रांची (ब्यूरो) । पर्यावरण और अध्यात्म का बहुत गहरा संबंध है। आध्यात्मिकता हमें वास्तविकता की ओर ले जा कर प्रकृति और पुरूष (आत्मा) के गहरे संबंध का अनुभव कराती है। भारतीय संस्कृति पर्यावरण के साथ बहुत नजदीक से जुड़ी है। हमारी जीवनशैली सदा ही पर्यावरणमित्र शैली रही है। परंतु वर्तमान समय प्रकृति और अध्यात्म का समन्वय विगड़ गया है। ये उद्गार ब्रह्माकुमारी संस्थान चौधरी बगान, हरमू रोड में विश्व पर्यावरण दिवस के पूर्व सप्ताह में आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित एनके सिंह पीसीसीएफ ने दीप प्रज्वलन करने के उपरांत व्यक्त किये। कार्यक्रम में उपस्थित अशोक कुमार एपीसीसीएफ ने कहा हम प्रकृति का उपयोग उसका शोषण करने के लिए नहीं बल्कि विकास की मशाल को जलाकर रखने के लिए करें।

पवित्रता को भंग होने से

साथ ही उसकी पवित्रता को भंग होने से भी बचायें जिससे मानव को आध्यात्मिक शक्ति का बल मिले।

कार्यक्रम में उपस्थित डॉ अविनाश ने कहा कि प्रदूषण के फलस्वरूप प्रकृति के पांचों तत्वों का विध्वंसक रूप देखने को मिल रहा है। प्रकृति यह संदेश दे रही है कि अब यह जागने का समय है। अब प्रकृति के साथ जुडक़र उसे देवतुल्य मानने की परंपरा को जीवित रखने की आवश्यकता है। हमें आध्यात्मिक जीवन को अपनाकर अपने हृदय में प्रकृति के प्रति निच्छल प्रेम जगाने की आवश्यकता है। अब हम सभी आदतों को परिवतन करें और प्रकृति की रक्षा के लिए कुछ संकल्प करें। तनूजा अधिकारी, इनर व्हील क्लब की पूर्व अध्यक्षा ने कहा आधुनिक जीवन शैली के कारण बढ़ते प्रदूषण को रोक लगाना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्त यह संकल्प ले कि अपने जीवन काल में कम से कम 10 पेड अवश्य लगाये एवं उसका संरक्षण करें। इससे पर्यावरण संतुलित रहेगा।

विपत्तियों का कारण

कार्यक्रम में उपस्थित मीरा कुमारी गुप्ता, उप आयुक्त स्टेट टेक्स विभाग ने कहा पर्यावरण को नजर अन्दाज करना ही मानव जीवन के लिए विपत्तियों का कारण बन गया है। पांचों तत्वों की सुरक्षा के लिए भारत की अहम भूमिका रही है। तभी तो पांचों तत्वों की पूजा की जाती है। केन्द्र संचालिका ब्रह्माकूमारी निर्मला बहन ने कहा कि आईये इस विश्व पर्यावरण दिवस पर शांति और सदभाव का वातावरण बनाने का लक्ष्य रखें। भौतिक पर्यावरण को बचाते हुए इस बार सूक्ष्म पर्यावरण पर भी नजर डाली जाय। उन्होंने कहा मॉल या मंदिर में एक ही लोग आते हैं। हालांकि हर जगह की ऊर्जा अलग-अलग होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक ही लोग अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग विचार और भावनाएं पैदा करते हैं। एक ही लोग रेस्टोरेंट में खाना खाते हैं और आश्रमों, गुरूद्धवारों में ब्रह्माभोजन व लगंर भी। लेकिन खाना खाते समय उनके मन में उठने वाले विचार अलग अलग होते है। कारण जिस भावना के साथ खाया जाता है।