रांची(ब्यूरो)। राजधानी रांची में बिजली व्यवस्था की लचर स्थिति से हर कोई वाकिफ है। तमाम प्रयास और दावों के बावजूद आजतक बिजली की नियमित आपूर्ति बहाल नहीं हो सकी। हल्का आंधी-पानी में भी घंटों बिजली कटौती का सिलसिला जारी है। लेकिन बिजली विभाग में सिर्फ पावर सप्लाई की ही समस्या नहीं, बल्कि कर्मचारियों की भी भारी कमी है। कुल स्ट्रेंथ का महज 30 परसेंट कर्मचारियों के साथ ही विभाग काम कर रहा है। अन्य सभी कामों के लिए यह डिपार्टमेंट पूरी तरह आउटसोर्सिंग पर निर्भर है। यही वजह है कि नॉर्मल फॉल्ट होने के बाद भी आम लोगों को घंटों बिजली के लिए इंतजार करना पड़ रहा है।

अंडरग्राउंड केबलिंग का काम

सिटी में अंडरग्राउंड केबलिंग का काम जारी है। करीब 500 करोड़ की लागत से बिजली के तारों को भूमिगत करने का काम चल रहा है। लेकिन समस्या यह है कि अंडरग्राउंड केबल के फॉल्ट को दूर करने के लिए जेबीवीएनएल के पास अपना टेक्नीशियन तक नहीं है। कर्मचारियों के साथ-साथ विभाग में संसाधन की भी भारी कमी है। लोकल फॉल्ट आने पर उपकरण नहीं होने की वजह गड़बड़ी पकडऩा मुश्किल हो जाता है। तकनीशियन और आधुनिक मशीनें नहीं होने का परिणाम है कि केबल में गड़बडी होने, केबल कटने, जलने या पंक्चर होने के बाद बिजली आपूर्ति शुरू करने में अभियंताओं को आउटसोर्स कर्मियों के भरोसे रहना पड़ रहा है। गड़बड़ी ठीक करने में काफी समय लग जाता है। नतीजन घंटों बिजली गुल रहती है।

सेंट्रल में ज्यादा कंप्लेन

सेंट्रल डिवीजन, पुंदाग-कटहल मोड़, पहाड़ी-मधुकम और कोकर फीडर में पिछले तीन महीने में केबल फॉल्ट के कई मामले दर्ज हुए हैं। हाल ही में नामकुम के महिलौंग इलाके में राज्य वन प्रशिक्षण संस्थान में हाई वोल्टेज के कारण लाइन ब्रेकडाउन हो गई। अभियंताओं ने काफी देर तक मशक्कत की, लेकिन तकनीशियन नहीं होने से लाइन ठीक नहीं की जा सकी। राजधानी में 470 किमी बिजली का अंडरग्राउंड एरियल बंच केबल (कवर्ड तारों) का जाल बिछा है। वहीं, नई योजना में तकरीबन 1000 किमी तक 11 हजार वोल्ट के तारों को भी भूमिगत करने का काम चल रहा है। आने वाले समय में तकनीशियनों के नहीं होने का खामियाजा आम लोगों को और अधिक भुगतना पड़ सकता है।

मशीनों का अभाव

बिजली विभाग के मेनटेनेंस का काम देख रहे कर्मचारियों ने बताया कि अंडरग्राउंड केबल के साथ कई समस्याएं हैं। भूमिगत केबल में फॉल्ट आने पर इसकी खराबी का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। विभाग के पास स्कैनर भी नहीं है जो गड़बड़ी का पता लगा सके। कर्मचारियों ने बताया कि बिना स्कैनर मशीन के गड़बड़ी के स्रोत का पता लगाना मुश्किल है। डिस्प्ले व साउंड वेबवाली आधुनिक मशीन से फाल्ट पकड़ा जाता है और इसे ठीक भी जल्दी किया जा सकता है। खराबी का पता लगाने के लिए केवल उस क्षेत्र को खोदा जाता है और पूरे इलाके को शटडाउन लेने की भी जरूरत नहीं पड़ती।

प्राइवेट टेक्नीशियन के भरोसे फॉल्ट

वर्तमान स्थिति यह है कि केबल में गड़बड़ी आने पर उसे ठीक करने के लिए पॉलीकैब, मेसर्स केइआइ या अन्य एजेंसी के टेक्नीशियन को बुलाना पड़ता है। ऐसे में आपूर्ति बहाल होने में सामान्य से कहीं ज्यादा समय लग रहा है। इतना ही नहीं, कई बार रात के वक्त बिजली ठीक होने में घंटों लग जाता है। विभाग के कर्मियों ने बताया कि विभाग के पास पहले ट्रेंड तकनीकी कर्मचारी थे। लेकिन कुछ लोग रिटायर हो गए। 2016 के बाद यह विभाग पूरी तरह आउटसोर्सिंग पर ही डिपेंड हो गया है। नई व्यवस्था के तहत डेली वेज वाले कर्मचारियों को हटाकर इसे आउटसोर्स कर दिया गया।

विभाग में कर्मचारियों की कमी तो है। लेकिन आउटसोर्स के लिए भी फील्ड की संरचना के अनुसार ही अप्वाइंट किया गया है। कई लोग रिटायर हो चुके हैं। इससे पद खाली होते चले गए। यही कारण है कि आउटसोर्स पर ही डिपेंड रहना पड़ रहा है।

-प्रभात कुमार, जीएम, जेबीवीएनएल, रांची