RANCHI : अगर आपका भी बच्चा न्यूबॉर्न बेबी है। आवाज देने पर कोई रिस्पांस नहीं देता तो तत्काल उसकी जांच कराएं। यह हियरिंग लॉस के लक्षण हो सकते हैं। वहीं पांच साल तक की उम्र वाले ऐसे मरीजों का इलाज भी संभव है। इसके बाद हियरिंग ऐड ही एकमात्र सहारा होगा। लेकिन समय रहते इलाज करा लेने से किसी भी तरह के ऐड की जरूरत नहीं पड़ेगी। ये बातें व‌र्ल्ड हियरिंग डे पर रिम्स में लगाए गए कैंप में डॉक्टरों ने कहीं। उन्होंने बताया कि इस बार का थीम है डोंट लेट हियरिंग लॉस लिमिट यू। इसलिए लोगों को अवेयर करने के लिए यह कैंप लगाया गया है।

न्यूबॉर्न बेबी को होती है दिक्कत

हॉस्पिटल में न्यू बॉर्न बेबी को कई बार अंडर ऑब्जर्वेशन में रखा जाता है। चूंकि उन्हें जांडिस की समस्या हो जाती है। वहीं कुछ बच्चों के बे्रन में आक्सीजन की सप्लाई नहीं हो पाती तो ऐसे बच्चों में हियरिंग लॉस की प्राब्लम हो जाती है। इसके अलावा जो बच्चे जन्म के तुरंत बाद एनआईसीयू में भेजे जाते है उन बच्चों की भी स्क्रीनिंग कराने की जरूरत है।

कॉक्लियर इंप्लांट से नया जीवन

अगर कोई बच्चा सुन नहीं सकता तो वह बोल भी नहीं पाएगा। लेकिन रिम्स में ऐसे ही एक दर्जन से अधिक बच्चों का कॉक्लियर इंप्लांट कर उन्हें नई जिंदगी दी है रिम्स के इएनटी डिपार्टमेंट ने। अबतक डिपार्टमेंट में 15-16 बच्चों को कॉक्लियर इंप्लांट लगाया गया है। वहीं उनकी स्पीच थेरेपी भी की जा रही है। जिससे कि बच्चा सुनने के साथ बोलना भी सीख जाए।