शो का नाम : जेएल 50
कलाकार : अभय देओल, पंकज कपूर, रितिका आनंद, पियूष मिश्रा, राजेश शर्मा
निर्देशक : शैलेंदर व्यास
ओटीटी : सोनी लिव
एपिसोड्स : चार एपिसोड्स
रेटिंग : 3 स्टार

जेएल 50 शो में निर्देशक वर्तमान के साथ-साथ भूतकाल में जाते हुए भविष्य की राह दिखाते हैं। कहानी 1984 की है, कोलकाता (तब कलकत्ता) की। जहां एक विमान जेएल50 आसमान में गायब हो जाता है और फिर 35 साल बाद उसकी खबर मिलती है, लेकिन एक क्रैश हो जाने पर। अचानक इतने सालों गायब हो चुकी जेएल50 अचानक मिलती है. इसके पीछे रहस्य क्या है, लेकिन कहानी एक पैसेंजर प्लेन ए ओ 26 की तलाश के माध्यम से आगे बढ़ती है। इस शो में निर्देशक ने टाइम ट्रेवल को सेंटर में रख, भूतकाल में हुए प्लेन हाइजेक को रोकने के एक शानदार मिशन को भी दिखाया है। टाइम ट्रेवल को फ्रेम में रख कर, भूतकाल में जाने को लेकर पहले भी कहानियां दिखाई गई हैं, लेकिन इस बार न सिर्फ कहानी का मिजाज अलग हैं, बल्कि शानदार कलाकारों का भी साथ मिला है। यह दिलचस्प और रोमांच से भरपूर शो तो है ही, अवधि कम होने के कारण बोर भी नहीं करती। टाइम ट्रैवलिंग को लेकर रोचक कहानी गढ़ी गयी है। इस साइकोलॉजिकल कम साइंस थ्रिलर शो को क्यों देखा जाना चाहिए। पढ़ें पूरा रिव्यू।

क्या है कहानी
कहानी के मुख्य तार आजाद बंगाल संगठन से भी जोड़े गए हैं। एक खबर आती है कि पश्चिम बंगाल के घने जंगल में विमान क्रैश हुआ है, इसकी जांच सीबीआई ऑफिसर शांतनु (अभय देओल) को सौंपी गई है। रहस्यमयी बात यह होती है कि ए ओ 26 का यह तो रुट था ही नहीं। बाद में जानकारी मिलती है कि जो मलबा है वह जेएल50 ए ओ 26 का नहीं। शांतनु इस बात से वाकिफ हो जाता है कि कुछ गड़बड़ है। वह इस रहस्य को सुलझाने में लग जाता है। इस शो की खास बात यह है कि निर्देशक ने कई सारे संदर्भ लिए हैं और उन्हें सही तरीके से प्रस्तुत भी किया है। उन्होंने इतिहास के पन्नों में भी झांका है। वह नक्सलवाद से लेकर अशोक, कलिंग युद्ध तक गए हैं। वहीं दूसरी तरफ उन्होंने क्वांटम फिजिक्स और साइंस फिक्शन को लेकर भी अच्छा प्रयोग किया है। फिजिक्स और फिक्शन के मेल से एक अच्छा संयोग बना है.

क्या है अच्छा
कहानी कांसेप्ट के लिहाज से आपको पुरानी लगेगी। लेकिन कहानी में कई तरह के एक्सपेरिमेंट हैं। साइंस, रोमांच को लेकर गजब प्रयोग किया है। वहीं कहानी का फिल्मांकन शानदार है। यह किसी भी विदेशी फिल्मों के टेक्निकल अप्रोच से कम नहीं है। सिनेमेटोग्राफर ब्रेडले स्टुकेल ने इसे खूबसूरती से कैप्चर किया है। निर्देशक ने रिसर्च के लिहाज से कोई कमी नहीं छोड़ी है। कई संदर्भ लिए हैं और उन्हें कहानी में अच्छी तरह शामिल किया है।

क्या है बुरा
जिस दिलचस्प पॉइंट से फिल्म शुरु होती है। अंत आते-आते कहीं-कहीं कहानी बिखर गई और अपने पेस को खोती नजर आती है।

अदाकारी
अभय देओल को ओटी टी प्लैटफॉर्म पर अपनी क्षमता दिखाने का शानदार मौका मिल रहा है। उनके लगातार अच्छे वेब शोज आ रहे हैं। इस शो में भी उन्होंने काफी अच्छा काम किया है, और उन्हें अपने सह कलाकारों का भी पूरा सपोर्ट मिला है। पंकज कपूर ने भी प्रोफेसर के रूप में सुब्रतो बोस के साथ न्याय किया है। पियूष मिश्रा अब एक जैसे किरदार ही करने लगे हैं। उनके काम में नयापन नहीं दिखता। रितिका और राजेश ने सीमित प्रेजेंस में अच्छा काम किया है।

वर्डिक्ट :
शो को लोकप्रियता माउथ पब्लिसिटी से मिलेगी।

Review by अनु वर्मा

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