रांची: राजधानी रांची के लोग कोरोना संक्रमण से अभी उबरे नहीं कि वायरल फीवर ने अटैक कर दिया है। वायरल फीवर ने बच्चे, युवा, बुजुर्ग सभी को परेशान करना शुरू कर दिया है। हॉस्पिटल में मरीजों की लाइन लग रही है। कई जगह मरीज को भर्ती करने के लिए जगह तक नहीं है। फर्श पर ही उनका इलाज हो रहा है। ब<स्हृद्द-क्तञ्जस्>चों को भारी मुसीबतें हो रही हैं। सदर हॉस्पिटल, रिम्स, रानी चिल्ड्रेन हॉस्पिटल में ब<स्हृद्द-क्तञ्जस्>चों के इलाज के लिए बेड नहीं मिल रहे हैं। हर मरीज में सर्दी, खांसी और बुखार की ही शिकायत देखने को मिल रही है। लोगों को कोरोना संक्रमण का डर बना रहता है। हालांकि, कोविड टेस्ट में इन मरीजों की रिपोर्ट नेगेटिव आ रही है। अस्पतालों में वायरल फीवर से ग्रसित मरीजों की संख्या हर दिन बढ़ती जा रही है। लगातार बढ़ते मामलों के कारण स्वास्थ्य सेवाएं चरमराने लगी हैं। रिम्स और सदर अस्पताल की तस्वीरें हकीकत बयां कर रही हैं। यहां रोज सैकड़ों की संख्या में वायरल बुखार से पीडि़त मरीज भर्ती हो रहे हैं। ओपीडी के बाहर मरीजों की लाइन लग रही है। कुछ मरीजों का इलाज हो रहा है तो कुछ को बिना इलाज के ही लौटना पड़ रहा है।

रिम्स में दोगुना पहुंच रहे मरीज

रिम्स के ओपीडी में आने वाले मरीजों की संख्या भी बढ़ी है। पहले जहां 1000 से 1200 मरीज आते थे वहीं इन दिनों 1800 मरीज हर रोज इलाज कराने आ रहे हैं। मेडिसीन के बाहर मरीजों की लाइन लग रही है। सुबह आठ बजे से मरीज हॉस्पिटल पहुंचने लगते हैं, जिन मरीजों का इलाज नहीं हो पाता वे रिम्स कैंपस में ही बैठकर इलाज करवाने का इंतजार करते रहते हैं। रिम्स मेडिसीन विभाग के डॉ। बी कुमार ने बताया कि इन दिनों सबसे <स्हृद्द-क्तञ्जस्>यादा मरीज वायरल फीवर के अस्पताल पहुंच रहे हैं। इनमें सर्दी-बुखार आम है। अधिकतर मरीजों में मलेरिया व डेंगू के लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं, लेकिन जांच के बाद इस तरह की किसी बीमारी की पुष्टि नहीं होती। उन्होंने बताया कि यह वायरल फीवर मनुष्य के शरीर को पूरी तरह से कमजोर कर देता है। इसके साथ ही पूरे शरीर में जकड़न के साथ तेज दर्द होने लगता है। डॉक्टर ने कहा कि जब भी मरीजों को इस तरह की परेशानी होती है या कोई लक्षण दिखाई पड़ता है, ऐसे में इसे नजरअंदाज किए बिना डॉक्टरों से परामर्श जरूर लेना चाहिए। वहीं, जो दवाइयां डॉक्टर प्रेस्क्राइब करते हैं उसमें भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए।

बढे़ मरीज तो सिस्टम फेल

रिम्स की हालत किसी से छिपी नहीं है। हर रोज मरीज के परिजनों और डॉक्टरों के बीच नोकझोंक की खबरे आती रहती हैं। इलाज के लिए हर दिन मरीज और उनके परिजनों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इधर मरीज की संख्या बढ़ते ही रिम्स का पूरा सिस्टम फेल हो गया है। मरीजों का इलाज सही से हो नहीं पा रहा। हॉस्पिटल में मरीजों के लिए बेड नहीं हैं। फर्श पर ही मरीजों का इलाज किया जा रहा है। इतना ही नहीं, मरीज खुद अपने हाथ में स्लाइन की बोतल लेकर रिम्स के फर्श पर बैठा नजर आ रहा है। न तो कोई डॉक्टर उनकी जांच करने आ रहा है और न स्लाइन की बोतल के लिए स्टैंड या फर्श पर ही लेटने के लिए बेड दिया गया है। कोई चेयर पर बैठ कर इलाज करा रहा है तो कोई जमीन पर ट्रीटमेंट का इंतजार कर रहा है। ब<स्हृद्द-क्तञ्जस्>चों की हालत काफी ज्यादा खराब है। रिम्स और सदर हॉस्पिटल के पेडियाट्रिक्स वार्ड में बेड फुल हो गए हैं। वहीं, इलाज के लिए आ रहे मरीज और उनके परिजनों के साथ बदसलूकी भी की जा रही है। मांडर से आए मरीज के परिजनों के साथ रिम्स के ही सिक्योरिटी गार्ड ने बदतमीजी की। परिजन को अपने मरीज से मिलने नहीं दिया गया। ऊंची आवाज में डांटकर मांडर से आई महिला को भगाने का प्रयास किया गया। रिम्स में ऐसी घटना हर रोज होती है। लेकिन इन सब पर लगाम लगाने एवं गार्ड, डॉक्टर, नर्स आदि पर कंट्रोल के लिए कोई कुछ नहीं करता।

बारिश के पानी में मरीज

रिम्स में इलाज के लिए आए मरीजों को सिर्फ बीमारी ही नहीं बल्कि बारिश से भी लड़ना पड़ रहा है। फर्श में इलाज कराने वाले मरीजों को खासा परेशानी हो रही है। फर्श के दोनों ओर ओपन स्पेस होने के कारण बारिश का पानी रिम्स के फर्श पर जमा हो जाता है। फर्श पर लेटे मरीज इसमें भींगने लगते हैं। मरीजों की हालत ऐसी भी नहीं होती कि वे उठकर कहीं चले जाएं। मजबूरी में मरीज के परिजन फर्श पर तिरपाल, बोरा और दूसरे माध्यम से बारिश से बचने की कोशिश करते हैं। इस ओर भी रिम्स मैनेजमेंट का कोई ध्यान नहीं है। हॉस्पिटल के अधिकारी रिम्स का मुआयना तो करते हैं लेकिन इन परेशानियों को नजरअंदाज कर आगे बढ़ जाते हैं।

घबराए नहीं, रखें ख्याल : डॉ अनिताभ

चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ अनिताभ कुमार ने कहा कि वायरल फीवर का प्रकोप बढ़ा हुआ है। इस मौसम में सेहत का ख्याल रखना बहुत जरूरी है। ब<स्हृद्द-क्तञ्जस्>चों को वायरल फीवर होने पर घबराए नहीं, बल्कि अलर्ट रहें। उनकी सेहत पर ज्यादा ध्यान दें। अमूमन तीन से चार दिनों में यह बीमारी दूर होने लगती है। लेकिन तबतक ध्यान रखना है। डॉक्टर के संपर्क में रहना है। डॉक्टर जो दवा दे, उसे नियमित रूप से खिलाते रहें। इसके अलावा ज्यादा तेल-मसाला न खाएं। पानी गरम करके पीएं।