रांची(ब्यूरो)। राज्य के सबसे बड़े अस्पताल राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज(रिम्स) में करोड़ों रुपए की मशीनें संस्थान ने खरीद ली हैं, लेकिन इसका लाभ मरीजों को नहीं मिल पा रहा है। इन महंगी मशीनों को चलाने वाले एक्सपर्ट टेक्नीशियंस ही रिम्स के पास मौजूद नहीं हैं। नतीजन, सभी मशीनें खरीदकर रखी ह़ुई हैं। अगर इन मशीनों का उपयोग होता तो हर दिन इलाज करने वाले लोगों को बाहर टेस्ट कराने की नौबत नहीं आती।

जरूरी 200 से ज्यादा की

रिम्स के पास फि लहाल स्थायी टेक्नीशियन के नाम पर करीब 40 टेक्नीशियंस हैं, जबकि 1800 बेड हॉस्पिटल की क्षमता के अनुसार 200 से ज्यादा टेक्नीशियन की जरूरत है। स्थायी के अलावा करीब इतने ही आउटसोर्स पर भी लैब टेक्निशियंस रखे गए हैं। माइक्रोबायोलॉजी, पैथोलॉजी, लैब मेडिसिन, बायोकेमिस्ट्री आदि विभागों में यदि 10 टेक्नीशियंस की जरूरत है, तो पदस्थापित सिर्फ एक है।

हर बार निकलता है विज्ञापन

रिम्स प्रबंधन द्वारा पिछले कई सालों से टेक्निशियंस की नियुक्ति के लिए सिर्फ विज्ञापन निकाला जाता है, लेकिन नियुक्ति की प्रक्रिया कभी भी पूरी नहीं की जाती है। कई बार तो ऐसा भी हुआ कि विज्ञापन निकला, लोगों ने इंटरव्यू भी दिया, लेकिन नियुक्ति ही नहीं हो पाई। रिम्स एक ऑटोनोमस बॉडी है जिसके अनुसार नियुक्ति से लेकर मशीन की खरीदारी करने तक का सारा अधिकार उसके पास है। उसे डिसीजन लेने के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है, बावजूद रिम्स में हालत है कि मैन पावर की कमी हर डिपार्टमेंट में है, इसका असर यहां इलाज कराने आने वाले लोगों को भुगतना पड़ रहा है।

एक से बढ़कर एक मशीनें

रिम्स प्रबंधन को जब हाईकोर्ट की फ टकार लगी तो एक से बढ़ कर एक हाई टेक्नोलॉजी की मशीनें खरीदी गईं, लेकिन खरीदी गई ज्यादातर मशीनें अस्पताल की शोभा बढ़ा रही हैं। राज्य के सबसे बड़े अस्पताल में न उसे संचालित करने वाले एक्सपर्ट टेक्नीशियन हैं और ना ही पर्याप्त कर्मचारी हैं। हास्पिटल भारी मैनपावर की किल्लत से जूझ रहा है।

जांच भी कम हो रही

रिम्स प्रबंधन का कहना है कि ट्रॉमा सेंटर में लगे पैथोलॉजिकल सेंट्रल लैब में 10 हजार से ज्यादा ब्लड, यूरिन आदि समस्याओं की जांच की जा सके। रिम्स के नए सेंट्रल लैब में 6 से ज्यादा मशीनें लगाई गई हैं, लेकिन इतनी मशीनों के संचालन का जिम्मा एक शिफ्ट में दो टेक्नीशियंस के भरोसे है। 24 घंटे में प्रति शिफ्ट दो-दो टेक्नीशियंस मिलकर 1500 सैंपल भी नहीं जांच हो पाते हैं। वर्तमान में जांच 500 से 800 के बीच में ही सीमित है।

सेंट्रल लैब में 45 टेक्नीशियंस जरूरी

सीटी स्कैन मशीन का संचालन रेडियोलॉजी विभाग की देखरेख में होना है, जबकि रिम्स को इसके संचालन के लिए भी तीन से पांच ट्रेंड टेक्निशियंस की जरूरत पड़ेगी। सेंट्रल लैब में प्रति शिफ्ट कम से कम 15 टेक्नीशियंस की जरूरत है। 24 घंटे संचालन के लिए स्थायी तौर पर यहां 45 टेक्नीशियंस को नियुक्त करना होगा।

समय भी बहुत लगता है

एक्सपर्ट टेक्निशियंस नहीं होने के कारण समय भी बहुत लगता है। 2 मिनट में होने वाले दांत के एक्सरे में 30 मिनट लग रहा है। हालात ये हैं कि पारा मेडिकल स्टूडेंट्स को जो काम ट्रेनिंग में सिखाया जाता है वे यहां प्रोफेशनली कर रहे हैं। इसका असर एक्सरे कराने वालों पर पड़ता है, जिस एक्सरे में 2 से 3 मिनट का समय लगता है, यहां ये प्रति मरीज 30 मिनट लगाते हैं।