रांची (ब्यूरो): इसमें 1947 के विभाजन के बाद भारत ने क्या खोया इस विषय पर लेकर चर्चा की गई। कार्यक्रम के अध्यक्षीय भाषण में सीयूजे के वीसी क्षिति भूषण दास ने कहा कि आज के युवाओं को भारत के आजादी के इतिहास को नजदीक से देखना, सुनना चाहिए, ताकि जो गलतियां उस दौरान हुई थी उसकी पुनरावृति भविष्य में नहीं हो। ये युवा ही कल के भारत हैं। कहा कि भारत का बंटवारा सिर्फ मुल्क का बंटवारा नहीं था उस वक्त हिंदुस्तान के लोगों ने किस तरह की त्रासदी झेली उसे सभी को जानना चाहिए। अपने घर को छोड़ कर जाना महज एक फैसले के बाद कितना कठिन होता है ये इतिहास के पन्नों में दर्ज है, जिसे पढऩे की जरूरत है।
आज तक झेल रहा दंश
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता सीयूजे के असिस्टेंट प्रोफेसर सुधांशु झा ने कहा कि आजादी के इतिहास का अध्ययन अतित से टकराने और सीखने के लिए किया जाता है। आजादी के बाद जिस तरह से हिन्दुस्तान को बांटा गया और जिससे बाद लाखों ने अपनी जान गंवाई वो एक सबक के तौर पर है कि जल्दबाजी में कोई फैसला किसी मुल्क के लिए बेहतर नहीं हो सकता है। उसके पीछे चाहे कारण जो भी रहा हो, लेकिन उसका दंश भारत आज भी झेल रहा है वर्ना देश आज विकसित देशों की कतार में खड़ा होता। 1991 तक पाकिस्तान की चर्चा से बाहर भारत नहीं निकल पाया था। कार्यक्रम को सीयूजे के अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग के हेड डॉ आलोक कुमार, प्रो देवव्रत सिंह, डॉ विभूति विश्वास व डा सुभाष बैठा ने भी संबोधित किया। मौके पर सीयूजे के शिक्षक, छात्र व कर्मचारी मौजूद थे।