। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि करोड़ों की बिल्डिंग होने के बाद भी आम लोगों को इसका फायदा नहीं मिल रहा है।

2014 में रखी आधारशिला

आई इंस्टीट्यूट की आधारशिला 2014 में रखी गई थी। तब डॉ। तुलसी महतो निदेशक थे। दस सालों में कई डायरेक्टर आए और चले गए, लेकिन इसका संचालन शुरू नहीं करा पाए। आज भी बिल्डिंग में कई काम अधूरे हैं। भवन निर्माण का करीब 80 परसेंट काम पूरा हो चुका है। कमरे में फर्श, पुट्टी आदि का काम अधूरा है। एयर कंडीशनर और पाइपलाइन इंस्टॉल कर कुछ फ्लोर पर छोड़ दिया गया है। पाइपलाइन जंग खा रहे हैं। एसी और अन्य कुछ उपकरण खराब होने लगे हैं। करोड़ों के सामान की बर्बादी हो रही है। भवन हैंडओवर के बगैर भीतर से जर्जर हो रहा है। जानकारी लेने पर पता चला कि एसी, पाइपलाइन समेत फर्निशिंग के अन्य काम दो साल पहले शुरू हुए थे। जबकि, डेढ़ साल से काम पूरी तरह बंद है। कंस्ट्रक्शन कंपनी के अधिकारी रोहित अग्रवाल के अनुसार, भवन में 20 परसेंट का काम पेंडिंग है। उसमें फॉल सीलिंग, दरवाजे, खिड़कियां, बेड, मॉड्यूलर ओटी और हॉस्पिटल इक्विपमेंट्स का काम बाकी है। लिफ्ट और सीढ़ी के काम भी पूरे हो चुके है।

हजारों लोगों को होता लाभ

क्षेत्रीय नेत्र संस्थान का निर्माण नहीं होने से झारखंड के हजारों नेत्र रोगी बेहतर इलाज कराने से वंचित हैं। उन्हें नेत्र का इलाज कराने के लिए दूसरे राच्यों का रुख करना पड़ता है। रिम्स के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ राहुल कुमार ने कहा कि क्षेत्रीय नेत्र संस्थान के शुरू होने से ग्लूकोमा, रेटीना, पीडियाट्रिक ऑप्थोल्मोलॉजी, कम्युनिटी ऑप्थोल्मोलॉजी, आई बैंक के अलावा कई अन्य सुविधाएं भी मरीजों को मिलेंगी। नेत्र संस्थान में 75 बेड का अस्पताल, मॉड्यूलर ओटी, सेमी मॉड्यूलर ओटी, आई बैंक, पढ़ाई और शोध की व्यवस्था, 150-200 छात्रों को पढ़ाने के लिए ऑडिटोरियम, कॉन्फ्रेंस की व्यवस्था, मरीजों के लिए पेड वार्ड, सेमी पेड वार्ड और जेनरल वार्ड की सुविधा रहेगी।

चार साल से कार्य बंद

क्षेत्रीय संस्थान का निर्माण कार्य बीते चार साल से बंद है। मेनटेनेंस के अभाव में बिल्डिंग भी अब जर्जर होने लगी है। हैंडओवर से पहले ही बिल्डिंग कबाड़ होने लगी है। बिल्डिंग में एयर कंडिशनिंग, ऑक्सीजन/गैस पाइपलाइन, बेड, मॉड्यूलर ऑपरेशन थियेटर, इक्विपमेंट्स लगाए गए हैं। दरअसल, भवन को पूरा करने में रिम्स के पूर्व डायरेक्टर डॉ कामेश्वर प्रसाद के कार्यकाल में नए सिरे से डीपीआर बनवाई गई थी। भवन निर्माण विभाग की ओर से 45 करोड़ रुपए की डीपीआर तैयार की गई थी। टेंडर प्रक्रिया शुरू करने के लिए फाइल विभाग को भेजा गया। लेकिन अबतक फाइल दबाकर कर रखा गई है।