नई दिल्ली (पीटीआई)। 63 साल के बोबडे न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की जगह लेंगे, जिनका कार्यकाल रविवार को समाप्त हो गया। उन्होंने राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में आयोजित एक संक्षिप्त समारोह में अंग्रेजी में ईश्वर के नाम पर शपथ ली। जस्टिस बोबडे का सीजेआई के रूप में कार्यकाल 17 महीने का होगा, वे 23 अप्रैल, 2021 को रिटायर होंगे।

मां के पैर छूकर लिया आशीर्वाद
शपथ लेने के तुरंत बाद, उन्होंने अपनी मां के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। जिन्हें स्ट्रेचर पर राष्ट्रपति भवन लाया गया था। शपथ ग्रहण समारोह में उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कई वरिष्ठ मंत्री मौजूद थे। पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी और पूर्व प्रधानमंत्री  मनमोहन सिंह भी मौजूद थे। समारोह में आर एम लोढ़ा, टी एस ठाकुर और जे एस केहर सहित सुप्रीम कोर्ट के कई पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने भाग लिया।

महाराष्ट्र के वकीलों के परिवार से आते हैं जस्टिस बोबडे
न्यायमूर्ति बोबडे को वरिष्ठता के नियम का पालन करते हुए चुना गया और उनके नाम की सिफारिश न्यायमूर्ति गोगोई ने केंद्र को लिखे पत्र में की थी। वह महाराष्ट्र के वकीलों के परिवार से आते हैं, वह प्रख्यात वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद श्रीनिवास बोबडे के पुत्र हैं। पिछले महीने सीजेआई के रूप में नियुक्त होने के बाद पीटीआई को दिए एक साक्षात्कार में बोबडे ने कहा था कि लोगों की प्रतिष्ठा को सिर्फ नागरिकों की जानने की इच्छा को पूरा करने के लिए बलि नहीं चढ़ाया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा था कि वह उच्च न्यायपालिका में नियुक्ति के लिए नामों की अस्वीकृति पर कॉलेजियम के पूरे विचार-विमर्श का खुलासा करने के मुद्दे पर रूढ़िवादी दृष्टिकोण अपनाना पसंद करेंगे। देश भर की अदालतों में न्यायाधीशों की भारी रिक्तियों और न्यायिक अवसंरचना की कमी के मुद्दे पर, जस्टिस बोबडे ने कहा था कि वह अपने पूर्ववर्ती गोगोई द्वारा उठाए गए कदमों को 'तार्किक अंत' तक ले जाना चाहते हैं।

जस्टिस बोबडे के महत्वपूर्ण फैसले
24 अप्रैल, 1956 को महाराष्ट्र के नागपुर में जन्मे, वह पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिन्होंने अयोध्या भूमि विवाद पर एक सर्वसम्मत निर्णय दिया, जो 1950 से अदालतों में लंबित था। बोबडे सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच का भी हिस्सा थे जिसने अगस्त 2017 में सर्वसम्मति से कहा था कि निजता का अधिकार भारत में संवैधानिक रूप से संरक्षित मौलिक अधिकार है। तब जे एस केहर सीजेआई थे। न्यायमूर्ति बोबड़े तीन न्यायाधीशों वाली पीठ का हिस्सा थे जिसने 2015 में स्पष्ट किया था कि आधार कार्ड के बिना भारत के किसी भी नागरिक को बुनियादी सेवाओं और सरकारी सेवाओं से वंचित नहीं किया जा सकता है। हाल ही में, जस्टिस बोबडे की अध्यक्षता वाली दो-न्यायाधीशों की पीठ ने पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) विनोद राय की अगुवाई वाली प्रशासकों की समिति (BAGI) को कार्यभार छोड़ने को कहा, जिसे BCCI प्रशासन को चलाने के उद्देश्य से नियुक्त किया गया, ताकि निर्वाचित सदस्यों के लिए क्रिकेट बोर्ड को चलाने का रास्ता साफ हो सके।

नागपुर यूनिवर्सिटी से ली बीए, एलएलबी की डिग्री
जस्टिस बोबडे ने नागपुर विश्वविद्यालय से बैचलर ऑफ आर्ट्स और एलएलबी की डिग्री पूरी की। उन्हें 1978 में बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र के एक वकील के रूप में एनरोल किया गया था। उन्होंने बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ व प्रिंसिपल सीट और सुप्रीम कोर्ट में 21 वर्ष तक प्रैक्टिस की। उन्हें 1998 में वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था। न्यायमूर्ति बोबडे को 29 मार्च 2000 को बॉम्बे हाईकोर्ट में बतौर अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। उनहोंने 16 अक्टूबर, 2012 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। उन्हें 12 अप्रैल, 2013 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था।

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