रांची(ब्यूरो)। सीवरेज के चक्कर में न जाने कितने जलाशयों की भेंट चढ़ा दिया गया। अच्छे-खासे जल स्रोत को बर्बाद कर नाला में बदल दिया गया। लालपुर से कोकर जाने वाले रास्ते में पडऩे वाला डिस्टिलरी तालाब भी इसी तरह के दोहन का एक जीता जागता उदाहरण है, जिसे चंद लोगों ने सिर्फ अपने लालच के लिए बिगाड़ दिया। सीवरेज-ड्रेनेज का काम रांची में करीब 14 साल पहले शुरू हुआ था। लेनिक आज तक यह पूरा नहीं हुआ। कुछ इलाकों में सड़कों की खुदाई कर वहां पाइप तो डाली गई लेकिन उसका भी कोई उपयोग नहीं किया गया। एक बार फिर से सीवरेज के नाम पर सड़क की खुदाई चालू है। जहां-तहां सड़कों को खोदा जा रहा है।

तालाब को सीवर

सीवरेज का निर्माण तो नहीं हुआ लेकिन राजधानी में कभी लबालब रहने वाले तालाब को सीवर के रूप में जरूर बदल दिया गया। डिस्टिलरी तालाब हो, हरमू नदी हो या फिर स्र्वण रेखा नदी। सभी की हालत दयनीय हो चुकी है। हमेशा उफान पर रहने वाली ये नदियां नाले में परिवर्तित हो चुकी हैं। सरकार की गलत नीतियों का खामियाजा आज इस स्थान में रहने वाले लोगों को भुगतना पड़ रहा है। न तो ड्रेनेज बना न ही नदियों का कोई अस्तित्व बचा है।

घरों में नाले का पानी

बरसात में सिटी में रहने वाले लोगों की समस्याएं कई गुणा बढ़ जाती हैं। नाले और डे्रनेज की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण बरसात का पानी लोगों के घरों में भी घुस जाता है। एक दिन पहले हुई झमाझम बारिश ने नगर निगम के सारे दावों की पोल खोल कर दी है। कई लोगों के घरों में नाले का गंदा पानी घुस गया। सड़क पर गंदगी का अंबार लग गया। सीवरेज-ड्रेनेज का निर्माण यदि समय पर हो गया होता तो आज तस्वीर कुछ और होती।

गलत फैसले का परिणाम

गलत फैसले और बिना किसी रोड मैप के काम होने का नतीजा है कि लोगों को बरसात में भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। कुछ मिनट की बारिश में ही शहर में जहां-तहां वाटरलॉगिंग की समस्या बढ़ जाती है। मेन रोड, हरमू रोड जैसे वीआईपी इलाकों में भी जलजमाव की बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है। स्थिति ऐसी होती है कि कभी-कभी नगर निगम को मोटर लगाकर पानी निकालना पड़ता है।

फिर गंदगी से बजबजाएगी सिटी

राजधानी बनने के बाद से ही रांची सीवर प्रोजेक्ट पर वर्क चल रहा है। योजना 2006 में तैयार की गई। लेकिन काम 2015 में शुरू हुआ। इस प्रोजेक्ट के फस्र्ट फेज का काम अब भी चल रहा है। कुछ इलाकों में सीवर लाइन बिछा दी गई है। लेकिन सीवर प्लांट का काम पूरा नहीं होने के कारण सीवर लाइन का कोई फायदा आम लोगों को नहीं मिल रहा है। इस प्रोजेक्ट में अब तक करीब 90 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। लेकिन 50 परसेंट भी काम पूरा नहीं हुआ है। कुछ दिनों बाद ही मानसून शुरू हो जाएगा। बरसात के मौसम में एक बार फिर राजधानी वासियों को गंदगी और कीचड़ के बीच ही रहना होगा। सीवर बनने से फायदा यह होता कि वाटरलॉगिंग की समस्या के साथ-साथ लोगों को बजबजाती नालियां भी नहीं देखनी पड़तीं।

वाटर लेवल पर भी असर

दस साल पहले रांची के डिस्टिलरी तालाब में लबालब पानी होता था। यहां रहने वाले बुजुर्ग बताते हैं कि करम नदी से बहकर आने वाला पानी यहां पर चेकनुमा बने डैम में इकट्ठा होता था, जिसे डिस्टिलरी तालाब के नाम से जाना जाता था। इस तालाब की वजह से आस-पास का ग्राउंड वाटर लेवल हमेशा रिचार्ज होता रहता था, जिससे लोगों की बोरिंग या कुएं सूखने की कभी नौबत ही नहीं आती थी। धीरे-धीरे अतिक्रमण के कारण डैम का क्षेत्रफल सिमटता गया। अंधाधुंध घरों के निर्माण ने तो तालाब के आकार को छोटा किया ही रांची नगर निगम ने इस तालाब को सौंदर्यीकरण के नाम पूरी तरह से खत्म कर दिया। तालाब के सूखने पर अब यहां रहने वाले लोगों को पानी की दिक्कतें भी होने लगी हैं। ग्राउंड वाटर रिचार्ज नहीं हो पाता, जिससे समय से पहले ही लोगों के कुएं और बोरिंग सूखने लगते हैं। लालपुर, वद्र्धवान कंपाउंड, पीस रोड, कोकर, चूना भट्ठा, भाभानगर, हनुमान नगर आदि क्षेत्रों और मोहल्लों में गंभीर जल संकट उत्पन्न हो गया है।