रांची (ब्यूरो)। झारखंड में सरकारी संपत्ति को सड़ाने का पुराना रिवाज रहा है। वर्ष 2000 में राज्य गठन के साथ ही मंत्रियों-अफसरों के लिए गाडिय़ां खरीदनी शुरू हुईं, लेकिन बहुत जल्दी-जल्दी गाडिय़ों से मोह भंग होता चला गया। नतीजा यह रहा कि हर चार-पांच साल के अंतराल पर मंत्रियों-अफसरों के लिए गाडिय़ां खरीदी जाने लगीं और पुरानी गाडिय़ों को सडऩे के लिए छोड़ दिया गया। कायदे से पुरानी गाडिय़ों को नीलाम करना चाहिए था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। आज आलम यह है कि राज्य के दोनों मंत्रालयों में पुरानी गाडिय़ां खड़ी हैैं, खराब हो रही हैैं और उनका कोई इस्तेमाल करने वाला नहीं। इसी तरह अन्य विभागों में भी सरकारी संपत्ति बर्बाद हो रही है। यह पब्लिक के टैक्स से खरीदी गई संपत्ति है, जिसे बर्बाद करने का सीधा मतलब है कि जनता के खून-पसीने की कमाई को बर्बाद करना। ऐसी बर्बादी खत्म हो, इसी मकसद के साथ 'दैनिक जागरण-आईनेक्स्टÓ शुरू कर रहा है आंखें खोलने वाली स्टोरी सिरीज 'सड़ाइए न संपत्तिÓ। यहां प्रस्तुत है, इस सिरीज की पहली स्टोरी:
सड़ रहीं 48 करोड़ की गाडिय़ां
राज्य के अलग-अलग सरकारी विभागों के करीब 48 करोड़ रुपए लागत की गाडिय़ां सड़ रही है। इन गाडिय़ों को समय पर कम पैसे खर्च कर चलने लायक बनाया जा सकता था। सरकारी विभाग के अधिकारियों ने नई गाडिय़ां खरीद ली पर पुरानी गाडिय़ों को निलाम करना उचित नहीं समझा। अगर समय से निलामी हो जाती तो कुछ पैसे सरकारी खाते में जमा हो जाते।
आकस्मिकता निधि से खरीदारी
सरकार ने अपने अधिकारियों की गाड़ी खरीदने के लिए आकस्मिकता निधि का इस्तेमाल किया है। इसका उपयोग अति आवश्यक कार्यों के लिए किया जाता है। लेकिन सरकारी गाड़ी खरीदना कब अति आवश्यक हो गया, इसका जवाब किसी के पास नहीं।
अब धूल फांक रही गाडिय़ां
राज्य के मंत्री और अफसरों के लिए कभी शान की सवारी रही गाडिय़ां, अब कबाड़ में धूल फांक रही है। झारखंड के मंत्री और अफ सर नई गाडिय़ों के फेर में महंगी चलती गाडिय़ों को धूल फांकने के लिए छोड़ देते हैं। नेपाल हाउस में 25 और प्रोजेक्ट बिल्डिंग में करीब 50 गाडिय़ां सड़ रही हैं। इन गाडिय़ों की अगर समय पर मरम्मत की जाती तो यह गाडिय़ां आज भी चलने लायक रहतीं, लेकिन नई और लग्जरी गाडि़ृयों के चक्कर में इसे छोड़ दिया गया। विभाग की लापरवाही यह भी है कि उसे स्क्रैप में भी नहीं बेचा।
सरकारी है, इसलिए छोड़ दिया
गाडिय़ां महंगी हों या सस्ती, अपनी हो तो उनकी हिफ ाजत बहुत जरूरी है। झारखंड के मंत्री और अफ सर भी निजी गाडिय़ों को सहेजने-चमकाने में किसी से पीछे नहीं रहते। लेकिन जब बात सरकारी संपत्ति की हो, तो यह बातें बेमानी हो जाती हैं। लोग जहां अपनी खटारा गाडिय़ों को भी सहेजने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते, वहीं राच्य के मंत्री-अफ सर चालू गाडिय़ों को भी एक झटके में सडऩे के लिए छोड़ देते हैं। राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में ऐसी गाडिय़ों की भरमार है।
सचिवालयों में 50 करोड़ की गाड़ी
बड़ी संख्या में गाडिय़ां अब सड़ रही हैं जो बिकने लायक भी नहीं रह गई हैं। नेपाल हाउस व प्रोजेक्ट भवन स्थित सचिवालयों व विभिन्न कार्यालयों में एंबेसडर, टाटा सफ ार, इंडिवर, मार्शल या बोलेरो जैसी तमाम गाडिय़ां धूल फ ांकती देखी जा सकती हैं। इनकी खरीदारी 2005 से 2014 के बीच हुई थी। नई सरकार बनने के बाद सभी मंत्रियों के लिए फ ाच्र्यूनर खरीदे गए, तो पुरानी इंडिवर गाडिय़ां सडऩे के लिए छोड़ दी गईं। जबकि ये गाडिय़ां हल्की मरम्मत कर चलाई जा सकती थीं। हद तो यह कि करोड़ों खर्च कर खरीदी गई इन गाडिय़ों की सरकार ने नीलामी तक की जहमत भी नहीं उठाई।
तीन करोड़ में खरीदी गई फाच्र्यूनर
झारखंड के मंत्रियों को राज्य सरकार ने नई गाड़ी दी है। मंत्रियों के लिए टोयोटा कंपनी की फॉच्र्यूनर गाड़ी 3 करोड़ रुपए में खरीदी गई है। सभी 11 मंत्रियों को फॉच्र्यूनर दी गई। जबकि इन मंत्रियों के पास पहले से ही कई गाडिय़ों का काफिला मौजूद है। कई मंत्रियों के पास पहले से ही फॉच्र्यूनर गाड़ी है। इसके बावजूद उनके लिए नई कार खरीदी गई।


परिवहन विभाग द्वारा सभी विभाग को पत्र लिखा गया है कि जो भी पुरानी गाडिय़ां कबाड़ हो चुकी हंै, उसका एसेसमेंट किया जाए। अगर अच्छी कंडीशन की गाड़ी है, तो उसे ठीक करके इस्तेमाल में लाया जाए। अगर मरम्मत कर चलने लायक है, तो उसे बनाया जा सकता है।
लालचंद डाडेल, संयुक्त सचिव, कैबिनेट को-आर्डिनेशन, झारखंड सरकार


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