रांची(ब्यूरो)। राष्ट्र गान के रचियता महाकवि रवींद्रनाथ टैगोर के परिवार से जुड़ी धरोहर ढहने के कगार पर पहुंच चुकी है। रांची के मोरहाबादी स्थिति टैगोर हिल की चोटी पर बने ब्रह्म मंदिर की स्थिति जर्जर हो चुकी है और यह कभी भी गिर सकती है। मंदिर की छत बिल्कुल खस्ताहाल है और नीचे जो कीमती पत्थर लगाए गए थे, वे भी उखड़ रहे हैैं। टैगोर हिल रांची की शान है, जिसमें गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के बड़ी भाई ज्योतिरींद्रनाथ टैगोर की यादगार विरासत आज भी मौजूद है। ठीक से देखभाल नहीं होने के कारण आज ब्रह्म मंदिर और यहीं पर बने शांति धाम की स्थिति बेहद हाल हो चुकी है।

यहीं हुआ था गीता रहस्य का अनुवाद

1884 में अपनी पत्नी द्वारा आत्महत्या करने के बाद ज्योतिरिंद्रनाथ टैगोर वैरागी हो गए थे। वे रांची आए और 1908 में पहाड़ी को स्थानीय जमींदार हरिहर सिंह से खरीद लिया था। इसी पहाड़ी को बाद में टैगोर हिल का नाम दिया गया। पहाड़ी के शीर्ष पर मुख्य मंडप यानि ब्रह्म स्थल है। पहाड़ी की चोटी से रांची शहर का अद्भुत नजारा दिखता है। टैगोर हिल पर ब्रह्म मंदिर व शांति धाम रवींद्रनाथ टैगोर के अग्रज ज्योतिरींद्रनाथ टैगोर ने बनवाया था। यहीं पर उन्होंने 1924 में बाल गंगाधर तिलक द्वारा मराठी में लिखित गीता रहस्य नामक पुस्तक का बांग्ला में अनुवाद भी किया था। चार मार्च 1925 को उन्होंने यहीं पर अंतिम सांस ली थी।

काफी मशक्कत के बाद हुआ तैयार

टैगोर हिल पर ब्रह्म मंदिर के निर्माण को लेकर सौ साल पहले काफी मशक्कत की गई थी। इसमें बनारस के चुनार से लाल पत्थर मंगवाकर लगाए गए थे। कारीगर भी बनारस से ही आए थे। जानकार बताते हैैं कि बनारस से मंगवाए गए पत्थरों को पहाड़ी के ऊपर चढ़ाने में ही 4 महीने का वक्त लग गया था। तब पानी की सप्लाई पाइपलाइन से नहीं होती थी, इसलिए काफी दूर स्थित एक झरने से पानी लाया जाता था। इसे बने करीब 112 साल हो चुके हैैं। समय-समय पर उसे संरक्षित करने के भी प्रयास चलते रहे। कई बार पर्यटन विभाग ने इसके रिनोवेशन पर पैसे खर्च किए पर अब स्थिति काफी खराब हो चुकी है।

लाइट तक उखाड़ ले गए चोर

टैगोर हिल को पर्यटन का आकर्षक केंद्र बनाने के लिए यहां पार्क लाइट लगाए गए थे। धीरे-धीरे अधिकतर लाइट्स चोर चुरा ले गए। प्रवेश द्वार के सामने ही दीवार पर टाइल्स लगाकर खूबसूरत चित्रकारी की गई थी, जिससे टाइल्स उखड़ गए हैैं और अब यह काफी खराब हो चुकी है। देखभाल ठीक से नहीं होने के कारण सीढिय़ों से भी पत्थर निकल रहे हैैं और जगह-जगह गंदगी देखने को मिलती है।

क्या कहते हैैं इतिहासकार

झारखंड के कई धरोहर रखरखाव के अभाव में बर्बाद हो रहे हैैं। धरोहर ही खत्म हो जाएंगे तो बचेगा क्या? जरूरी है कि वैज्ञानिक तरीके से रखरखाव हो। आम लोगों को भी जागरूक करना होगा कि वे अगर किसी धरोहर में घूमने जाते हैैं, तो उसे बर्बाद न करें। दीवारों पर लोग लिखने लगते हैैं, जो बेहद गंभीर है।

डॉ नीतीश प्रियदर्शी, पर्यावरण वैज्ञानिक एवं इतिहासकार

रांची के लिए टैगोर हिल एक धरोहर है। यह महज एक निर्जीव पहाड़ी नहीं, बल्कि महाकवि रवींद्रनाथ टैगोर के परिवार से जुड़ी विरासत है। इसे संरक्षित करने की जरूरत है और पर्यटन विभाग को तो इसे इस तरह विकसित करना चाहिए था, ताकि दूर-दूर से लोग यहां आकर इतिहास से खुद को जोड़ सकें।

डॉ मो जाकिर, शिक्षाविद तथा इतिहासकार