रांची (ब्यूरो) । झारखंड राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर झारखंड रा'य माध्यमिक शिक्षक संघ के रांची जिला अध्यक्ष सफदर ईमाम ने कहा कि किसी भी देश का भविष्य उसे देश के शिक्षकों पर निर्भर करता है, क्योंकि किसी भी देश का भविष्य उस देश के ब'चे होते हैं और इन ब'चों को सही आकार देने का कार्य एक शिक्षक का ही होता है.अगर इन शिक्षकों का पदस्थापन, नियमित वेतन एवं प्रोन्नति नियम अनुसार एवं समय अनुसार नहीं किया जाए तो शिक्षक अपनी पूरी क्षमता के साथ कार्य करने के लिए मानसिक एवं शारीरिक रूप से सबसे तैयार नहीं हो पाते हैं.उदाहरण के तौर पर आप वर्तमान 2023 में जिन शिक्षकों को पदस्थापित किया गया उन शिक्षकों का पदस्थापन में हुए त्रुटी का ना तो निराकरण किया गया, ना ही 6 माह बीतने को हैं अभी तक वेतन का भुगतान ही हो पाया है।
शिक्षकों का पदस्थापन
2019 में जिन शिक्षकों का पदस्थापन हुआ था उन शिक्षकों का 4 वर्ष बीत जाने के बाद भी सेवा संपुष्टि कार्य पूर्ण नहीं हो पाया है। शिक्षकों को विद्यालय में अपना कार्य करने के पश्चात विभाग का चक्कर लगाना पड़ रहा हैं जिनसे उनको मानसिक और शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा हैं। विभाग को चाहिए कि जो समस्याएं शिक्षकों एवम कर्मियों का उनके संज्ञान में आता है समय रहते उसका निराकारण कर देना चाहिए जिससे शिक्षा व्यवस्था पर कोई असर न पड़े। विभाग को पदस्थापन के लिए आदर्श पदस्थापन प्रक्रिया को अपनाना चाहिए एवम सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ़ एजूकेशन की अनुशंसा के आधार पर केजी से लेकर पीजी तक के शिक्षकों का स्थानांतरण अन्य कर्मियों की तरह नियमित तौर पर करना चाहिए और उनके अनुकूल करना चाहिए ताकि शिक्षा व्यवस्था पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
कारगर बनाने के लिए
झारखंड का स्कूली शिक्षा विभाग इन 23 वर्षों में शिक्षा व्यवस्था को जमीनी तौर पर कारगर बनाने के लिए कभी भी गंभीर नहीं रहा है। केवल कागजी खानापूर्ति को प्राथमिकता दी गई हैं वर्तमान में देखा जाए तो शिक्षा विभाग में एनजीओ का बोलबाला है। प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर चयनित विद्यालय के शिक्षकों को एनजीओ के संविदा कर्मी निर्देशित करते हैं, विद्यालयों का निरीक्षण करते हैं और प्रतिदर्श के आधार पर निष्कर्ष तय करते हैं। 100 में से 70 योजनाएं काल्पनिक एवं कागजी खानापूर्ति पर आधारित है। शिक्षकों को एक टूल के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। हजारों वर्ष पूर्व बनी भारतीय शिक्षा व्यवस्था का मूल है प्रधानाध्यापक ही स्कूल है। भारत के इस मंत्र को विश्व के अन्य देशों ने भी माना है।
तथ्य पर आधारित
विदेश में पूरी शिक्षा व्यवस्था इस मूल तथ्य पर आधारित रहती है कि द हेड मास्टर इज स्कूल लेकिन झारखंड में जेसीआरटी ही स्कूल है। स्कूल में कार्यरत प्रभारी एवं शिक्षकों को पाठ्यक्रम के अनुसार स्वयं कुछ नहीं सोचना है प्रतिदिन जेसीआरटी के निर्देशों को लागू करना है, जबकि विभिन्नताओं से भरे झारखंड में पग पग पर परिस्थितियों बदल जाती हैं। बेहतर शिक्षा व्यवस्था को धरातल पर उतारने के लिए क्रियान्वयन के मूल में शिक्षकों को रखना होगा ना कि एनजीओ को।
मेरा यह मानना है कि वर्तमान समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए शिक्षकों को शिक्षा का धूरी मानना ही होगा। इससे यह तात्पर्य है कि विभाग के द्वारा जो भी निर्णय लिए जाते हैं या उसे क्रियान्वित करने के लिए निर्देश पारित होते हैं, सेवानिवृत शिक्षकों, वर्तमान में पदस्थापित शिक्षकों एवं बुद्धिजीवों को साथ लेकर विचार विमर्श कर दिशा निर्देश पारित होने चाहिए, ताकि जमीनी स्तर पर जो परेशानियों का सामना शिक्षकों को करना पड़ता है उससे विभाग भी भली भांति अवगत हो सके।