RANCHI:झारखंड में अफीम का टेरर कनेक्शन और भी मजबूत होता जा रहा है। दूर-दराज के इलाकों और नक्सलियों की मांद कहे जाने वाले बीहड़ो में अफीम की खेती लहलहा रही है। अफीम जैसे नशीले पदार्थ की खेती से नक्सली संगठनों को फंड मिल रहा है। अफीम के खेतों में मेहनत और उसकी सुरक्षा के लिए कई किसानों को मोटी रकम भी दी जाती है। पुलिस अफीम की खेती को रोकने की कोशिश में लगी है, लेकिन सारी कोशिशें नाकाम साबित हो रही हैं। ऐसे में पुलिस को अब इस बात का डर सता रहा है कि कहीं यह जहर नई मुसीबतें न पैदा कर दे। यह नक्सलियों के लिए सबसे बड़ा आर्थिक स्त्रोत बनता जा रहा है।

17 जिलों के 37 थाने राडार पर

राज्य के 17 जिलों के 37 थाना क्षेत्रों में अफीम की खेती होती है। राजधानी के नामकुम इलाके के साथ साथ उग्रवादियों की शरणस्थली रहा खूंटी अफीम की अत्यधिक खेती के कारण 'अफगान' बनने की राह पर है। अमर स्वतंत्रता सेनानी भगवान बिरसा मुंडा की धरती इन दिनों अफीम और गांजे की खेती को लेकर फिर सुर्खियों में है। उग्रवाद प्रभावित व आदिवासी बहुल खूंटी जिले का अफीम की खेती से पुराना रिश्ता रहा है। खूंटी के ग्रामीण इलाकों में पिछले कई सालों से अफीम की अवैध खेती हो रही है।

रांची से सटे इलाके सेंसिटिव

नामकुम, तुपदाना के इलाकों और इनसे सटे खूंटी के इलाके बेहद सेंसिटिव माने जाते हैं। जिला गठन के बाद ही अफीम की अवैध खेती का बीज पड़ चुका था। धीरे-धीरे यह विकराल रूप लेता गया और स्थिति यह है कि अब जिले के सभी छह प्रखंडों के हजारों एकड़ जमीन में अफीम और गांजा की खेती की जा रही है।

इन इलाकों में गहरी पैठ

कुछ साल पहले तक जिले में सिर्फ अड़की प्रखंड में ही अफीम की खेती होती थी, पर अब इसका दायरा सभी छह प्रखंडों तक बढ़ चुका है। तेजी से फैल रही गांजे की खेती ने एक ओर जहां पुलिस प्रशासन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं, वहीं आम लोग इस बात को लेकर चिंतित हैं कि मादक पदार्थो की खेती और तस्करी इसी प्रकार जारी रही, तो न जाने आने वाली पीढ़ी का क्या होगा।

चतरा से फैला खेल

जानकारों की मानें, तो अब भी हजारों एकड़ खेत में अफीम की फसल अवैध रूप से उगायी जा रही है। पहले झारखंड में सिर्फ चतरा जिले में अफीम की खेती होती थी, लेकिन तस्करों की नजर खूंटी जिले के सीधे सादे आदिवासियों पर पड़ी। उन्होंने किसानों को समझाया कि धान की फसल के बाद खेत खाली रहती है। यदि वहां अफीम की खेती की जाए, तो काफी लाभ होगा। अफीम से मिलने वाली आमदनी को देखकर गांव के गांव इसकी खेती करने लगे।

2017 से आपरेशन

पहली बार 2017 में अफीम की खेती के खिलाफ पुलिस ने जोरदार कार्रवाई शुरू की। उस वर्ष पुलिस ने लगभग डेढ़ हजार एकड़ खेत में लगी अफीम की खेती को नष्ट किया था। 2018 में 1144 एकड़ क्षेत्रफल में लगी फसल नष्ट की गयी थी। पिछले वर्ष भी 710.85 एकड़ की अफीम फसल को पुलिस ने खत्म कर दिया था। 2020 में भी पुलिस लगभग डेढ़ सौ एकड़ में लगी फसल नष्ट कर चुकी है।

अब तक 148 गिरफ्तार

पुलिस ने अफीम की खेती और तस्करी के आरोप में अब तक 148 लोगों को जेल की सलाखों के पीछे भेजा है। 2017 में 14 लोगों की गिरफ्तारी हुई। 2018 में 40 लोग पकड़े गये। इसी प्रकार 2019 में 83 लोग अफीम की खेती और कारोबार के आरोप में गिरफ्तार किये गये। 2020 में 13 लोग पकड़े जा चुके हैं। पुलिस ने अब तक 239 किलो अफीम और 50 किलो डोडा भी बरामद किया है। अफीम तस्करों के पास से अब तक 37 लाख 80 हजार 850 रुपये नकद बरामद किये गये हैं।

फैक्ट फाइल

राज्य के 17 जिले जहां अफीम की होती है खेती

रांची : नामकुम थाना क्षेत्र

खूंटी : खूंटी व मुरहू थाना क्षेत्र

सरायकेला खरसांवा : चौका थाना क्षेत्र

गुमला : कामडारा थाना क्षेत्र

लातेहार : बालूमाथ, हेरहंज व चंदवा थाना क्षेत्र

चतरा : लावालौंग, सदर, प्रतापपुर, राजपुर, कुंदा, विशिष्ठनगर

पलामू : पांकी, तरहसी, मनातू

गढ़वा : खरौंदी

हजारीबाग : तातुहरिया, चौपारण

गिरिडीह : पीरटांड, गनवा, डुमरी, लोकनयानपुर, तिसरी

देवघर : पालाजोरी

दुमका : रामगढ़, शिकारीपाड़ा, रनेश्वर, मसलिया

गोड्डा : माहेरवान

पाकुड़ : हिरणपुर

जामताड़ा : नाला, कुंडीहाट

साहेबगंज : बरहेट, तालीहारी