रांची(ब्यूरो)। डेवलपमेंट जरूरी है पर सस्टेनेबल डेवलपमेंट। हमें विकास के ऐसे मॉडल खड़े करने हैं, जो वन आधारित अर्थव्यवस्था को अवरुद्ध न करे। ये बातें डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी के वीसी व अर्थशास्त्री प्रो तपन कुमार शांडिल्य ने कहीं। वह पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा द्वारा लिखित कहानी 'कथन सालवन के अंतिम साल कीÓ के नाटक मंचन उद्घाटन सत्र को बतौर चीफ गेस्ट संबोधित कर रहे थे। उन्होंने विश्विद्यालय में नाट्यकला के विकास के लिए ड्रामेटिक सोसायटी को और मजबूत करने की प्रतिबद्धता भी जताई। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी के सभागार में मंचन किए गए इस नाटक का नाट्य रूपांतरण रंगदर्पण रांची ने किया था, उसे डिपार्टमेंट ऑफ इंग्लिश लैंग्वेज एंड लिटरेचर की शिक्षक टीम ने निर्देशित किया है। दरअसल, यह साल के जंगल के उस आखिरी साल के पेड़ की दास्तान है जो 21वीं सदी की कंक्रीट फैक्ट्रियों वाले मानव विकास की भेंट चढ़ गया। कलाकारों ने अपनी अभिनय क्षमता का प्रदर्शन करते हुए मंच पर जीवंत प्रस्तुती देकर खूब वाहवाही लूटी।

नाटक का संदेश गहरा

नाटक छोटा है पर सन्देश गहरे हैं। और इसके कई तल हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे तेजी से खत्म हो रहे जंगलों के पीछे कई चेहरे हैं- नेता, अफसर, उद्योगपति और उससे भी ज्यादा जंगलों के बीच रहने वाले हम ही लोगों के बीच से कुछ बिचौलिये, जो बाइक या कार जैसी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए अपने ईमान को बेचकर जंगल की अवैध कटाई में साथ दे रहे हैं। इन सबके बीच पेड़ की अपनी वेदना है, जिसे कलाकारों ने सुनाने का प्रयास किया है और जीवंत किया है। जंगल खत्म हो रहे। साथ में खत्म हो रहे, इन जंगलों में रहने वाले मासूम पशु पक्षी। नाटक उनके प्रति भी संजीदा है। पूर्ण रूप से नाटक झारखंड के प्रकृति प्रेमी समाज की ओर से असन्तुलित विकास और मैटेरियलिस्टिक अप्रोच के खिलाफ एक छोटा-सा मेनिफेस्टो बनकर उभरता है।

टूरिज्म इंडस्ट्री बढ़े

झारखंड के झाड़-जगंल, झरने ही इसके यूएसपी हैं। हमें चाहिए कि नार्थ ईस्ट की तर्ज पर झारखंड में टूरिज्म इंडस्ट्रीज बढ़े, जिससे इनके जंगलों, पहाड़ और झरनों को संरक्षित करने में जहां एक ओर बल मिलेगा, दूसरी ओर टूरिज्म से वर्ष भर रोजगार भी मिलेगा। हाल में बाजार का स्वरूप बदला है।

अब ई कॉमर्स कल्चर

मॉल कल्चर तेजी से आया। पर अब ई कॉमर्स कल्चर आया है। ये एक बेहतरीन मॉडल है। वनोपज से अपनी आजीविका चलाने वाले यहां के पूर्वजों की वनोत्पाद और हस्तकला से निर्मित प्रोडक्ट्स की ई बाजार में मार्केटिंग हो तो स्थिति भी सुधरेगी और विकास के ट्रेडिशनल फॉरमेट से अलग हटकर भी काम हो सकेगा।

जोनल लेवल पर लहराएंगे परचम

मौके पर यूनिवर्सिटी की पीआरओ डॉ राजेश सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय को इस मंच से कई बेहतरीन कलाकार मिले हैं। जो पूरी उम्मीद है कि नेशनल जोनल लेवल पर होने वाले थिएयर प्रतियोगिताओं में अपना परचम लहरायेंगे। इस अवसर पर बतौर अतिथि श्रेया तिवारी डायरेक्टर परिवर्तन, डॉ विनय भरत और सौरभ मुखर्जी सह- निर्देशित इस नाटक के सभी कलाकार डिपार्टमेंट ऑफ इंग्लिश लैंग्वेज एंड लिटरेचर के थे, जिनमें प्रमुख थे ई एल एल विभाग के शिक्षक कर्मा कुमार (पुजारी), छात्र आयुषी भद्रा (साल पेड़), अनामिका सोरेन (ग्रामीण), अंजलि राधारानी (नेता की बेटी), कोमल कुमारी (अफसर 2), सुमंत कुमार (नेता), मन्त्रेश कुमार (प्रमुख अफसर), आकाश प्रमोद शर्मा (ग्रामीण युवक ) ने अपने पात्रों को बखूबी जीवंत किया।

पर्दे के पीछे अहम भूमिका

पर्दे के पीछे ईएलएल विभाग की शिक्षिका श्वेता गौरव और शुभांगी रोहतगी ने रूप सज्जा और स्टेज सेट-अप में अपनी भूमिका निभाई। साथ ही नेपथ्य में रैंसम सिंह (संगीत), प्राची सिंह, ओंकार मेहता, मोहन कुमार महतो, निशांत रंजन, मानसी विश्वास, पीयूष कुमार, सुमित कुमार, अनीष, शुभम, अमन कुमार साहू, अमन ठाकुर, ऋषिता कुमारी, प्रिया कुमारी, अर्चना कुमारी, अभिलाषा कश्यप, स्टाफ जितेंद्र ने अपनी अहम भूमिका निभाई। मौके पर मुख्य रूप से शिक्षक अब्दुल बसी (उर्दू), मो रियाज़ हसन(केमिस्ट्री), पारितोष माजी (बीएड), मनीषा शाहदेव (राजनीति विज्ञान), रेखा चौधरी (सोशियोलॉजी), श्रीमित्रा (संस्कृत ), नैनी मिश्रा (जर्नलिज्म), गुडिय़ा कुमारी (दर्शन विभाग), दशमी ओरिया (मुंडारी), शुभ्रा (इतिहास) मौजूद थे।