रांची: झारखंड में स्टार्टअप का दी एंड हो गया है। 2016 में नई स्टार्टअप पॉलिसी आने के बाद जिस जोर-शोर से सरकार ने इसे बढ़ावा देने के लिए प्रोग्राम और फंड बनाया, वो सब सिर्फ कागजों तक ही रह गया। कई स्टार्टअप्स को आज भी फंड मिलने का इंतजार है, लेकिन उन्हें भरोसा है कि अब सरकार उन्हें एक कौड़ी भी देने वाली नहीं है। जितनी घोषणाओं के साथ राज्य सरकार ने स्टार्टअप पॉलिसी लागू की, उतनी सफलता पॉलिसी को नहीं मिल पाई। साल 2016 में राज्य में स्टार्टअप पॉलिसी लागू की गई थी, जिसमें ऐसे उद्यमियों को बढ़ावा देना था जो अपने आइडिया से बेहतर और कुछ नया बिजनेस करने की चाह रखते हैं।

फ‌र्स्ट फेज की भी नहीं मिली राशि

अब तक सरकार की ओर से मात्र 49 उद्यमियों का चयन किया जा सका है। यह चयन भी साल 2018 में किया गया, जबकि पॉलिसी राज्य में नवंबर 2016 से ही लागू है। इतना ही नहीं, राज्य में जो उद्यमी स्टार्टअप के लिए सेलेक्ट हुए हैं, उन्हें सरकार की ओर से फ‌र्स्ट फेज की राशि तक नहीं दी गई है। इस कारण इन उद्यमियों में काफी निराशा है।

स्टाइपेंड पैसे भी नहीं मिले

चयनित उद्यमियों ने जानकारी दी कि पॉलिसी के तहत आइडिया में विकास, शोध और वैधता के लिए राज्य सरकार चयन होने के पहले 12 माह स्टाइपेंड के नाम पर 8,500 रुपए देने वाली थी। यह राशि प्रत्येक माह उद्यमी या उद्यमी समूहों को देनी थी। वहीं दिव्यांग या महिला उद्यमियों को स्टाइपेंड राशि में अतिरिक्त 2000 रुपए देने का भी प्रावधान था। उद्यमियों ने जानकारी दी कि राज्य के किसी भी चयनित उद्यमी को यह राशि भी नहीं मिली है।

पहले चरण का भी नहीं मिला पैसा

स्टाइपेंड के बाद उद्यमियों को उनके विकसित आइडिया के आधार पर बिजेनस स्थापित करने के लिए सरकार 10 लाख देनेवाली थी। लेकिन राज्य में पहला चरण ही पूरा नहीं हुआ। ऐसे में दूसरे चरण की राशि से भी उद्यमी वंचित रह गए हैं। जबकि पॉलिसी के आधार पर चयन होने के 12 माह बाद उद्यमियों को इस राशि का भुगतान किया जाना चाहिए।

अब तक एसईबी की सिर्फ दो बैठक

स्टार्टअप आवेदन के बाद स्टेट इवैल्यूशन बोर्ड उद्यमियों का चयन करता है। एसईबी बैठक करके उद्यमियों के आइडिया के आधार पर इनका चयन करता है। लेकिन पॉलिसी लागू होने के दो साल बाद 2018 में बोर्ड की बैठक हुई। जबकि पॉलिसी के नियमों के अनुसार, प्रत्येक चार माह में एसईबी की बैठक की जानी है।

इनक्यूबेशन सेंटर भी खत्म

राज्य में 2016 में स्टार्टअप पॉलिसी शुरू की गई। इसके तहत अटल बिहारी इनोवेशन लैब स्थापित किया गया। पिछले एक साल से स्टार्टअप पॉलिसी के तहत राज्य में काम ठप है। इसकी प्रमुख वजह आईआईएम अहमदाबाद से एग्रीमेंट खत्म होना है। एग्रीमेंट खत्म हुए एक साल हो गया, जिससे राज्य के उद्यमियों को स्टार्ट अप का लाभ उठाने में परेशानी हो रही है। आइआइएम अहमदाबाद राज्य में स्टार्टअप पॉलिसी की मेंटर था, जो आईटी विभाग के अंतर्गत स्टार्ट अप पर काम कर रही थी। पिछले साल से लेकर अब तक न ही नए उद्यमी इस योजना के तहत रजिस्टर्ड हुए और न ही किसी को फंड का लाभ मिला। बता दें कि राज्य अटल बिहारी इनोवेशन लैब में स्टार्ट अप पॉलिसी के तहत उद्यमियों के साथ मिलकर आईआईएम अहमदाबाद की टीम काम करती थी।

2019 में ही खत्म हुआ एग्रीमेंट

आईआईएम अहमदाबाद से तीन साल के लिए एग्रीमेंट किया गया था, जो साल 2016 से साल 2019 तक के लिए था। ऐसे में 26 दिसंबर 2019 को आईआईएम अहमदाबाद का एग्रीमेंट खत्म हो गया। तब से पॉलिसी पर काम ही नहीं किया गया। हालांकि सिंतबर 2019 में ही पूर्व सरकार की ओर से 17 उद्यमियों को सीड फंड उपलब्ध कराया गया। जो पांच से लेकर 12 लाख रुपए तक का रहा। वहीं, कुछ उद्यमियों को स्टाइपेंड के रूप में आठ से दस हजार रुपये भी दिये गये। लेकिन पिछले एक साल से इस पर काम बिल्कुल ठप है। इससे उद्यमियों को कोई लाभ नहीं मिल रहा है। बता दें कि 107 उद्यमी रजिस्टर्ड हैं और पांच सौ से अधिक आवेदन लैब के पास लंबित है।

आईआईएम अहमदाबाद को दोबारा मिल सकता है मौका

विभाग के मुताबिक, संभावना है कि आईआईएम अहमदाबाद को फिर से स्टार्ट अप के लिए मेंटर नियुक्त किया जाए। वहीं कुछ अन्य संस्थानों से भी इस पर बात चल रही है। अधिकारियों की मानें तो अहमदाबाद की टीम ने राज्य में काम किया है। साथ ही टीम को इसका अनुभव भी है। स्टार्टअप पॉलिसी की शुरुआत युवाओं के लिए की गई, जो अपना उद्यम शुरू करना चाहते हैं। आईआईएम अहमदाबाद युवा उद्यमियों के आइडिया इनोवेशन और फंडिंग पर काम कर रहा था।